केरल हाईकोर्ट ने 8 वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने पर सुझाव मांगे

LiveLaw News Network

3 April 2021 7:34 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने 8 वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने पर सुझाव मांगे

    केरल हाईकोर्ट ने 'वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम' (Senior Designation) के लिए प्राप्त प्रस्तावों, सिफारिशों और आवेदनों पर बार के सदस्यों से सुझाव मांगे हैं।

    वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा एडवोकेट्स जॉन वर्गीस, बाबू करुकापदथ, बाबू एस. नायर, शतमंगलम एस. अजिथकुमार और मोहम्मद नियास सीपी के नामों की सिफारिश की गई है, जबकि हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने एडवोकेट पी. दीपक का नाम प्रस्तावित किया है। वहीं वकील फिलिप मैथ्यू और ए. कुमार ने आवेदन दायर किए हैं।

    वहीं लिखित में 30 दिनों के भीतर सुझाव देना होगा।

    हाईकोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पदनाम के लिए नए नियम बनाए है, जिसका शीर्षक- 'केरल हाईकोर्ट (वरिष्ठ अधिवक्ताओं का पदनाम) नियम 2018 है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्देश द्वारा पदनाम के आधार पर निर्धारित दिशानिर्देशों और मानदंडों के आलोक में ये नए नियम बनाए गए हैं।

    नियमों में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश या हाईकोर्ट के किसी अन्य न्यायाधीश द्वारा प्रस्तावित या दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा सिफारिश किए जाने पर या उनके द्वारा किए गए आवेदन पर उनके नाम पर एक वकील को 'वरिष्ठ अधिवक्ता' के रूप में नामित किया जा सकता है। उम्मीदवार को कम से कम 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए और कम से कम 10 वर्षों के लिए आयकर निर्धारिती होना चाहिए।

    नियम इंदिरा जयसिंग (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार 'वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पदनाम के लिए समिति' के गठन के लिए प्रदान करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, समिति हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में होगी और इसमें अगले दो वरिष्ठतम न्यायाधीश और महाधिवक्ता शामिल होंगे। ये चार सदस्य समिति के पांचवें सदस्य के रूप में बार के एक अन्य सदस्य को नामित करेंगे। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल समिति के सचिव के रूप में कार्य करेंगे।

    बार के सुझावों और विचारों के लिए 30 दिनों का समय देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पदनाम के लिए प्रस्ताव/सिफारिशें/आवेदन पत्र समिति द्वारा प्रकाशित किए जाने चाहिए। पूर्ण नाम और पहचान का खुलासा करते हुए सुझाव/विचार लिखित रूप में होना चाहिए। नियम यह विशेष रूप से स्पष्ट करते हैं कि अनाम याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाएगा।

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