केरल हाईकोर्ट ने पीड़िता से विवाह के बाद आरोपी पर पोक्सो अधिनियम के तहत लगे आरोपों को रद्द किया

LiveLaw News Network

26 April 2021 10:33 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने पीड़िता से विवाह के बाद आरोपी पर पोक्सो अधिनियम के तहत लगे आरोपों को रद्द किया

    केरल हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष से विवाह के बाद 22 वर्षीय आरोपी पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज कर दिया।

    जस्टिस के हरिपाल की खंडपीठ ने फरवरी 2019 में दायर एक आरोप पत्र को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी पर भारतीय दंड संहिता के तहत यौन उत्पीड़न और अन्य आरोपों के साथ-साथ पोक्सो अधिनियम के तहत आरोप लगाया गया था।

    जब प्राथमिकी दर्ज की गई थी तब अभियोजन पक्ष की उम्र 17 वर्ष थी। मामला तब सामने आया, जब उसके पिता ने पुलिस से यह कहते हुए संपर्क किया कि उसकी बेटी गायब है। उसके पिता मामले में शिकायतकर्ता हैं।

    बाद में, पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (एन) के तहत एक ही महिला से बार-बार बलात्कार के अपराध को जोड़ा और धारा 4, धारा 3 (ए) के साथ पढ़ें, और धारा 6, पोक्सो अध‌िनियम की धारा 5(1) के साथ पढ़ें, यौन उत्पीड़न के मामलों को बढ़ा दिया।

    भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 370 और 450 के तहत अपहरण, गुलामी और घर में बंद करने के आरोप लगाए गए थे।

    आरोपों को रद्द करने की मांग करते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और कहा‌ कि उसने पिछले साल नवंबर में अभियोजन पक्ष से विवाह किया था और मामला दोनों पक्षों के बीच सुलझ गया है। आरोपी ने यह भी कहा कि वह और अभियोजन पक्ष, जो वयस्क हो चुकी है, अब पति और पत्नी के रूप में रह रहे हैं।

    याचिका के समर्थन में, उसने अभियोजन पक्ष और शिकायतकर्ता की ओर से हलफनामा पेश किया, जिसमें कहा गया था कि उन्हें कार्यवाही समाप्त करने पर कोई आपत्ति नहीं है।

    याचिका को अनुमति देते हुए, न्यायालय ने कहा कि कार्यवाही जारी रखना निरर्थक होगा, क्योंकि अभियोजन पक्ष, शिकायतकर्ता, भौतिक गवाह मामले का समर्थन नहीं करते।

    अदालत ने कहा कि इस तथ्य के मद्देनजर कि वे व‌िवाह कर चुके हैं, कार्यवाही जारी रखने का कोई उद्देश्य नहीं है।

    जस्टिस हरिपाल ने अपने आदेश में यह भी कहा, "माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ऐसे मामलों में अदालतों को हमेशा व्यावहारिक दृष्टिकोण रखना चाहिए। जब ​​पक्षकार स्वयं विवाद का निपटारा करते हैं और कार्यवाही को समाप्त करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं, तो हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपने निहित अधिकार क्षेत्र को लागू करने से इनकार नहीं कर सकती है।"

    यह देखते हुए कि दंपति की भलाई के लिए कार्यवाही की समाप्ति की आवश्यकता है और इस मामले को रद्द करने से सार्वजनिक हित में बाधा नहीं होगी, न्यायालय ने मामले को रद्द कर दिया।

    मामला: XXX बनाम XXX और अन्य।

    वकील: एडवोकेट अब्राहम मथान आरोपी की ओर से, एडवोकेट के आनंद, अभियोजन पक्ष की ओर से।

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