'जूनियर वकील जीविका के लिए चाय स्टॉल लगाने के लिए मजबूर': केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल को स्टाइपेंड लागू करने में निष्क्रिय रहने पर फटकार लगाई

LiveLaw News Network

25 Oct 2021 1:29 PM GMT

  • जूनियर वकील जीविका के लिए चाय स्टॉल लगाने के लिए मजबूर: केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल को स्टाइपेंड लागू करने में निष्क्रिय रहने पर फटकार लगाई

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य बार काउंसिल को 2018 के सरकारी आदेश को कोर्ट के बार-बार निर्देश के बावजूद लागू करने में अनुचित देरी के लिए एक बार फिर से फटकार लगाई।

    राज्य सरकार द्वारा 2018 में पारित किए गए इस आदेश के अनुसार प्रत्येक जूनियर वकील को 5,000 का मासिक स्टाइपेंड देना का निर्देश दिया गया है।

    न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने कार्यवाही के दौरान मौखिक रूप से टिप्पणी की:

    "यहाँ ऐसे वकील हैं जो ₹1,000 भी नहीं कमाते और उन्हें जीवन यापन करने के लिए चाय के स्टॉल चलाने पड़ते हैं। ऐसे वकील हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जीवित रहने के लिए चाय बेचते हुआ देखता हूं। सरकार ने उन्हें एक छोटी राशि प्रदान करने का आदेश पारित किया, लेकिन बार काउंसिल ने अभी तक इस संबंध में कोई संशोधन या नियम नहीं बनाया।"

    एकल पीठ ने सरकारी आदेश को तुरंत लागू करने की मांग करने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए और विशेष रूप से जूनियर वकीलों की दुर्दशा पर महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए बार काउंसिल की निष्क्रियता के लिए उसकी कड़ी आलोचना की।

    बार काउंसिल द्वारा बार के युवा सदस्यों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहने पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की

    कोर्ट ने कहा,

    "मैं एक आदेश क्यों नहीं जारी करता कि ये सदस्य काउंसिल में बने रहने के योग्य नहीं हैं? तीन साल से अधिक हो गए हैं। मुझे पता चला है कि उन्होंने इस बीच करोड़ों रुपये खर्च करके एक नया गेस्ट हाउस बनाया है, लेकिन उन्होंने जूनियर वकीलों को भुगतान करने के लिए कोई पैसा नहीं दिया?"

    अतिरिक्त महाधिवक्ता अशोक चेरियन ने अदालत को सूचित किया कि देरी पर्याप्त संसाधनों की कमी के कारण हुई। उन्होंने कहा कि प्रति वर्ष जीओ (सरकारी आदेश) को लागू करने के लिए 36 करोड़ की राशि की आवश्यकता होगी।

    इसके साथ ही उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि राज्य इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहा है और दो महीने की अवधि के भीतर इस पर जरूरी काम करेगा।

    स्टेट बार काउंसिल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ग्रेसियस कुरियाकोस ने कहा कि नियम पहले ही तैयार किए जा चुके हैं और सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

    दोनों वकीलों ने प्रस्तुत किया कि केरल बार काउंसिल के परामर्श से राज्य द्वारा एक व्यापक पैकेज तैयार किया जा रहा है।

    कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में इसे दर्ज किया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि बार काउंसिल की कार्रवाई अब तक असंतोषजनक रही है।

    आदेश में कहा गया,

    "भले ही सरकारी आदेश जारी हो गया हो, पर मैं केरल बार काउंसिल की कार्यवाही से संतुष्ट नहीं हूं। इसके बावजूद मैं वकीलों की दलीलें रिकॉर्ड करता हूं।"

    कोर्ट ने सरकार और बार काउंसिल को दो महीने की अवधि के भीतर कोर्ट को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।

    न्यायमूर्ति कुन्हीकृष्णन ने सुनवाई समाप्त होने से पहले एक वकील के अनुरोध पर मामले की आंशिक सुनवाई पर विचार करने के लिए रुकते हुए कहा,

    "अगर हम अपने जूनियर वकीलों की दुर्दशा को नहीं समझ सकते हैं तो हम यहां न्यायाधीश के रूप में क्यों बैठे हैं। वे न्यायपालिका का भविष्य हैं। इस न्यायालय के सभी 42 न्यायाधीश इस मामले से संबंधित हैं। सभी जूनियर वकीलों के पक्ष में हैं। आंशिक सुनवाई की कोई आवश्यकता नहीं है।"

    न्यायालय ने राज्य के बयान को दर्ज किया। इसमें कहा गया कि उक्त स्टाइपेंड को लागू करने के लिए व्यापक योजना पर विचार-विमर्श चल रहा है।

    हालाँकि, सिंगल बेंच ने बार काउंसिल को फिर से लताड़ लगाई, जबकि राज्य ने प्रत्येक चरण में जवाब देने में तत्परता दिखाते हुए निर्देश लागू करने में उनकी ओर से हुई देरी के लिए इशारा किया।

    इस पर कोर्ट ने कहा,

    "सरकार आदेश मार्च 2018 का है। यह एक वैधानिक मामला है और उन्होंने निर्णय लेने में पांच महीने का समय लिया। नियमों में संशोधन का पहला प्रस्ताव पांच महीने बाद अगस्त 2018 में आया। निर्वाचित समिति जनवरी 2019 में सत्ता में आई। तीन वकीलों के साथ नियम समिति का गठन मई 2019 में ही किया गया। उन्होंने तुरंत एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन इसे जुलाई 2020 में ही अग्रेषित किया गया।

    कोर्ट ने एक विस्तृत अंतरिम आदेश पारित किया और राज्य द्वारा मांगे गए समय के अनुसार मामले को 20 दिसंबर 2021 तक के लिए स्थगित कर दिया। हालांकि कोर्ट ने इस पर और देरी करने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की।

    मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनु रामचंद्रन पेश हुए। उन्होंने बताया कि ऐसा प्रावधान पहले स्थान पर क्यों आया। उन्होंने कोर्ट का ध्यान उस संशोधन की ओर दिलाया जो वास्तव में केरल अधिवक्ता कल्याण कोष में वजीफे के प्रावधान में लाया गया था।

    उक्त संशोधन में राज्य ने कल्याण कोष स्टाम्प मूल्य में दो गुना वृद्धि की थी। वकील ने तर्क दिया कि संशोधन लागू होने के बाद जूनियर वकीलों को अतिरिक्त लागतों को कवर करने में सक्षम बनाने के लिए स्टाइपेंड निर्धारित किया गया।

    यह अवलोकन अधिवक्ता धीरज रवि द्वारा दायर एक याचिका में आया। इसमें COVID-19 संकट से पीड़ित वकीलों के लिए सहायता की मांग की गई थी।

    कोर्ट ने पहले स्टेट बार काउंसिल को यह कहते हुए फटकार लगाई थी कि वह यह दिखावा नहीं कर सकती कि उसे जूनियर वकीलों की पीड़ा नहीं दिखाई देती।

    केरल सरकार ने नौ मार्च, 2018 के आदेश के तहत केरल एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1980 के तहत बनाए गए कल्याण कोष से देय एक निर्दिष्ट श्रेणी के जूनियर वकीलों के लिए 5000 / - रुपये का मासिक स्टाइपेंड मंजूर किया गया।

    केस का शीर्षक: एडवोकेट धीरज रवि और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य

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