केरल हाईकोर्ट ने यौन हमले से बचे लोगों को जांच के दौरान मानसिक पीड़ा से बचाने के लिए वकीलों से सुझाव आमंत्रित किए

LiveLaw News Network

6 Jan 2022 11:03 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने यौन हमले से बचे लोगों को जांच के दौरान मानसिक पीड़ा से बचाने के लिए वकीलों से सुझाव आमंत्रित किए

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपना रुख दोहराते हुए यौन हमले से बचे लोगों को जांच के दौरान मानसिक पीड़ा से बचाने के लिए वकीलों से सुझाव आमंत्रित किए। हाईकोर्ट ने कहा कि अपने ऊपर हुए हमले के बारे में आगे आकर कहने और इसे सहने के लिए बहुत साहस चाहिए होता है।

    हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़ने के शिकार लोगों को इसी पीड़ा से बचाने के लिए सभी वकीलों से सुझाव आमंत्रित किए हैं।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन ने एक याचिका पर विचार करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की:

    "यद्यपि इस तरह के यौन उत्पीड़न पीड़ितों की सुरक्षा और समर्थन के लिए प्रोटोकॉल मौजूद हैं। दुर्भाग्य से कई बार इन्हें प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता... यौन उत्पीड़न के शिकार के लिए शिकायत करने के लिए हमेशा बहुत साहस होता है। फिर भी कुछ मामलों में जांच की प्रक्रिया के कारण उसके खिलाफ आरोप लगाए जाते हैं, जो उसे और अधिक परेशान करता है। साथ ही उसे उत्पीड़न और उपहास का विषय बनाता है।"

    याचिकाकर्ता ने याचिका में आरोपी के साथ-साथ कुछ पुलिस अधिकारियों से उत्पीड़न का आरोप लगाया है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसा कभी नहीं होना चाहिए और ऐसी स्थितियों से निपटने की जरूरत है।

    इसमें कहा गया,

    "हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यौन उत्पीड़न के सभी पीड़ितों को पूरी तरह से संरक्षित किया जाए और कानून की पूरी ताकत उनके पीछे है।"

    जज ने यह भी कहा कि यह कोई छोटा मामला नहीं है और निजता के सिद्धांत यह सुनिश्चित करने के लिए मौजूद हैं कि पीड़ित को सार्वजनिक लांछनों के अधीन नहीं किया जा सकता।

    यौन हमले की पीड़िता द्वारा न केवल आरोपी बल्कि दो पुलिस अधिकारियों से भी उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए पुलिस सुरक्षा के लिए एक याचिका पर यह टिप्पणियां आईं।

    मामले की पूर्व सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता धीरज राजन ने प्रस्तुत किया कि थ्रीक्काकारा पुलिस स्टेशन से जुड़े स्टेशन हाउस अधिकारी और एक सिविल पुलिस अधिकारी उसके खिलाफ यौन हमले के मामले में आरोपी के सहयोग से काम कर रहे थे। इसलिए उसे छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा।

    अदालत ने इस पर पीड़िता संरक्षण दिशानिर्देशों के अक्षम कार्यान्वयन को देखते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग कर रहे यौन शोषण और बलात्कार पीड़िताओं की बढ़ती संख्या के बारे में चिंता व्यक्त की।

    बाद में याचिकाकर्ता ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन के लिए कई बार पुलिस से संपर्क किया, जो उस यौन हमले का परिणाम था जिसे उसे सहना पड़ा। हालांकि, यह तर्क दिया गया कि इस मुद्दे पर अदालत जाने के बाद ही कदम उठाए गए थे।

    जज ने पाया कि यह काफी निराशाजनक है कि संपर्क अधिकारी जब पीड़िता के पास मदद की गुहार लगा रही थी तो वह उसका समर्थन और मार्गदर्शन करने में विफल रही।

    आज जब इस मामले को उठाया गया तो अदालत ने कहा कि एक बार जब एक महिला यौन उत्पीड़न की शिकायत करती है और एफआईआर दर्ज की जाती है तो उसे किसी और चीज के लिए पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि शिकायत में आरोप सही हैं या गलत, इसका कोई महत्व नहीं है। मुकदमे के समय इस पर विचार किया जाना चाहिए।

    यद्यपि जज महिला की याचिका पर फैसला सुनाने के लिए तैयार थे, पर सरकारी वकील के और समय मांगने पर मामले को 12 जनवरी को सूचीबद्ध किया गया।

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