केरल हाईकोर्ट ने मुस्लिम, कुछ ईसाई वर्ग को पिछड़े वर्ग की सूची से हटाने और उन्हें सरकारी लाभ देने से रोकने की मांग वाली याचिका 25 हजार जुर्माने के साथ खारिज की
LiveLaw News Network
25 July 2021 3:00 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम, लैटिन कैथोलिक और अन्य अनुसूचित जातियों को प्रदान किए गए आरक्षण और वित्तीय सहायता को रद्द करने की घोषणा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाली ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने याचिका दायर करने से पहले उचित रिसर्च नहीं की थी और याचिकाकर्ता संगठन पर पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया।
याचिकाकर्ता हिंदू समुदाय के खिलाफ अन्याय से लड़ने के लिए स्थापित एक पंजीकृत ट्रस्ट है। उनका प्राथमिक तर्क यह था कि मुसलमानों और ईसाइयों के कुछ वर्गों को शिक्षा और साथ ही राज्य के तहत नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जाता है, जबकि उनमें से अधिकांश सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े नहीं हैं।
मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता कृष्णा राज पेश हुए। यह प्रस्तुत किया गया था कि न्यायालय को यह देखना चाहिए कि क्या सभी संप्रदायों के मुसलमानों, लैटिन कैथोलिक, ईसाई नादर को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा माना जा सकता है? न्यायालय के समक्ष आगे के विचार के लिए कई सामाजिक और शैक्षिक सूचना देने वाले तथ्य रखे गए थे।
दलीलेंः
याचिका में तर्क दिया गया कि उपरोक्त आरक्षण आर्टिकल 15(4) और 16(4) के आधार पर किया गया था, हालांकि इन प्रावधानों का उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की रक्षा करना था।
यह भी दावा किया गया था कि सिर्फ सामाजिक पिछड़ापन या शैक्षिक पिछड़ापन अकेले राज्य के तहत एक विशेष समुदाय को आरक्षण देने पर विचार करने के लिए पर्याप्त नहीं था; आरक्षण पाने के योग्य होने के लिए दोनों मानदंडों को पूरा किया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि राज्य और केंद्र, दोनों मुस्लिम छात्रों को भारी प्रोत्साहन प्रदान कर रहे हैं, जिससे उनकी शैक्षिक स्थिति में वृद्धि हुई है। यह भी कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय के स्वामित्व वाले शैक्षणिक संस्थानों की संख्या यह दर्शाती है कि वे बहुसंख्यक हिंदुओं की तुलना में शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे हैं।
इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि ईसाइयों के कुछ संप्रदायों का आरक्षण पूरी तरह से अवैध और अन्यायपूर्ण था क्योंकि ईसाई धर्म में कोई जाति नहीं है। उन्होंने कहा कि जब एक बार कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति ईसाई धर्म में परिवर्तित हो जाता है तो वह हिंदू नहीं रहता है और इसलिए वह अनुसूचित जाति का भी नहीं रहता है। आरोप लगाया कि ऐसा आरक्षण प्रभावी रूप से धर्मांतरण को प्रोत्साहित करने के लिए था।
इसी तरह, यह तर्क दिया गया था कि केरल में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हिंदुओं को छुआछूत का सामना करना पड़ा, जबकि अनुसूचित जातियों और पिछड़े हिंदुओं की तुलना में न तो मुसलमानों और न ही ईसाइयों में कोई सामाजिक पिछड़ापन था।
याचिकाकर्ता द्वारा इंगित एक और अवैधता यह थी कि केंद्र के अनुसार, यह पहचानने की शक्ति कि क्या किसी समुदाय के क्रीमी लेयर को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल किया गया है, एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सौंपी गई थी, जो तहसीलदार के पद से नीचे का नहीं होना चाहिए। हालांकि, राज्य में ग्राम अधिकारियों द्वारा ऐसा कार्य किया गया था।
संगठन के अनुसार, मुस्लिम/ईसाई समुदायों द्वारा इसका व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया है क्योंकि वे इस तथ्य को छुपा सकते थे कि वे सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से आगे हैं और उस आरक्षण को प्राप्त कर लेते हैं जिसके वे हकदार नहीं हैं।
इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने यह घोषित करने के लिए एक निर्देश देने की प्रार्थना की थी कि मुस्लिम, लैटिन कैथोलिक, ईसाई नादर और अनुसूचित जाति के जो लोग ईसाई धर्म के किसी भी संप्रदाय में परिवर्तित हो गए हैं, उनको राज्य में पिछड़े वर्ग/ सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग का नहीं माना जाएगा।
राजपत्र में प्रकाशित पिछड़े वर्गों/सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची के संचालन और कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई थी।
फैसलाः
खंडपीठ ने जुर्माना लगाते हुए कहा कि इस राशि का उपयोग राज्य में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए किया जाए।
यह भी माना गया कि जब केंद्र या राज्य ने राज्य में कुछ समुदायों को अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग/सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में घोषित करने की अधिसूचना जारी कर दी है और जब इस तरह की घोषणा करने की शक्ति भारत के राष्ट्रपति को प्रदान की गई है, तो यह स्पष्ट नहीं था कि कैसे याचिकाकर्ता ने आर्टिकल 226 के तहत अदालत से यह घोषणा करने की मांग की है कि मुस्लिम, लैटिन कैथोलिक, ईसाई नादर और अनुसूचित जाति के जो लोग ईसाई धर्म के किसी भी संप्रदाय में परिवर्तित हो गए हैं,उनको केरल राज्य में पिछड़े वर्ग/सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत न माना जाए या वो इसके तहत आरक्षण पाने के हकदार नहीं है?
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि,''हमारा विचार है कि तत्काल रिट याचिका मराठा के मामले में तय कानूनी स्थिति के संबंध में बिना किसी शोध के दायर की गई है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत बाध्यकारी है। याचिकाकर्ता ने एक मामला पेश किया है कि केरल राज्य में बिना किसी आधार के अल्पसंख्यकों और अन्य समुदायों को आरक्षण प्रदान किया गया है और इस आधार पर कुछ समुदायों को पिछड़े वर्गों/सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची से हटाने की प्रार्थना की थी कि उनको इस सूची में शामिल करना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।''
केस का शीर्षकः हिंदू सेवा केंद्रम बनाम भारत संघ व अन्य
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