'किसी की स्वतंत्रता दांव पर है': केरल हाईकोर्ट ने माता-पिता के खिलाफ पॉक्सो मामले में जमानत पर विचार करते हुए बच्चे की कस्टडी पर सावधानी बरतने की सलाह दी
Shahadat
9 March 2023 11:33 AM IST
केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत अपराधों से संबंधित जमानत आवेदनों पर विचार करते हुए, जिसमें माता-पिता द्वारा बाल शोषण के आरोप शामिल हैं, अदालतों को इस मामले को बहुत सावधानी से देखना चाहिए, खासकर जब बच्चे की कस्टडी को लेकर माता-पिता के बीच मुकदमेबाजी हो।
जस्टिस जियाद रहमान की एकल पीठ ने अपने 10 वर्षीय बेटे के यौन उत्पीड़न के आरोपी पिता द्वारा दायर जमानत याचिका स्वीकार करते हुए आगाह किया,
“ऐसे मामलों में जब अदालत के सामने रखी गई सामग्री आरोपों की सत्यता के रूप में उचित संदेह पैदा करती है तो अदालतों को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत शक्तियों को लागू करने में संकोच नहीं करना चाहिए। जो दांव पर लगा है, वह किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अखंडता, गरिमा और कभी-कभी जीवन भी होता है। सीआरपीसी की धारा 438 के तहत शक्ति न्यायालय के लिए व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है, जो कि भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों में से एक है।
सुहारा और अन्य बनाम मुहम्मद जलील में अदालत के फैसले का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि पॉक्सो एक्ट का दुरुपयोग करके जैविक पिता के खिलाफ झूठे मामलों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे मामलों को फैमिली कोर्ट द्वारा सावधानी से संभाला जाना चाहिए, जब बच्चे के लिए माता-पिता के बीच कस्टडी की लड़ाई है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अभिषेक एस. राजीव ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पर उसकी पत्नी द्वारा झूठा आरोप लगाया जा रहा है, जिससे उसे अपने बेटे के साथ किसी भी तरह की बातचीत से वंचित रखा जा सके। वकील ने बताया कि पिता और मां के बीच विवाह के विघटन के संबंध में मुकदमा फैमिली कोर्ट के समक्ष लंबित है। यह भी बताया गया कि फैमिली कोर्ट ने पिता को बच्चे के साथ बातचीत करने की अनुमति देते हुए कई आदेश पारित किए, लेकिन मां ने उसका पालन नहीं किया।
उक्त आदेशों के उल्लंघन के संबंध में कार्यवाही भी फैमिली कोर्ट के समक्ष लंबित है। लोक अभियोजक श्रीजीत वी एस ने प्रस्तुत किया कि अग्रिम जमानत देने से जांच की प्रगति में बाधा आएगी।
इस मामले में आरोप यह है कि फैमिली कोर्ट के आदेश के तहत बच्चे के साथ बातचीत के दौरान पिता ने उसे पीड़िता के बचपन की नग्न तस्वीरें दिखाईं। कथित तौर पर उसने बच्चे के साथ बातचीत के दौरान पीड़िता के गुप्तांगों को यौन मंशा से छुआ। अदालत ने परिवार अदालत के आदेशों का विश्लेषण करते हुए कहा कि उक्त आदेशों के अनुसार पिता का बेटे के साथ व्यवहार सहज था और उस समय मां द्वारा कोई आरोप नहीं लगाया गया।
अदालत ने यह भी कहा कि जब बच्चे को फैमिली कोर्ट द्वारा काउंसलर के पास भेजा गया तो पीड़िता द्वारा यौन उत्पीड़न का ऐसा कोई खुलासा नहीं किया गया। अगर ऐसा होता तो काउंसलर ने सिफारिश नहीं की होती कि बच्चे को अपने पिता के साथ अधिक बातचीत करने की अनुमति दी जाए।
अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों की सत्यता पर संदेह व्यक्त किया और कहा,
"उपरोक्त संदर्भित घटनाओं के अनुक्रम से जो धारणा प्राप्त की जा सकती है, वह इस अदालत को यह विचार करने के लिए मजबूर करती है कि याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आदेश नितांत आवश्यक है। यह न्यायालय आघात, गरिमा की हानि और अन्य कठिनाइयों को अनदेखा नहीं कर सकता, जो उस याचिकाकर्ता जो कि बिना किसी आपराधिक पृष्ठभूमि के शिक्षित व्यक्ति है, उसको संदेह के साये में आरोपों के आधार पर हिरासत में जाने के लिए मजबूर किया जाता है। यदि अंततः यह पता चलता है कि आरोप झूठे हैं तो इस तरह की हिरासत के कारण किसी व्यक्ति को होने वाले नुकसान की भरपाई कोई नहीं कर सकता।"
हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि आरोपी को जांच अधिकारी के सामने आत्मसमर्पण करना है और जांच में सहयोग करना है। इसी के अनुसार, जमानत की शर्तें लगाई गईं।
केस टाइटल: XXXXXX बनाम केरल राज्य
साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 124/2023
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