कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन शोषण के आरोपी लेक्चरर की जमानत रद्द की; कहा-ट्रायल कोर्ट धारा 439(1ए) सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता को सुनने के लिए बाध्य

LiveLaw News Network

22 Jan 2022 8:40 AM GMT

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन शोषण के आरोपी लेक्चरर की जमानत रद्द की; कहा-ट्रायल कोर्ट धारा 439(1ए) सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता को सुनने के लिए बाध्य

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपी एक लेक्चरर को जमानत देने के आदेश को रद्द कर दिया। निचली अदालत आदेश पारित करने से पहले शिकायतकर्ता/पीड़ित को सुनवाई का अवसर देने में विफल रही, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उक्त फैसला दिया।

    ज‌स्टिस एचपी संदेश ने गुरुराज एल को जमानत देने के 10 अगस्त, 2021 के आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाए और उसे सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत हिरासत में लिया जाए।

    कोर्ट ने कहा, " मामले में, पीड़ित लड़की की उम्र लगभग 14 साल 10 महीने 21 दिन है और जैसा कि आईपीसी की धारा 376 (3) के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 439 (1 ए) के तहत अनिवार्य है, जो 2018 में संशोधित किया गया है, उस पर ट्रायल कोर्ट द्वारा विचार नहीं किया गया है और आदेश पारित करने से पहले शिकायतकर्ता/मुखबिर/पीड़ित को एक अवसर देना चाहिए था और उसका अनुपालन नहीं किया गया है।"

    पृष्ठभूम‌ि

    आरोपी लेक्चरर पर पत्नी की सहायता से पीड़ित छात्रा का यौन शोषण करने का आरोप है। वह छात्रा को नंगा कर उसकी फोटो भी लेता था। छात्रा को धमकी दी जाती थी कि अगर उसने इसका खुलासा किया तो उसे जान से मार दिया जाएगा।

    पीड़ित लड़की ने कहा कि जब उसने पैसे की मांग की तो उसने घर से दस हजार रुपये चुराकर आरोपी को दिए थे। शिकायत के आधार पर लेक्चरर और उसकी पत्नी खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

    आरोपी को 08.08.2021 को आईपीसी की धारा 376(2), 506 और 384 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4, 5 (एफ), 6, 8 और 14 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 (बी) के तहत गिरफ्तार किया गया। जब आरोपी ने जमानत अर्जी दाखिल की तो उसे रिमांड के लिए कोर्ट में पेश किया गया।

    ट्रायल जज ने आरोपों की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया और 10.08.2021 के आदेश के तहत उसे जमानत दे दी। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और जमानत रद्द करने की प्रार्थना की गई।

    कोर्ट के समक्ष विशेष लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि जमानत आदेश जल्दबाजी में पारित किया गया था और पीड़ित को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश विकृत है और इसमें इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष

    हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रायल जज ने अपने आदेश के पैराग्राफ 10 में कारण बताते हुए इस विसंगति के संबंध में ध्यान दिया कि वह 8वीं या 9वीं कक्षा में पढ़ रही थी, लेकिन तथ्य यह है कि कानून के तहत अनिवार्य रूप से कोई नोटिस नहीं दिया गया।

    अदालत ने कहा, "जब पीड़ित लड़की सामान्य रूप से व्यवहार नहीं कर रही थी, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया और समझाने पर उसने खुलासा किया कि उसके साथ यौन संबंध बनाए गए थे और इसलिए शिकायत दर्ज करने में देरी हुई। नाबलिग लड़की से बलात्कार के जघन्य अपराध में शिकायत दर्ज करने में देरी शिकायतकर्ता के मामले पर अविश्वास करने का आधार नहीं हो सकती है।"

    बेंच ने जमानत देने में ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए कारणों में गलती पाते हुए कहा, "कोर्ट को यह देखना होगा कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत विवेक का प्रयोग करते हुए प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया है या नहीं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश विद्वान अधिवक्ता के तर्क में एक बल है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा एक विकृत आदेश पारित किया गया है।"

    कोर्ट ने कहा, "यह याचिकाकर्ता का मामला नहीं है कि प्रतिवादी नंबर 2 ने जमानत आदेश की शर्तों का उल्लंघन किया है, बल्‍कि ट्रायल कोर्ट का अवलोकन यह है कि यदि आपत्तिजनक सामग्री एकत्र की जाती है तो पीड़ित के लिए विकल्प खुला है।

    विद्वान अधिवक्ता का यह निवेदन कि यह न्यायालय याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अवसर दे सकता है और उक्त स्थिति तब उत्पन्न नहीं होती जब धारा 439(1ए) सीआरपीसी के अनिवार्य प्रावधानों के गैर-अनुपालन में आदेश पारित किया गया हो और आईपीसी की धारा 376 (3) और संशोधित प्रावधान 2018 में लागू किए गए हैं।"

    तद्नुसार इसने याचिका को स्वीकार किया और आरोपी को दी गई जमानत को रद्द कर दिया।

    केस शीर्षक: ललिता बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: आपराधिक याचिका संख्या 7143/2021

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Kar) 22

    आदेश की तिथि: 14 जनवरी, 2022

    उपस्थिति: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट सचिन बीएस; आर-1 के लिए विशेष लोक अभियोजक वीएस हेगड़े, साथ में एडवोकेट कृष्‍णा कुमार, आर-2 के लिए एडवोकेट चंद्रशेखर आरपी

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