'नीतिगत निर्णय': जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस्लामिक बैंकिंग विंडो की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया

Shahadat

27 July 2022 6:08 AM GMT

  • नीतिगत निर्णय: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस्लामिक बैंकिंग विंडो की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर बैंक की सभी शाखाओं में इस्लामिक बैंकिंग (शरिया अनुपालन विंडो) शुरू करने की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया।

    चीफ जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस जावेद इकबाल वानी की खंडपीठ ने कहा कि वह सरकार के नीतिगत निर्णयों के दायरे में दखल नहीं दे सकती।

    गैर सरकारी संगठन जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फोरम द्वारा 2018 में दायर जनहित याचिका में दीपक मोहंती समिति द्वारा अनुशंसित शरिया अनुपालन विंडो (इस्लामिक बैंकिंग) की शुरुआत के लिए आवश्यक अधिसूचना जारी करने के साथ-साथ आरबीआई का अंतर-विभागीय समूह की रिपोर्ट के आलोक में केंद्रीय वित्त मंत्रालय को निर्देश देने की मांग की गई थी। फोरम ने आरबीआई को जम्मू-कश्मीर बैंक सहित घटक बैंकों में तत्काल कदम उठाने के लिए निर्देश देने की भी मांग की ताकि शरिया अनुपालन विंडो की सुविधा हो सके।

    याचिका में फोरम ने अदालत से जम्मू-कश्मीर बैंक लिमिटेड को गैर-निष्पादित खातों (एनपीए) के पूरे विवरण और एनपीए में बकाया राशि की वसूली के लिए उठाए गए कदमों के पूरे विवरण को अदालत के सामने रखने के लिए निर्देश पारित करने की भी मांग की। इससे सार्वजनिक धन का न तो खाताधारकों या बैंक के प्रबंधन द्वारा दुरूपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    फोरम ने कहा कि चूंकि प्रतिवादी शरिया अनुपालन विंडो के निर्माण के लिए सिफारिशों को अमल में लाने में अपनी स्वयं की समितियों और विशेषज्ञ समूहों की रिपोर्ट का पालन करने में विफल रहे हैं, इसलिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है।

    याचिकाकर्ता ने आगे कहा,

    "जम्मू-कश्मीर में अधिकांश नागरिक मुसलमान हैं। इस प्रकार उन्हें विकास के सभी रास्तों का आनंद लेने का संवैधानिक अधिकार है, बशर्ते कि यह उनके विश्वास का उल्लंघन न करें।"

    फोरम ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने भी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के समर्थन में जकात की भूमिका को स्वीकार किया है।

    पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद देखा कि आरबीआई की ओर से जवाबी हलफनामा दायर किया गया है। हलफनामा में कहा गया कि वर्ष 2013 में वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने आरबीआई से भारत में इस्लामी बैंकिंग की शुरूआत पर अपनी राय देने का अनुरोध किया था। भारत में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए राजेश वर्मा की अध्यक्षता में अंतर-विभागीय समूह का गठन किया गया था।

    सरकार ने अपने 21-3-2017 के पत्र के माध्यम से विशेष रूप से अपने निर्णय से अवगत कराया कि इस्लामिक बैंकिंग संभव नहीं है और शरिया बैंकिंग विंडो नहीं खोली जा सकती है।

    पीठ ने आगे कहा कि सरकार का उपरोक्त निर्णय एक नीतिगत निर्णय है, जो विशेष रूप से जनहित याचिका में न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है।

    अदालत सरकार के नीतिगत निर्णयों के दायरे में प्रवेश नहीं कर सकती है और यदि याचिकाकर्ता या कोई व्यक्ति उपरोक्त नीतिगत निर्णय से व्यथित है तो वह उचित मंच के समक्ष इसे चुनौती देने के लिए उचित कदम उठा सकता है।

    केस टाइटल: जम्मू और कश्मीर पीपुल्स फोरम बनाम भारत संघ और अन्य।

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