'क्या यह राज्य का क्रूर हाथ है, जो काम कर रहा है? ', उत्तराखंड HC ने राजद्रोह के आरोपी पत्रकार को अंतरिम जमानत देते हुए गंभीर सवाल उठाये

SPARSH UPADHYAY

5 Sep 2020 10:03 AM GMT

  • क्या यह राज्य का क्रूर हाथ है, जो काम कर रहा है? , उत्तराखंड HC ने राजद्रोह के आरोपी पत्रकार को अंतरिम जमानत देते हुए गंभीर सवाल उठाये

    उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गुरुवार (03 सितंबर) को, राज्य सरकार के समक्ष विस्तृत और गंभीर सवालों की एक श्रृंखला प्रस्तुत की और यह निर्देश दिया कि राज्य की ओर से उन सवालों के संबंध में जवाबी हलफनामा दाखिल किया जाए और तब तक जमानत के आवेदक को अंतरिम जमानत दे दी।

    न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की पीठ एक राजेश शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो 2020 की प्राथमिकी संख्या 265 में धारा 420, 467, 468, 469, 471, 120-बी, 124-ए आईपीसी, पुलिस स्टेशन नेहरू कॉलोनी, जिला देहरादून के तहत जमानत की मांग कर रहा था।

    मामले की पृष्ठभूमि

    देहरादून के रहने वाले डॉ. हरेंद्र रावत ने 31 जुलाई को नेहरू कॉलोनी पुलिस स्टेशन देहरादून में पत्रकार राजेश शर्मा (मौजूदा जमानत आवेदक) के खिलाफ फर्जी खबर के चलते उनकी और उनकी पत्नी की छवि को धूमिल करने के चलते एफआईआर दर्ज करायी।

    दरअसल कथित तौर पर आवेदक ने उनके खिलाफ विडियो डाला था जिसमे उनपर कुछ आरोप भी लगाए गए थे।

    याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसने एक उमेश शर्मा (जो पहले ही अदालत से सुरक्षा प्राप्त कर चुका है) के फेसबुक पोस्ट से उक्त समाचार आइटम/वीडियो को प्राप्त किया था।

    उक्त समाचार आइटम / वीडियो में कहा गया है कि डॉ. हरेंद्र रावत की पत्नी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी, बहनें हैं। उक्त समाचार मद में, राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ भी कुछ आरोप लगाए गए थे।

    पार्टियों द्वारा दिए गए तर्क

    आवेदक की ओर से यह दलील दी गई कि उसका नाम एफआईआर में भी नहीं लिया गया है; और वह अब 35 दिनों से हिरासत में है; प्राथमिकी में आरोप उसके खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाते हैं; एफआईआर में नामित दो व्यक्तियों में से, उमेश शर्मा को पहले ही अदालत से सुरक्षा प्राप्त हो चुकी है।

    राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया था कि, वास्तव में, आवेदक की हिरासत में पूछताछ आवश्यक है। आगे यह तर्क दिया गया कि यह तीसरी बार है, जब सरकार को विघटित करने का प्रयास किया गया है। वर्ष 2018 में पहले दो एफआईआर दर्ज की गई थीं, एक उत्तराखंड राज्य में और दूसरी झारखंड राज्य में।

    न्यायालय का अवलोकन

    अदालत ने पाया कि प्राथमिकी 31 जुलाई 2020 को 4:20 बजे दर्ज की गई थी और आवेदक को उसी रात 11:00 बजे गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने आगे कुछ सवाल उठाए: -

    "क्या आवेदक के खिलाफ प्राथमिकी में कोई विशिष्ट मामला है? क्या आवेदक के खिलाफ जालसाजी के बारे में कोई विशिष्ट आरोप हैं? और यदि हां, तो वे क्या हैं? कौन से दस्तावेज़ जाली थे? कौन से जाली दस्तावेज असली के रूप में इस्तेमाल किए गए थे? "

    अदालत ने आगे टिप्पणी की,

    "परेशानी इस बात को लेकर अधिक है कि धारा 124-ए आईपीसी को कैसे जोड़ा गया? भले ही तर्कों के लिए, यह स्वीकार किया जाए कि कुछ आरोपों को किसी उच्च कार्यकारिणी के खिलाफ लगाया गया था, लेकिन क्या यह राजद्रोह होगा, जोकि धारा 124-ए आईपीसी के तहत दंडनीय है? राज्य इतनी जल्दबाजी में क्यों था? क्या यह राज्य का एक क्रूर हाथ है, जो कार्य कर रहा है? इस जमानत में कई सवालों के जवाब की आवश्यकता होगी।"

    इसलिए, अदालत ने राज्य को दो सप्ताह के भीतर एक जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहा। यह निर्देशित किया गया था कि विशेष रूप से काउंटर हलफनामे में कुछ निम्नलिखित उत्तर दिए जाएं:-

    1. क्या यह सच है कि तात्कालिक मामले में एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस को informant द्वारा एक आवेदन दिया गया था? यदि हां, तो वह आवेदन कब दिया गया और कहां है? और कानून के किस प्रावधान के तहत यह आवेदन लिया जाता है?

    2. क्या यह सच है कि informant के पहले के आवेदन पर कुछ जांच की गई थी और यदि हां, तो कानून के किस प्रावधान के तहत और किसने इसका संचालन किया है? वह जांच रिपोर्ट कहां है, इसे प्रतिवाद के साथ दायर किया जाए।

    3. क्या यह सच है कि उस जांच का परिणाम informant को दिया गया था? यदि हां, तो उसने इसके लिए कब आवेदन किया और कानून के किस प्रावधान के तहत उसे दिया गया?

    अदालत ने आगे कहा कि इस पर भी विचार-विमर्श किया जाना आवश्यक है कि तत्काल मामले में एफआईआर क्या है; INFORMANT द्वारा दिए गए पहले का आवेदन या तत्काल आवेदन जिसे राज्य ने एफआईआर के रूप में माना है?

    इसके साथ ही अदालत ने आवेदक को जमानत पर रिहा किया

    मामले को आगे की सुनवाई के लिए 18 सितंबर, 2020 को सूचीबद्ध किया गया है।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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