क्या सीडब्ल्यूसी द्वारा यौन पीड़ितों को स्थानीय भाषा में 'जन्म लेने वाले बच्चों के सरेंडर' के बारे में सूचित करने की कोई प्रक्रिया है? दिल्ली हाईकोर्ट विचार करेगा
Avanish Pathak
16 Nov 2023 8:34 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट इस सवाल पर विचार करेगा कि क्या बाल कल्याण समिति को यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को उन बच्चों, जो पैदा हुए हैं और बाद में उन्हें गोद लेने के लिए दिया जाना है, के संरेडर के प्रावधानों को स्थानीय या बोली जाने वाली भाषा में सूचित किया जाना चाहिए।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने POCSO मामले में आरोपी एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए वकील कुमुद लता दास को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया। मामले में आरोपी ने एक नाबालिग लड़की से सहमति से शादी की थी और एक बच्चा पैदा हुआ था जिसे सरेंडर कर दिया गया था और बाद में गोद ले लिया गया था।
आरोपी को 12 अक्टूबर को जस्टिस शर्मा ने जमानत दे दी थी। नाबालिग पीड़िता की मां ने 2021 में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उसकी बेटी का अपहरण कर लिया है। जब नाबालिग को दिल्ली पुलिस ने बरामद किया तो वह गर्भवती थी। इसके बाद, आरोपी को सितंबर 2021 में गिरफ्तार कर लिया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
पीड़िता का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया जिसमें उसने कहा कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ भागी थी। मामले में नवंबर 2021 में आरोप पत्र दाखिल किया गया था। आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस शर्मा ने संबंधित आईओ से सीडब्ल्यूसी का पूरा रिकॉर्ड सुनिश्चित करने को कहा था, जिसके तहत बच्चे को कथित तौर पर सरेंडर किया गया था या गोद लेने के लिए दिया गया था।
6 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सीडब्ल्यूसी के रिकॉर्ड का अवलोकन किया और पाया कि सरेंडर का आवेदन और उसका स्पष्टीकरण सभी अंग्रेजी भाषा में लिखा या भरा गया था, जिसे हर कोई समझ नहीं पाता है.
कोर्ट ने कहा, “यहां पीड़िता शिक्षित नहीं है। इस न्यायालय ने जांच अधिकारी द्वारा दर्ज पीड़िता की मां के 25.04.2021 के पूरक बयान का अवलोकन किया है, जिसने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसकी बेटी यानी पीड़िता अनपढ़ है और वह केवल उर्दू जानती है। उसने यह भी कहा कि पीड़िता के भाई-बहन भी केवल उर्दू भाषा जानते हैं।''
जस्टिस शर्मा ने कहा कि यह और भी महत्वपूर्ण है कि पूरी कार्यवाही को नाबालिग पीड़िता और उसकी मां को उनकी स्थानीय भाषा या जिस भाषा में वे बोलते और समझते हैं, उसमें समझाया जाना चाहिए था। सीडब्ल्यूसी के समक्ष दर्ज किए गए बयानों पर ध्यान देते हुए अदालत ने कहा कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ संबंध बनाए रखा था और गर्भावस्था जारी रखने का भी विकल्प चुना था।
यह भी नोट किया गया कि इस बीच, आरोपी न्यायिक हिरासत में था और सीडब्ल्यूसी के समक्ष बच्चे के सरेंडर सहित कार्यवाही के बारे में अनभिज्ञ था।
न्यायालय ने निम्नलिखित मुद्दों पर विचार करने के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया:
- क्या बाल कल्याण समिति द्वारा कोई ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई है जहां यौन उत्पीड़न के मामलों की पीड़िता को 'बच्चों के सरेंडर' से संबंधित प्रावधानों और ऐसे सरेंडर के परिणामों के बारे में स्थानीय भाषा या उस भाषा में जो वह बोलती और समझती है, सूचित/समझाया जाता है?
- बच्चे का कानूनी अभिभावक कौन होता, जबकि बच्चे के जैविक पिता और मां दोनों जीवित हैं और सहमति से रिश्ते में थे?
- क्या बच्चे को गोद देने से पहले पीड़ित को दो महीने की अवधि समाप्त होने के बाद सूचित किया गया था?
अब इस मामले की सुनवाई 22 नवंबर को होगी।
केस टाइटल: अजय बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली)