''क्या पुलिस आरोपी का पक्ष ले रही है?'': झारखंड हाईकोर्ट ने चार्जशीट में पीड़िता को गवाह नहीं बनाने पर अधिकारियों को फटकार लगाई

LiveLaw News Network

26 Jun 2021 8:45 AM GMT

  • क्या पुलिस आरोपी का पक्ष ले रही है?: झारखंड हाईकोर्ट ने चार्जशीट में पीड़िता को गवाह नहीं बनाने पर अधिकारियों को फटकार लगाई

    झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को न्यायिक आदेशों की अवहेलना और कर्तव्य का पालन न करने के मामले में संबंधित जांच अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई।

    न्यायमूर्ति आनंद सेन 13 वर्षीय नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न से संबंधित एक मामले में जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे।

    संबंधित मामले में नाबालिग पीड़िता को कई न्यायिक आदेशों के बावजूद न तो चार्जशीट में गवाह बनाया गया और न ही अदालत के समक्ष पेश किया गया।

    अपराध की गंभीरता को देखते हुए,जांच अधिकारी द्वारा नाबालिग पीड़िता को आरोप पत्र में गवाह न बनाने पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति सेन ने कहा, ''आरोप पत्र को देखने के बाद मैंने पाया है कि जांच अधिकारी ने पीड़िता को आरोप पत्र में गवाह नहीं बनाया है। इस मामले में यह वास्तव में आश्चर्य की बात है क्योंकि यह केस पाॅक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किया गया है और पीड़िता की उम्र लगभग 13 वर्ष है,फिर क्यों जांच अधिकारी ने पीड़िता को चार्जशीट में गवाह नहीं बनाया? यहां तक कि पर्यवेक्षण अधिकारी ने भी इस तथ्य की अनदेखी की है। न्यायालय यह समझने में विफल है कि एक महत्वपूर्ण मामले में पीड़िता को आरोप पत्र का गवाह क्यों नहीं बनाया गया है?''

    इसके अलावा, रिकॉर्ड के अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पुलिस अधीक्षक, साहिबगंज, डीआईजी, दुमका और पुलिस महानिदेशक, झारखंड को नाबालिग पीड़िता को अदालती गवाह के रूप में पेश करने के लिए कई पत्र लिखे गए थे। फिर भी आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई।

    पीठ ने कहा कि,''क्या पुलिस अधिकारी पीड़िता को गवाह बॉक्स में न लाकर आरोपी व्यक्तियों का पक्ष ले रहे हैं, प्रथम दृष्टया इस न्यायालय को ऐसा लग रहा है? इतना ही नहीं प्रथम दृष्टया जांच अधिकारी, पर्यवेक्षण अधिकारी, पुलिस अधीक्षक, साहिबगंज और डीआईजी,दुमका के कृत्य को भी प्रमाणिक या बोनाफाइड नहीं कहा जा सकता है। अगर इस प्रकार की जांच की जाती है,जिसमें आरोप पत्र में मुख्य व्यक्ति को गवाह नहीं बनाया जाता है तो सवाल उठना लाजिमी है।''

    न्यायमूर्ति सेन ने आगे कहा कि निचली अदालत के निर्देशों की अवहेलना कर जांच अधिकारियों ने अदालत की अवमानना की है और इसलिए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए।

    आदेश में कहा गया है कि, ''अदालत का पत्र केवल एक पत्र नहीं है। यह उक्त पत्र में जो कहा गया हैै उसे करने के लिए प्राधिकरण को एक निर्देश होता है। पत्र न्यायिक आदेश से आगे बढ़ता है। इसलिए ऐसा न करके और उन निर्देशों का जवाब न देकर , प्रथम दृष्टया, इस न्यायालय को लगता है कि अधिकारियों ने अदालत की अवमानना की है।''

    अधिकारियों को फटकार लगाते हुए, न्यायमूर्ति सेन ने कहा कि अवमानना​की कार्यवाही शुरू करने के बाद इन अधिकारियों को आंतरिक या बाहरी स्रोतों द्वारा दंडित करके कर्तव्य की इस तरह की लापरवाही को जल्द से जल्द ठीक किया जाना चाहिए।

    तदनुसार, न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक, झारखंड को निर्देश दिया है कि वह उचित जांच और सत्यापन करने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देते हुए तीन सप्ताह के भीतर एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करेंः

    1. पीड़िता को आरोप पत्र में गवाह क्यों नहीं बनाया गया?

    2. पीड़ित को चार्जशीट में गवाह न बनाने के लिए कौन जिम्मेदार है

    3. यदि डीजीपी को पता चलता है कि अब तक कोई जिम्मेदारी तय नहीं हुई है, तो डीजीपी जिम्मेदारी तय करेंगे और इस कोर्ट को जानकारी देंगे। वह इस कोर्ट को यह भी बताएंगे कि उन लोगों के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं, जिनकी लापरवाही के कारण पीड़िता को चार्जशीट में गवाह के तौर पर नहीं दिखाया गया है।

    4. पुलिस अधीक्षक, साहिबगंज और डीआईजी, दुमका ने न्यायालय के उन निर्देशों/पत्रों का जवाब क्यों नहीं दिया,जिनमें अधिकारियों को पीड़िता को अदालत के गवाह के रूप में पेश करने का निर्देश दिया गया था?

    5. पीड़िता को पेश करने के लिए निचली अदालत द्वारा 16.01.2020 को पारित आदेश और डीजीपी को संबोधित करते हुए 27.01.2020 को भेजे गए पत्र के अनुसरण में पीड़िता को न्यायालय में पेश करने के लिए स्वयं डीजीपी ने क्या कदम उठाए हैं?

    6. डीजीपी उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ क्या कदम उठाने का इरादा रखते हैं, जिन्होंने पीड़िता को अदालत में पेश नहीं किया है ताकि उसके साक्ष्य दर्ज किए जा सकें?

    7. क्यों न जांच अधिकारी, प्रभारी अधिकारी मिर्जाचैकी पीएस-साहिबगंज, पुलिस अधीक्षक, साहिबगंज और डीआईजी, दुमका के खिलाफ जानबूझकर और सोच-समझकर अदालत के उन आदेशों का उल्लंघन करने के लिए अवमानना​कार्यवाही शुरू की जाए, जिनमें निचली अदालत ने उन्हें पीड़िता को गवाह के रूप में पेश करने का निर्देश दिया था?

    आदेश की एक प्रति सचिव, गृह मंत्रालय, भारत सरकार और एडवोकेट राजीव सिन्हा, सहायक सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया को भी भेजी गई है।

    आदेश डाउनलोड/पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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