"मैं एक महिला, एक नन हूं और न्याय के लिए लड़ रही हूं": सिस्टर लूसी ने केरल हाईकोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा

LiveLaw News Network

14 July 2021 1:00 PM GMT

  • मैं एक महिला, एक नन हूं और न्याय के लिए लड़ रही हूं: सिस्टर लूसी ने केरल हाईकोर्ट  के सामने अपना पक्ष रखा

    घटनाओं के एक ऐतिहासिक मोड़ में सिस्टर लूसी कलाप्पुरा बुधवार को केरल हाईकोर्ट के समक्ष पेश हुई और कॉन्वेंट से अपनी बेदखली को चुनौती देने वाले अपने मामले में दलीलें दी। कथित तौर पर भारतीय इतिहास में किसी नन द्वारा अपना केस लड़ने के लिए अदालत में पेश होने का यह पहला उदाहरण है।

    सिस्टर लूसी कलाप्पुरा उस समय सार्वजनिक सुर्खियों में आई थी,जब उन्होंने बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ खुला विरोध प्रकट किया था, जिन पर एक नन के साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया था। पिछले महीने, वेटिकन में कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च अपीलीय प्राधिकारी ने उनकी कांगे्रगैशन से निष्कासन के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया था।

    न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखा और जोर देकर कहा कि पुलिस सुरक्षा केवल तभी दी जा सकती है,जब वह कॉन्वेंट खाली करेंगी।

    नन ने खुद पेश होने का फैसला तब किया जब उनके वकील ने उस याचिका में पेश होने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ और वकीलों से बातचीत की,परंतु कोई भी स्पष्ट रूप से इस मामले में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए इच्छुक नहीं था।

    कोर्ट ने हाल ही में सिस्टर को अंतरिम पुलिस सुरक्षा प्रदान की थी। हालांकि, फ्रान्सिस्कन क्लैरिस्ट कांगे्रगैशन(एफसीसी) के सदस्य के रूप में जारी रहने के उनके अधिकार को समाप्त कर दिया गया था, यह देखा गया था कि कॉन्वेंट में उसका निरंतर निवास केवल निरंतर संघर्ष और संघर्ष का कारण बनेगा। एक मौखिक टिप्पणी में कोर्ट ने उपरोक्त कारण से कहा कि उन्हें कॉन्वेंट छोड़ देना चाहिए।

    सिस्टर ने तर्क दिया कि,

    ''मैं पहली बार अदालत के समक्ष पेश हो रही हूं। मैंने एक साल पहले पुलिस सुरक्षा के लिए आवेदन किया था। उसी के लिए सुनवाई हाल ही में हुई थी, और मुझे अदालत ने सुरक्षा प्रदान की थी। वर्तमान में मुझे कॉन्वेंट से बेदखल करने की कार्यवाही चल रही है। मैं इसे चुनौती दे रही हूं क्योंकि यह अनुचित है। इस संबंध में, मैंने 2019 में सिविल कोर्ट के समक्ष एक शिकायत दायर की थी और मेरे पक्ष में निषेधाज्ञा आदेश जारी किया गया था।''

    सिस्टर लूसी ने कोर्ट के सामने यह भी कहा कि अगर उन्हें कॉन्वेंट खाली करने के लिए मजबूर किया गया तो उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है।

    ''मैं एक महिला हूं, न्याय के लिए लड़ने वाली एक नन। मेरी ननशिप के लिए यह महत्वपूर्ण है कि मैं इस कॉन्वेंट में रहना जारी रखूं। मैं पिछले 39 सालों से नन हूं, मुझे सड़कों पर मत फेंको। मेरे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है।''

    जब अदालत ने जोर देकर कहा कि अगर वह कॉन्वेंट में रहना जारी रखती है तो पुलिस सुरक्षा नहीं दी जा सकती है, तो याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि अगर कोर्ट उचित समझे तो कोर्ट सुरक्षा वापस ले सकती है, लेकिन उसे कॉन्वेंट खाली करने के लिए न कहा जाए। यह भी तर्क दिया गया कि उसने अपने खिलाफ जारी बेदखली नोटिस के खिलाफ मुंसिफ कोर्ट के समक्ष एक मुकदमा दायर किया था और सिविल कोर्ट द्वारा उसके मुकदमे के निपटारे तक कॉन्वेंट में रहने की अनुमति मांगी थी।

    सिस्टर ने यह भी कहा कि, ''अगर सिविल कोर्ट मुझे बाहर जाने का निर्देश देती है, तो मैं खुशी-खुशी उसका पालन करूंगी। लेकिन तब तक, मुझे कॉन्वेंट खाली करने के लिए मत कहो। मैं इस अदालत से अनुरोध कर रही हूं कि वह केवल सिविल कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने तक इंतजार करे।''

    अदालत ने तब निर्देश दिया कि वह पुलिस सुरक्षा की मांग वाली इस याचिका में कॉन्वेंट में रहने के उसके अधिकार पर विचार नहीं करेगी। लेकिन एक मौखिक टिप्पणी में पीठ ने कहा कि,

    ''समझने की कोशिश करें, यह आपकी अपनी सुरक्षा के लिए है। आपने अपनी याचिका में पादरी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। आपने खुद स्वीकार किया है कि कॉन्वेंट में आपके साथ दुर्व्यवहार किया गया है। यह बढ़ सकता है,अगर आप कॉन्वेंट में रहना जारी रखेंगी, खासकर जब अदालत आपको सुरक्षा नहीं दे सकती है। बेहतर है कि आप ऐसी जगह चले जाएं जहां मैं आपको पुलिस सुरक्षा प्रदान कर सकता हूं।''

    इसी के तहत कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया है।

    पृष्ठभूमिः

    इस महीने की शुरुआत में पिछली सुनवाई के दौरान, कॉन्वेंट के मदर सुपीरियर के वकील ने सुप्रीमम ट्रिब्यूनल ऑफ सिग्नेचर एपोस्टोलिका द्वारा जारी किए गए डिक्रीटम की प्रति पेश की थी और तर्क दिया गया था कि उसे एफसीसी के सदस्य के रूप में जारी नहीं रखा जा सकता है और इसलिए अब से वह एफसीसी की रिलिजस हैबिट पहननें या रिलिजस सिस्टर के साथ कॉन्वेंट में रहने की हकदार नहीं है।

    केस का शीर्षकः सिस्टर लूसी कलाप्पुरा बनाम केरल राज्य

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