यदि एफआईआर में आरोपों की पुष्टि नहीं होती तो जांच जारी रखना कानून का दुरुपयोग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एसएचओ के खिलाफ भ्रष्टाचार की एफआईआर खारिज की

Avanish Pathak

20 May 2022 7:01 AM GMT

  • यदि एफआईआर में आरोपों की पुष्टि नहीं होती तो जांच जारी रखना कानून का दुरुपयोग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एसएचओ के खिलाफ भ्रष्टाचार की एफआईआर खारिज की

    जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक एसएचओ के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। उस पर जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 4-ए और धारा 120-बी आरपीसी के तहत अपराध का आरोप था।

    जस्टिस संजय धर ने कहा,

    "यह एक स्थापित कानून है कि यदि एफआईआर में लगाए गए आरोप मामले की जांच के दरमियान जांच एजेंसी द्वारा एकत्रित सामग्री से प्रमाणित नहीं होते हैं, तो ऐसे मामलों में जांच/अभियोजन जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस प्रकार, यह यह एक उपयुक्त मामला है जहां इस न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके एफआईआर में कार्यवाही को रद्द करना चाहिए।"

    याचिकाकर्ता-थानेदार ने जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 4-ए और 120-बी आरपीसी के तहत अपराधों के लिए पुलिस स्टेशन, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, श्रीनगर में पंजीकृत एफआईआर संख्या 20/2021 को चुनौती दी थी।

    बिस्मा नवाज नामक एक महिला ने एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन एसएचओ, पुलिस स्टेशन, सौरा ने एएसआई मोहम्मद अशरफ के माध्यम से उसके और उसके पिता से एफआईआर दर्ज करने के एवज में इनाम के रूप में रिश्वत की मांग की थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता बिस्मा नवाज और उसके पिता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत झूठी और फर्जी है। उसने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा की गई प्रारंभिक जांच को साबित नहीं होने के कारण बंद कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि जबकि जांच लगभग दो साल तक जारी रही। यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रारंभिक जांच बंद होने के बावजूद, प्रतिवादियों ने आक्षेपित एफआईआर दर्ज की है।

    उन्होंने यह दलील दी है कि आक्षेपित एफआईआर का पंजीकरण प्रथम दृष्टया कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है।

    प्रतिवादी ने जवाब दाखिल कर याचिकाकर्ता की याचिका का पुरजोर विरोध किया। यह प्रस्तुत किया गया था कि सरकार द्वारा मामले की जांच की गई और यह पाया गया कि जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 4-ए के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध बनता है।

    कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता ने कहा है कि वर्ष 2017 में परवेज अहमद शेख नाम के एक व्यक्ति ने उसका अपहरण कर लिया था और इस संबंध में उसने पुलिस स्टेशन, सौरा के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, लेकिन उक्त आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी, जिसने उसे उसे अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए विवश किया, जिसके बाद एसएचओ को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश जारी किया गया था। इसके बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं की गई।

    अदालत ने रिकॉर्ड देखने के बाद यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता और उसके पिता ने कहा है कि याचिकाकर्ता के रवैये के कारण, उन्हें लगा कि शायद याचिकाकर्ता उनसे अवैध पैसा लेने की कोशिश कर रहा है, हालांकि उन्होंने अपने बयानों में स्पष्ट रूप से कहा है कि न तो याचिकाकर्ता और न ही उसकी ओर से किसी भी व्यक्ति ने उनसे कभी भी अवैध पैसे की मांग की।

    इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर पीसी एक्ट की धारा 4-ए के तहत अपराध की सामग्री मामले की जांच के दौरान दर्ज इन दो महत्वपूर्ण गवाहों के बयानों से नहीं बनती है। उक्त परिस्थिति को देखते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर रद्द करते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया।

    केस टाइटल: मोहम्मद शाहनवाज खान बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य।

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