वैवाहिक विवादों में समझौते के संबंध में 'हाइपर-टेक्निकल' दृष्टिकोण प्रतिकूल: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द किया

Shahadat

30 Oct 2023 6:20 AM GMT

  • वैवाहिक विवादों में समझौते के संबंध में हाइपर-टेक्निकल दृष्टिकोण प्रतिकूल: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में पति के खिलाफ लंबित आपराधिक मामला इस तर्क के आधार पर रद्द कर दिया कि संबंधित पति-पत्नी के बीच पहले ही समझौता हो चुका है। इसलिए अदालत समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग कर सकती है।

    अदालत ने मामले का निपटारा करते हुए कहा,

    “अगर पति-पत्नी के बीच उनके परिवार के सदस्यों के प्रयासों से समझौता हो जाता है तो यह न केवल समाज के लिए अच्छा होगा, बल्कि उनके शेष जीवन के लिए भी फायदेमंद होगा। समझौते का उद्देश्य समझौता करना है। समझौते का उद्देश्य जीवन में समझौता करना और शांति से रहना है।”

    जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी कहा कि कानून को 'संबंधित समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने' के साधन के रूप में भी माना जाना चाहिए, न कि केवल 'अपराधियों को दंडित करने के लिए'। अदालत ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवादों में समझौते को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे अदालत में लंबी कार्यवाही के कारण पक्षकारों को होने वाले समय के नुकसान से बचा जा सके, 'जहां विवाद को समाप्त करने में कई साल लग जाते हैं।'

    अदालत ने मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा कि जब पति और पत्नी ने मुद्दों का सौहार्दपूर्ण समाधान किया और अलग-अलग रहने के सचेत निर्णय पर पहुंचे हैं तो ऐसे में समझौते का 'हाइपर-टेक्निकल दृष्टिकोण' प्रतिकूल हो सकता है।

    पीठ ने टिप्पणी की,

    “…इसलिए समझौते के संबंध में हाइपर-टेक्निकल दृष्टिकोण प्रतिकूल हो सकता है और महिला के हित के विरुद्ध और उस पवित्र उद्देश्य के विरुद्ध हो सकता है, जिसके लिए पति और पत्नी के बीच विवादों का निपटारा किया गया, क्योंकि यदि आपराधिक कार्यवाही अभी भी जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो पत्नी और उसके पति के परिवार के सदस्यों के बीच विवाद की नई श्रृंखला शुरू हो सकती है।”

    आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए अदालत ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2012) और बी.एस. जोशी बनाम हरियाणा राज्य (2003) का विश्लेषण किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियां सीआरपीसी की धारा 320 तक सीमित नहीं हैं, जो पूरी तरह से अपराधों के शमन से संबंधित है।

    ज्ञान सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को दी गई शक्तियां सीआरपीसी की धारा 320 से काफी अलग हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने उक्त मामले में कहा था,

    “...अंतर्निहित शक्ति बिना किसी वैधानिक सीमा के व्यापक प्रचुरता वाली है, लेकिन इसका प्रयोग ऐसी शक्ति में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाना चाहिए; (i) न्याय के उद्देश्य को सुरक्षित करने के लिए या (ii) किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए।”

    इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी कहा कि उन मामलों में एफआईआर रद्द करने का निर्णय लिया गया, जहां अपराधी और पीड़ित का समझौता प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञान सिंह के मामले में यह भी रेखांकित किया कि 'अत्यधिक और पूर्व-प्रमुख सिविल टेस्ट' वाले आपराधिक मामले 'रद्द करने के उद्देश्यों के लिए अलग आधार' पर खड़े होते हैं। अदालत ने दहेज या पारिवारिक विवादों से संबंधित विवाह से उत्पन्न अपराधों को भी उन अपराधों की श्रेणी में शामिल किया, जहां गलती मूल रूप से निजी या व्यक्तिगत प्रकृति की होती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में कहा था,

    “…मामलों की इस श्रेणी में हाईकोर्ट आपराधिक कार्यवाही रद्द कर सकता है यदि उसके विचार में अपराधी और पीड़ित के बीच समझौते के कारण दोषसिद्धि की संभावना बहुत कम और धूमिल है और आपराधिक मामले को जारी रखने से अभियुक्त को बहुत उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा। साथ ही पीड़ित के साथ पूर्ण समझौते के बावजूद आपराधिक मामला रद्द नहीं करने से उसके प्रति पूर्वाग्रह और अत्यधिक अन्याय होगा।”

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 323 और 324 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई। 2018 में शादी के बाद पति-पत्नी के बीच संबंध लगातार खराब होते गए। प्रतिवादी/शिकायतकर्ता पत्नी के अनुसार, उसे छोटे-छोटे कारणों से पति के परिवार द्वारा परेशान किया जाता था। इसके अलावा, रेजीडेंसी वीजा की व्यवस्था करने की आड़ में शिकायतकर्ता के परिवार से भारी रकम लेने के बावजूद कथित तौर पर उसे अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया में शिफ्ट होने के अवसर से भी वंचित कर दिया गया।

    हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि ऑस्ट्रेलियाई कोर्ट पहले ही उन दोनों को तलाक दे चुका है और एफआईआर पूरी तरह से पति और उसके परिवार को परेशान करने के इरादे से दर्ज की गई है।

    बाद में दोनों पक्षकारों द्वारा सीआरपीसी की धारा 320 के तहत आवेदन दायर किया गया और समझौता आवेदन हाईकोर्ट के प्रधान रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित भी किया गया। इसलिए आवेदक याचिकाकर्ताओं द्वारा अपराध नंबर 124/2021 में कार्यवाही रद्द करने का आग्रह किया गया, क्योंकि इस स्तर पर आपराधिक मामले को जारी रखना निचली अदालत के 'मूल्यवान समय की सरासर बर्बादी' होगी। समझौते की शर्तों के अनुसार, दोनों पक्षकारों के बीच इस बात पर भी सहमति हुई कि उनमें से कोई भी इस विवाह के संबंध में भविष्य में कोई और कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं करेगा।

    समझौते के सत्यापन के बाद शिकायतकर्ता स्वयं हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित हुई और अदालत से ट्रायल कोर्ट में चल रही आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने का अनुरोध किया।

    केस टाइटल: पंकज मेहता और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

    केस नंबर: आपराधिक मामला नंबर 33634/2023

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