हाईकोर्ट ने गुवाहाटी यूनिवर्सिटी को 17 साल पहले नियुक्त एड-हॉक लेक्चरार को नियमित करने पर विचार करने का निर्देश दिया
Shahadat
14 Jan 2023 2:10 PM IST
गुवाहाटी हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने हाल ही में गुवाहाटी यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज में एड-हॉक लेक्चरार की सेवा के नियमितीकरण के लिए प्रार्थना करने वाली रिट याचिका की अनुमति दी, जिसे स्वास्थ्य के कारण इस्तीफा देने वाले पार्ट-टाइम लेक्चरार की अचानक रिक्ति के बाद 17 साल पहले अनियमित रूप से नियुक्त किया गया था।
जस्टिस नेल्सन साइलो ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज में लगभग 17 साल की सेवा की, उसे सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने तक अस्थायी कर्मचारी के रूप में बने रहने देना अनुचित होगा ... याचिकाकर्ता की नियुक्ति, तथ्यों और परिस्थितियों के तहत इसे अनियमित नियुक्ति भी कहा जा सकता है, लेकिन अवैध नियुक्ति नहीं।"
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का मामला कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमादेवी (3) और अन्य। (2006) 4 एससीसी 1 के संदर्भ में विचार करने योग्य है, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो कर्मचारी कोर्ट या ट्रिब्यूनल के आदेश के हस्तक्षेप के बिना 10 (दस) साल या उससे अधिक समय तक काम करना जारी रखते हैं, उन्हें एकमुश्त उपाय के रूप में नियमित करने पर विचार किया जाना चाहिए। अनियमित रूप से नियुक्त न होकर अवैध रूप से नियुक्त किये गये व्यक्तियों पर विचार किये जाने का निर्देश दिया गया।
तथ्यात्मक मैट्रिक्स
याचिकाकर्ता 56% अंकों के साथ मास्टर डिग्री इन लॉ (एलएलएम) है, उसको 17.11.2005 से गुवाहाटी यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज, गुवाहाटी यूनिवर्सिटी में एड-हॉक पार्ट-टाइम लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया गया।
तदनुसार, वह उक्त पोस्ट पर शामिल हो गई हैं और अपनी नियुक्ति के बाद से इस रूप में कार्य कर रही हैं। उन्होंने 1.11.2012 को गुवाहाटी यूनिवर्सिटी से कानून के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है, जिसके लिए उन्होंने 20.01.2005 को अपना रजिस्ट्रेशन कराया।
याचिकाकर्ता का यह मामला है कि उसे असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त और नियमित करने के लिए NET/SLET/SET रखने से छूट दी गई। हालांकि उसने अपनी सेवा के नियमितीकरण के लिए प्रतिवादी यूनिवर्सिटी से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इसे कोई नोटिस नहीं दिया। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका के माध्यम से प्रतिवादी गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के पूर्णकालिक लेक्चरार/असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में उसकी सेवा को नियमित करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश देने की प्रार्थना की।
मुद्दा
याचिकाकर्ता के वकील ए.के. सरमा ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति विभागीय सलाहकार समिति (डीएसी) द्वारा किए गए चयन से पहले की गई और रजिस्ट्रार के माध्यम से यूनिवर्सिटी की अनुमति मांगी गई। जिस रिक्ति के खिलाफ याचिकाकर्ता को समायोजित करने की मांग की गई, वह बीमारी के कारण शिक्षक के इस्तीफे के कारण थी। इसलिए याचिकाकर्ता की नियुक्ति मौजूदा रिक्ति के खिलाफ थी। साथ ही याचिकाकर्ता ने अब तक 17 साल तक काम किया, उसकी सेवा के नियमितीकरण पर विचार किया जाना चाहिए। वकील ने सचिव, कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमादेवी (3) और अन्य। (2006) 4 एससीसी 1 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के सरकारी वकील पी जे फुकन ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति के मामले में गठित चयन समिति द्वारा गुवाहाटी यूनिवर्सिटी एक्ट, 1947 की धारा 15-ए (1) (ए) के तहत ऐसी कोई सिफारिश नहीं की गई। केवल इसलिए कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया की निरीक्षण टीम द्वारा सिफारिश की गई, ऐसी सिफारिश यूनिवर्सिटी एक्ट द्वारा प्रदान किए गए वैधानिक प्रावधानों पर प्रबल नहीं हो सकती। उन्होंने भारत संघ और अन्य बनाम डिंपल हैप्पी धाकड़, (2019) 20 एससीसी 609; दिल्ली परिवहन निगम बनाम बलवान सिंह और अन्य, (2019) 18 एससीसी 126; लोक प्रहरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, (2016) 8 एससीसी 389 और भारत संघ और अन्य बनाम अशोक कुमार अग्रवाल, (2013) 16 एससीसी 147 मामलों का हवाला दिया।
कोर्ट का फैसला
जस्टिस नेल्सन साइलो ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज में लगभग 17 साल की सेवा प्रदान की, यह अनुचित होगा कि उसे एड-हॉक कर्मचारी के रूप में तब तक बने रहने दिया जाए जब तक कि वह अधिवर्षिता की आयु प्राप्त नहीं कर लेती।
अदालत ने आगे कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकारियों की टीम की निरीक्षण रिपोर्ट ने अंशकालिक तदर्थ व्याख्याताओं के नियमितीकरण के लिए भी सिफारिशें कीं, जो 23.05.2008 को अपना निरीक्षण करने के बाद अन्यथा पूर्णकालिक आधार पर काम कर रहे थे। यद्यपि यह यूनिवर्सिटी के लिए बाध्यकारी नहीं हो सकता, लेकिन यह दर्शाता है कि अंशकालिक एड-हॉक लेक्चरार की सेवाओं का पूर्ण रूप से उपयोग किया गया और वास्तव में वे अधिक ज्यादा क्लासेस लेकर कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
अदालत ने कहा,
“याचिकाकर्ता ने नियमितीकरण के लिए उसके मामले पर विचार करने के लिए मामला बनाया। प्रतिवादी यूनिवर्सिटी यानी प्रतिवादी संख्या 1, 2 और 3 को निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता के यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियमितीकरण के मामले पर इस की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से 3 (तीन) महीने की अवधि के भीतर विचार करें। जैसा कि गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के लिए सरकारी परिषद द्वारा भरोसा किए गए अधिकारियों के लिए किया गया। इस तथ्य के लिए कोई तर्क नहीं है कि वैधानिक प्रावधान कार्यकारी या प्रशासनिक निर्देशों पर प्रबल होंगे और इसलिए इसका उल्लेख नहीं किया जा रहा है।
अंत में अदालत ने उपरोक्त निर्देशों के साथ रिट याचिका की अनुमति दी।
केस टाइटल: डॉ. रूपा बर्मन बोर्गोहेन और अन्य बनाम गुवाहाटी यूनिवर्सिटी और 4 अन्य।
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