"उसे मादक पदार्थ की लत लग गई है और मुख्यधारा में लाने के लिए उसका पुनर्वास करने की आवश्यकता है": एचपी हाईकोर्ट ने NDPS Act के तहत आरोपित व्यक्ति को जमानत दी
LiveLaw News Network
7 Jan 2021 3:31 PM IST
यह देखते हुए कि न्यायालय के समक्ष जमानत आवेदक-याचिकाकर्ता, मादक पदार्थ का आदी हो गया है और इस तरह, उसे पुनर्वास केंद्र में ले जाना आवश्यक है, ताकि जमानत आवेदक-याचिकाकर्ता को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयास किए जा सकें, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार (06 जनवरी) को एनडीपीएस अधिनियम के तहत एक व्यक्ति को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की पीठ नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेन्स एक्ट, 1985 के सेक्शन 21, 29-65-85 के तहत एक गौरव कुमार (जो 10 अक्टूबर 2020 से जेल में था) की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
मामले के तथ्य
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, पुलिस ने 10 अक्टूबर 2020 को कथित रूप से एक मोटरसाइकिल को पकड़ा और उसपर मौजूद दो लोगों की व्यक्तिगत तलाशी के साथ-साथ मोटरसाइकिल की तलाशी ली और कथित रूप से मोटरसाइकिल के डिक्की से 9.41 ग्राम हेरोइन / चिट्टा बरामद किया।
जबकि गौरव के सह-आरोपी मोक्ष को पहले से ही विशेष जज- II, कांगड़ा, धर्मशाला द्वारा जमानत दी जा चुकी है, लेकिन गौरव की जमानत अर्जी इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि अतीत में भी उसके खिलाफ अधिनियम के तहत एक मामला दर्ज था।
राज्य ने अदालत के सामने तर्क दिया कि उसे 10 महीने के लिए (एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध के लिए) दोषी ठहराया गया था और उसे जमानत पर रिहा किया जाना न्याय के हित में नहीं हो सकता है, क्योंकि उसकी जमानत पर रिहा होने की स्थिति में, वह न केवल न्याय की पहुँच से दूर जा सकता है, बल्कि फिर से ऐसे कार्यों में लिप्त हो सकता है।
कोर्ट का अवलोकन
अदालत ने पाया कि इस घटना में शामिल मोटरसाइकिल जमानत याचिकाकर्ता (गौरव) के नाम पर नहीं थी।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि 9.41 ग्राम हेरोइन / चिट्टा को उसके सचेत कब्जे से बरामद नहीं किया गया था बल्कि उसे "मोटरसाइकिल, जो किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित है, की डिक्की से बरामद किया गया।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि जबकि यह सच था कि वर्ष 2014 में, जमानत याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया था और सजा के तौर पर 10 महीने की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सजा के उस फैसले के खिलाफ अपील पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि जमानत आवेदक-याचिकाकर्ता ने समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अपराध को अंजाम दिया है, लेकिन यह अदालत इस तथ्य को नहीं भूल सकती है कि जमानत याचिकाकर्ता एक ड्रग एडिक्ट बन गया है और इस तरह से उसे पुनर्वास केंद्र में ले जाना आवश्यक है, जिससे जमानत याचिकाकर्ता को मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए जा सकें।"
इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा, याचिकाकर्ता द्वारा चलाई जा रही मोटरसाइकिल से कथित रूप से बरामद किया गया पदार्थ मध्यवर्ती मात्रा का है और इस तरह धारा 37 की कठोरता वर्तमान मामले में आकर्षित नहीं होती है।
उपरोक्त के मद्देनजर, याचिका को अनुमति दी गई और याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किए जाने का आदेश दिया गया।
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