हाथरस केसः पीड़िता के परिजनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की याचिका, उत्तर प्रदेश पुलिस की अवैध हिरासत से रिहा किए जाने की मांग

LiveLaw News Network

8 Oct 2020 8:35 AM GMT

  • हाथरस केसः पीड़िता के परिजनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की याचिका, उत्तर प्रदेश पुलिस की अवैध हिरासत से रिहा किए जाने की मांग

    हाथरस मामले में पीड़िता के परिजनों ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कथित अवैध हिरासत के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। अधिवक्ता काशिफ अब्बास रिजवी और जौन अब्बास के माध्यम से अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत ने हिरासत में लिए गए परिवार की ओर से रिट याचिका दायर की है।

    मामले जस्टिस को प्रीतिंकर दिवाकर और प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिस पर उन्होंने फैसला सुरक्षित रखा । आरोप है कि मृतक पीड़िता के करीबी परिजनों यानी पिता, मां, दो भाइयों, भाभी और दादी को उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके घरों में अवैध रूप से बंदी बना लिया है।

    "जब से इस संकटपूर्ण घटना की जानकारी और भय पूरे भारत में फैला है, तब से ही प्रशासन याचिकाकर्ताओं को धमकी देने, दबाव बनाने और झूठे बयान देने के लिए धमकाने के सभी प्रयास कर रहा है, जिसकी वजह से व्यापक असंतोष को खत्म करना मुश्‍किल हो सकता है, और अपराधी आसानी से छूट सकते हैं।

    इस योजना के तहत, प्रशासन ने हाथरस जिले में और उसके आसपास नाकाबंदी कर रखी है, और जो लोग क्षेत्र की यात्रा करना चाहते हैं, उन्हें बिना किसी वैध कारण के, अवैध बल और उपायों से, ऐसा करने से रोका जा रहा है।"

    याचिका में कहा गया है कि सरकार मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रही है।

    याचिका में आगे कहा गया है कि परिवार का 14 सितंबर यानी घटना की तारीख से, ही उसी के घर में "घेराव" किया गया गया है, और केवल उसके भाई को पीड़िता के साथ आगरा स्‍थ‌ित अस्पताल में जाने की अनुमति दी गई थी। इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया है कि केवल 28 सितंबर को, जब उसे दिल्ली ले जाया जा रहा था, सरकार ने परिवार के दो और सदस्यों को उसके पास जाने की अनुमति दी थी।

    यह भी आरोप लगाया गया है कि पीड़िता की लाश को भी परिजनों को नहीं लेने दिया गया था और उन्हें घर में ही कैद रखा गया।

    इसके अलावा यह भी प्रस्तुत किया गया है कि परिवार को स्वतंत्र रूप से मिलने या संवाद करने से भी रोका गया है, जिससे उनके भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सूचना प्राप्त करने का अधिकार का उल्लंघन होता है।

    उक्त कृत्यों से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन भी हो रहा है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि चूंकि याचिकाकर्ताओं को कथित रूप से हिरासत में रखा गया है, इसलिए शपथ पत्र पर अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत के राष्ट्रीय महासचिव ने शपथ दी है, जिन्होंने व्हाट्सएप के माध्यम से परिवार से निर्देश प्राप्त करने का दावा किया है।

    पृष्ठभूमि

    14 सितंबर को, हाथरस में 19 वर्षीय एक दलित युवती का अपहरण कर लिया गया था, जिसके साथ उच्च-जाति के चार युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। उन्होंने उसकी हड्डियों तोड़कर, और जीभ काटकर उसे क्रूर यातना दी। 29 सितंबर को युवती का निधन हो गया।

    बाद में युवती के परिजनों ने शिकायत की कि उनकी सहमति के बिना आधी रात में पुलिस युवती का अंतिम संस्कार किया गया।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और यह जांच करने का निर्णय लिया कि क्या मृतक के परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का लाभ राज्य के अधिकारियों द्वारा उनके संवैधानिक अधिकारों के उत्पीड़न और उन्हें वंचित करने के लिए लिया गया था?

    मामले में एसआईटी / सीबीआई जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दोनों अदालतों में कई पत्र याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें मामले की निष्पक्ष जांच, और न्याय की मांग की गई है।

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