'दादा-दादी बच्चों के पालन-पोषण का अभिन्न अंग': छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पोते-पोतियों से मिलने का अधिकार दिया

Avanish Pathak

14 Oct 2023 2:01 PM GMT

  • दादा-दादी बच्चों के पालन-पोषण का अभिन्न अंग: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पोते-पोतियों से मिलने का अधिकार दिया

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अस्सी वर्षीय एक दादा को अपने पोते-पोतियों से मिलने की इजाजत दे दी है, जब तक कि उनके बेटे और बहू के बीच बच्चों की कस्टडी की लड़ाई चल रही है।

    निचली अदालत के उस आदेश को संशोधित करते हुए, जिसने दादा को अपने पोते-पोतियों से मिलने के अधिकार से इनकार कर दिया था, ज‌स्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की खंडपीठ ने कहा,

    “भारतीय समाज में, दादा-दादी बच्चों के पालन-पोषण के लिए एक अभिन्न अंग होते हैं और स्नेह और योगदान के उस हिस्से को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और यह बच्चों का कल्याण है जिसकी हमें चिंता है। दादा-दादी, परिवार का अभिन्न अंग होने के नाते, बच्चे के कल्याण के लिए इस तरह काम करेंगे।''

    फैमिली कोर्ट राजनांदगांव द्वारा पारित दो आदेशों के खिलाफ यह अपील दायर की गई थी, जिसके द्वारा पिता (अपीलकर्ता) को अपने बच्चों से मिलने के लिए सीमित मुलाकात का अधिकार दिया गया था। 14.07.2022 के शुरुआती आदेश में फैमिली कोर्ट ने कहा था कि पिता संबंधित जिला न्यायालय परिसर में स्थित मेडिटेशन सेंटर में बच्चे से मिल सकते है।

    इसके बाद एक और अर्जी दाखिल की गई, जिसमें प्रार्थना की गई कि बच्चों के दादा, जिनकी उम्र करीब 80 साल है, को भी पोते-पोतियों से मिलने की इजाजत दी जाए। हालांकि, उक्त आवेदन खारिज कर दिया गया था। ऐसे आदेशों के विरुद्ध अपीलकर्ता द्वारा अपील दायर की गई थी।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, न्यायालय ने कहा कि हिरासत की लड़ाई में किसी भी स्ट्रेट-जैकेट फॉर्मूले का पालन नहीं किया जा सकता है। इसमें यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य में शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया था कि भले ही अभिरक्षा एक पैरेंट को दी गई हो, दूसरे पैरेंट के पास यह सुनिश्चित करने के लिए मुलाक़ात का पर्याप्त अधिकार होना चाहिए कि बच्चा दूसरे माता-पिता के साथ संपर्क में रहे और दो माता-पिता में से किसी के साथ सामाजिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक संपर्क न खोए।

    कोर्ट ने कहा,

    “केवल चरम परिस्थितियों में ही माता-पिता में से किसी एक को बच्चे के साथ संपर्क से वंचित किया जाना चाहिए, इसलिए, बच्चे का कल्याण सर्वोपरि होगा। माता-पिता के बीच मतभेद हो सकते हैं और वे एक-दूसरे पर आरोप लगा सकते हैं, लेकिन कल्याण के कारक का परीक्षण अदालत के समक्ष किया जाना है।''

    जहां तक दादा से मिलने के अधिकार का सवाल है, कोर्ट का मानना था कि दादा-दादी बच्चों के पालन-पोषण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आगे कहा गया कि बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करने में उनका योगदान महत्वपूर्ण है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा, "इसलिए, बच्चों के साथ दादा-दादी का मिलना भी पालन-पोषण का एक आवश्यक हिस्सा होगा, इससे पहले कि एकल माता-पिता में से किसी एक के एकतरफा कृत्य से उनका दिमाग प्रदूषित हो जाए।"

    कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश पर भी असहमति जताई, जिसमें पिता को कोर्ट परिसर के अंदर अपने बच्चों से मिलने की इजाजत दी गई थी और कहा कि कोर्ट का माहौल न तो अनुकूल है और न ही बच्चों के सर्वोत्तम हित में है।

    उक्त टिप्‍पण‌ियों के साथ कोर्ट ने अपील का निपटारा कर दिया।

    केस टाइटल: सैयद इरशाद अहमद ज़ैद बनाम शाज़िया अंजुम

    केस नंबर: एफए (एमएटी) नंबर 123 ऑफ 2023

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