प्रगतिशील होने का दावा करने वाली सरकार गैर-धार्मिक व्यक्तियों को EWS लाभों से इनकार नहीं कर सकती: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

12 Aug 2022 10:44 AM GMT

  • प्रगतिशील होने का दावा करने वाली सरकार गैर-धार्मिक व्यक्तियों को EWS लाभों से इनकार नहीं कर सकती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य को गैर-धार्मिक श्रेणी से संबंधित व्यक्तियों को सामुदायिक प्रमाण पत्र जारी करने के लिए नीति तैयार करने का निर्देश दिया, ताकि वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए उपलब्ध लाभों का लाभ उठा सकें।

    जस्टिस वीजी अरुण ने यह भी कहा कि जो सरकार प्रगतिशील होने का दावा करती है, वह गैर-धार्मिक श्रेणी के व्यक्तियों को केवल इसलिए लाभ से वंचित नहीं कर सकती क्योंकि वे किसी समुदाय या जाति से संबंधित नहीं हैं।

    उन्होंने कहा,

    "प्रगतिशील होने का दावा करने वाली सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के नागरिकों के लाभ से केवल इस कारण इनकार नहीं कर सकती है कि वे किसी समुदाय या जाति से संबंधित नहीं हैं। इसलिए, सरकार को खुद को गैर-धार्मिक घोषित करने वाले याचिकाकर्ताओं जैसे व्यक्तियों के लिए सामुदायिक प्रमाण पत्र जारी करने के लिए नीति और दिशानिर्देश तैयार करना होगा।

    ऐसे में कोर्ट ने राज्य को इस संबंध में जल्द से जल्द उचित कदम उठाने का निर्देश दिया।

    एकल पीठ कक्षा 12 के स्नातकों के समूह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई रही थी, जिन्होंने कॉलेज में प्रवेश के लिए खुद को गैर-धार्मिक श्रेणी से संबंधित घोषित किया है।

    उन्होंने 103वें संविधान संशोधन का हवाला देते हुए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के अंतर्गत नहीं आने वाले ईडब्ल्यूएस के तहत कॉलेज में प्रवेश की मांग की।

    इस बीच राज्य ने फॉरवर्ड कम्युनिटी कमीशन की सिफारिश के आधार पर सूची जारी की जिसमें केवल वे व्यक्ति शामिल थे जिन्होंने अपनी जाति और समुदाय की घोषणा की है।

    इसके बाद जिन छात्रों ने खुद को गैर-धार्मिक घोषित किया, उन्हें राज्य द्वारा शिक्षा और रोजगार के उद्देश्य से ईडब्ल्यूएस में शामिल नहीं किया गया।

    इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने एडवोकेट मधु राधाकृष्णन, एमडी जोसेफ, नेल्सन जोसेफ और दीपक अशोक कुमार के माध्यम से अदालत का रुख किया।

    उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणी के अलावा अन्य ईडब्ल्यूएस समुदायों के लिए आरक्षित 10% आरक्षण से वंचित कर दिया गया।

    उन्होंने आगे बताया कि गैर-धार्मिक श्रेणी को शामिल न करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। इन आधारों पर उन्होंने राज्य को गैर-धार्मिक व्यक्तियों को शामिल करने का निर्देश देने की मांग की, जो ईडब्ल्यूएस से संबंधित हैं और उन्हें ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति देते हैं।

    जस्टिस अरुण ने पिछली सुनवाई के दौरान, मौखिक रूप से टिप्पणी की कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में जो लोग गैर-धार्मिक होने का विकल्प चुनते हैं, उनकी सराहना की जानी चाहिए।

    इस मामले की सुनवाई हुई तो कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर याचिकाकर्ताओं को गैर-धार्मिक श्रेणी में प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया ताकि वे अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा करने पर आरक्षण का लाभ ले सकें।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस बीच याचिकाकर्ताओं को गैर-धार्मिक श्रेणी में प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे ताकि वे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के अलावा अन्य समुदायों के ईडब्ल्यूएस छात्रों के लिए उपलब्ध 10% आरक्षण की मांग कर सकें, बशर्ते याचिकाकर्ता दूसरे को संतुष्ट करें।"

    आगामी अदालती अवकाश के बाद मामले पर फिर से सुनवाई होगी।

    केस टाइटल: निरुपमा पद्मकुमार और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 428

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