'जमानत आदेशों में आवेदकों के आपराधिक इतिहास का पूरा विवरण दें'; इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालतों को दिया निर्देश

LiveLaw News Network

21 Dec 2020 6:30 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार (14 दिसंबर) को निचली अदालतों को निर्देश दिया कि वे आवेदकों/अभियुक्तों के आपराधिक इतिहास, यदि कोई हो, का पूरा विवरण दें या यदि कोई आपराधिक इतिहास नहीं है तो इस तथ्य को रिकॉर्ड करें कि आवेदक/अपराधी का कोई नहीं आपराधिक इतिहास नहीं है।

    जस्टिस समित गोपाल की खंडपीठ ने कहा, "हालांकि अभियुक्तों के जमानत आवेदनों के निर्णय के लिए आपराधिक इतिहास एकमात्र और निर्णायक कारक नहीं हैं, लेकिन धारा 437 सीआरपीसी के विधायी जनादेश के अनुसार धारा 439 सीआरपीसी के तहत जमानत के लिए आवेदन का निर्णय करते समय इस पर विचार करना आवश्यक है। "

    मामला

    बेंच आवेदक उदय प्रताप द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने जमानत में बढ़ोत्तरी की मांग की थी। अवेदक के खिलाफ धारा 364, 302, 201, 120B और 34 आईपीसी के तहत केस क्राइम नंबर 12 के तहत मुकदमा दर्ज है।

    राज्य के वकील ने तर्क दिया कि सीसीटीवी फुटेज, आवेदक (उदय प्रताप) को उस स्थान से बाहर निकलते देखा गया था, जहां मृतक और अन्य सह-अभियुक्त व्यक्ति शराब पी कर रहे थे। यह भी दलील दी गई कि आवेदक को मृतक के छोटे भाई दिनेश द्वारा शराब के साथ देखा गया था।

    यह भी तर्क दिया गया कि गुप्त तरीके से सभी आरोप‌ियों ने पीड़ित को जहरीला पदार्थ दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। जिसे रासायनिक विश्लेषक की रिपोर्ट में भी पाया गया है। महत्वपूर्ण रूप से, एजीए ने आवेदक के आपराधिक इतिहास के बयान को खारिज कर दिया और कहा कि जमानत आवेदन के साथ में दायर हलफनामे में दिए गए बयान गलत हैं।

    उन्होंने कहा कि आवेदक सात अन्य आपराधिक मामलों में शामिल है और यहां तक उसकी हिस्ट्रीशीट भी खोली गई है। सात अन्य आपराधिक मामलों में आवेदक की भागीदारी का विवरण न्यायालय के समक्ष रखा गया।

    कोर्ट का अवलोकन

    सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, "यह स्पष्ट है कि आवेदक के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं किया गया है।"

    इस तथ्य के मद्देनजर कि विसरा रिपोर्ट में जहर की मौजूदगी पाई गई और आवेदक का लंबा आपराधिक इतिहास रहा, अदालत ने यह नहीं माना कि आवेदक को जमानत पर रिहा करना एक उचित है।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा, "न केवल इस मामले में बल्कि कई अन्य मामलों में यह देखा जाता है कि एक आवेदक / अभियुक्त यह बयान देते हे कि वे अदालत के समक्ष किसी अन्य आपराधिक मामले में शामिल नहीं है। निचली अदालतों द्वारा जमानत खारिज करने का आदेश आवेदक/अभियुक्त के अपराधी इतिहास के बार में खामोश है, लेकिन इस न्यायालय के अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता के निर्देशों के आधार पर या पहले मुखबिर के विद्वान वकील के निर्देश के आधार पर, यह समझ में आता है कि आवेदक/अभियुक्त का आपराधिक इतिहास है। "

    कोर्ट ने यह भी कहा, "जब विद्वान वकील से इस बारे में जिरह की जाती है तो यह उनके लिए शर्मनाक हो जाता है और आरोपी के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं होने के कारण उक्त जमानत अर्जी तय करने में भी बाधा होती है।"

    इसलिए, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश की ‌निचली अदालतों को निर्देश दिया कि "धारा 439 सीआरपीसी के तहत जमानत के आवेदन को तय करते समय आरोपी व्यक्तियों के आपराधिक इतिहास को देखें और आवेदक/‌अभियुक्त के आपराधिक इतिहास का पूरा विवरण दें और यदि कोई इतिहास नहीं है तो यह रिकॉर्ड पर दर्ज करें।"

    रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया गया है कि वह "आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करे और न्यायालय के समक्ष 29 जनवरी 2021 तक अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करे।"

    इस मामले को आगे की सुनवाई के 29 जनवरी 2021 को सूचीबद्ध किया गया है।

    संबंधित समाचार में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने बुधवार (25 नवंबर) को राज्य के सभी ट्रायल न्यायालयों को निर्देश दिया था कि जमानत आवेदक का पूरी एतिहा‌सिक विवरण दें और यदि ऐसा इतिहास न हो तो यह भी रिकॉर्ड पर दर्ज करें।

    जस्टिस पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की खंडपीठ ने एक अभियुक्त की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त निर्देश जारी किया, जिसमें कोई आपराधिक इतिहास नहीं था।

    केस टाइटिल - उदय प्रताप @ दाऊ बनाम यूपी राज्य। [Criminal Misc. Bail application No. - 43160 of 2020]

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