'जेंडर' और 'सेक्स' विशिष्ट अवधारणाएं, लिंग चयन का अधिकार व्यक्तिगत: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

9 Aug 2023 1:43 PM IST

  • जेंडर और सेक्स विशिष्ट अवधारणाएं, लिंग चयन का अधिकार व्यक्तिगत: केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक फैसले में 'जेंडर' और 'सेक्स' की अवधाराणाओं पर चर्चा की। हाईकोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि एक बच्चा, जिसका जननांग अस्पष्ट है, क्या उसके माता-पिता को क्या उसकी सहमति के बिना, और बच्चे का अभिविन्यास क्या होगा, यह न जानते हुए उसके जेंडर के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है।

    जस्टिस वीजी अरुण की सिंगल जज बेंच ने कहा कि 'जेंडर' और 'सेक्स' शब्द अनौपचारिक बातचीत में अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते थे, जबकि वास्तव में ये दो अलग अवधारणाएं हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "सेक्स किसी व्यक्ति की जैविक विशेषताओं को संदर्भित करता है, विशेष रूप से उसकी प्रजनन शारीरिक रचना और गुणसूत्र संरचना के संबंध में। दूसरी ओर, लिंग एक सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना है, जिसमें पुरुष-महिला या नॉन बाइनरी रूप में, किसी व्यक्ति की भूमिका, व्यवहार, अपेक्षा और पहचान शामिल होती है।''

    कोर्ट ने ये टिप्पण‌ियां अस्पष्ट जननांग के साथ पैदा एक बच्चे के माता-पिता की ओर से दायर याचिका पर की, जिसमें उन्होंने बच्चे को एक महिला के रूप में पालने के लिए उसकी जननांग पुनर्निर्माण सर्जरी कराने के लिए कोर्ट से अनुमति मांगी थी।

    बच्चे में 'कंन्जेनिटल एड्रेनल हाइपरप्लासिया' डाइग्नोस किया गया था और उसका इलाज चल रहा था। डॉक्टरों ने बच्चे के लिए जेनिटल रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी की सलाह दी। बच्चे के माता-पिता इस बात से व्यथित थे कि विभिन्न विशेषज्ञों से संपर्क करने के बावजूद, कोई भी डॉक्टर सक्षम न्यायालय के आदेश के बिना सर्जरी करने के लिए तैयार नहीं था।

    उन्होंने कैरियोटाइप रिपोर्ट-46XX पर भरोसा करते हुए, जो कि बच्चे के महिला होने का संकेत था, अदालत का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने कहा कि 'अस्पष्ट जननांग' एक दुर्लभ स्थिति है, जो एक सौ तीस करोड़ में से दस लाख से भी कम व्यक्तियों में पाई जाती है।

    कोर्ट ने कहा कि पौराणिक कथाएं और इतिहास दोनों ही ऐसे व्यक्तियों की कहानियों से भरे पड़े हैं, जिनके पास दोनों जननांग थे। कोर्ट ने ऐनी फॉस्टो-स्टर्लिंग के एक लेख का उल्लेख किया, जिसमें लेखक ने देखा था कि 'उभयलिंगी' जो वस्तुतः दोनों लिंगों का प्रतीक हैं, में "कभी एक लिंग के रूप में और कभी-कभी दूसरे लिंग के रूप में रहने" की 'क्षमता' होती है, जिससे समलैंगिकता की छाया उभरती है"।

    न्यायालय ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2014) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को एक पथ-प्रदर्शक के रूप में देखा, जो 'जेंडर बाइनरी स्ट्रेटजैकेट' को चुनौती देने में सहायक रहा था, और लिंग भिन्नताओं को कानूनी रूप से मान्यता दी और संरक्षित किया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिक मनुष्यता की स्वतंत्र भावना का सम्मान करें और उन्हें विकसित करने करें, यह मानव इतिहास की सभी प्रगतियों के लिए जिम्मेदार है। यदि लोकतंत्र मनुष्य के व्यक्तित्व और गरिमा की मान्यता पर आधारित है, तो मनुष्य के लिंग या लैंगिक पहचान को चुनने का अधिकार, जो आत्मनिर्णय, गरिमा और स्वतंत्रता के सबसे बुनियादी पहलुओं में से एक है, को मान्यता देनी होगी। इसके विपरीत, किसी व्यक्ति के लिंग या लैंगिक पहचान चुनने के अधिकार में हस्तक्षेप निश्चित रूप से उस व्यक्ति की निजता में घुसपैठ और गरिमा और स्वतंत्रता का अपमान होगा।"

    कोर्ट का मानना था कि व्यक्तिगत पसंद के संदर्भ में निजता की अवधारणा, चाहे वह 'लिंग' या 'सेक्स' के संबंध में हो, पुट्टास्वामी फैसले में अच्छी तरह से तय की गई थी [जस्टिस केएस पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। (2017)]।

    कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों का अध्ययन किया और कहा, "...लिंग चुनने का अधिकार संबंधित व्यक्ति के पास है, किसी और के पास नहीं, यहां तक कि अदालत के पास भी नहीं।"

    लिंग पुनर्निर्माण सर्जरी के प्रति दुनिया के अन्य देशों में अपनाए गए दृष्टिकोणों को अध्ययन के बाद अदालत ने पाया कि केवल कुछ देशों ने जननांग पुनर्निर्माण/पुष्टि सर्जरी की अनुमति देने या विनियमित करने के लिए नियमों को अपनाया है और इस संबंध में सहमति की उम्र भी भिन्न है।

    न्यायालय ने कहा कि बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीआरसी) ने सदस्य राज्यों से इंटरसेक्स कंडीशन के कारण बच्चों के खिलाफ भेदभाव न करने को सुनिश्चित करने और यौन रुझान, लिंग पहचान या इंटरसेक्स कंडीशन के आधार पर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव करने वाले सभी कानूनों को निरस्त करने का भी आह्वान किया है।

    कोर्ट ने मेडिकल लॉ रिव्यू के खंड 27 में प्रकाशित एक लेख पर भी ध्यान दिया, जिसका शीर्षक, ‘Protecting the Rights of Children with Intersex Conditions from Non-consensual Gender Conforming Medical Interventions था, जिसमें कहा गया था कि सर्जिकल इंटरवेंशन अनावश्यक थे, और इसके बच्चों के शरीर को क्षत-विक्षत करने जैसे अपरिवर्तनीय परिणाम हो सकते हैं।

    तदनुसार, मामले में न्यायालय ने कह कि चूंकि माता-पिता एक ऐसी यौन सकारात्मक सर्जरी की अनुमति मांग रहे हैं, जिसमें सहमति शामिल नहीं है, इसलिए अनुरोध करने के लिए केवल क्रोमोसोमल विश्लेषण की कैरियोटाइप-46XX रिपोर्ट पर निर्भरता पर्याप्त नहीं होगी। कैरियोटाइप-46XX वाले बच्चे में वयस्क होने पर पुरुष जैसी प्रवृत्ति विकसित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

    हालांकि कोर्ट ने यह कहा कि यदि विधिवत गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा सिफारिश की जाती है तो इस तरह के हस्तक्षेप की अनुमति दी जा सकती है, और विशेषज्ञों की एक राज्य स्तरीय बहु-विषयक समिति के गठन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे, जो लिंग चयनात्मक सर्जरी करने के अनुरोधों की जांच करेगी।

    न्यायालय ने उक्त समिति को दो महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं के बच्चे की जांच करने और यह तय करने का निर्देश दिया कि क्या बच्चा अस्पष्ट जननांग के कारण किसी जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली स्थिति का सामना कर रहा है? यदि उक्त प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है तो सर्जरी की अनुमति दे।

    केस टाइटल: XXX और अन्य स्वास्थ्य सचिव और अन्य।

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केर) 382

    केस नंबर: WP(C) NO. 19610 OF 2022

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