गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बाल विवाह के आरोपी को 'फॉरेनर्स ट्रांसिट कैंप' में डालने पर असम सरकार की खिंचाई की
Shahadat
2 March 2023 10:40 AM IST
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने गोलपारा जिले में मटिया ट्रांजिट कैंप को जेल में बदलने के असम सरकार के फैसले पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की, जहां 'फॉरेनर्स' को रखा जाता है। यह कदम बाल विवाह पर राज्य की कार्रवाई के मद्देनजर आया है।
चीफ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस सुमित्रा सैकिया की खंडपीठ ने राज्य के फैसले को अजीब और प्रथम दृष्टया अस्वीकार्य पाते हुए टिप्पणी की,
“यदि आप अपनी जेल क्षमता को बढ़ाना चाहते हैं तो इसे उस स्थान पर करें जहां जेल का निर्माण किया गया है। आपको इस डिटेंशन सेंटर को जेल में बदलने की क्या जरूरत है?”
पीठ विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा 'विदेशी' घोषित किए गए 5 व्यक्तियों को कथित रूप से अवैध रूप से हिरासत में रखने को लेकर वकील द्वारा वर्ष 2020 में दायर आपराधिक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ा, राज्य में विदेशियों से संबंधित निरोध शिविरों को बनाए रखने के तरीके से भी न्यायालय का सामना हुआ।
राज्य ने मंगलवार को ट्रांजिट कैंप के कम उपयोग का हवाला देते हुए अपने फैसले को सही ठहराने की कोशिश की।
राज्य के एडवोकेट जनरल डी. सैकिया ने प्रस्तुत किया कि मटिया ट्रांजिट कैंप में 3,000 व्यक्ति रह सकते हैं, लेकिन वर्तमान में इसमें मुश्किल से 200 व्यक्ति रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि कथित तौर पर आपस में मिलने से बचने के लिए सरकार ने हिरासत केंद्र और प्रस्तावित जेल का बंटवारा कर दिया।
हालांकि, पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य का अलग स्थान होना चाहिए।
पीठ ने कहा,
“(आपने) इस परिमाण का केंद्र बनाया है। आप अन्य क्षेत्रों से भी लोगों को लाने के बारे में सोच रहे होंगे। इसलिए यदि आप सामान्य अपराधियों को सुविधा में लाना शुरू करते हैं तो आप समझौता कर रहे होंगे..."
इसने जारी रखा,
“यदि आप क्षमता निर्माण अभ्यास करना चाहते हैं तो आप जेलों के लिए करते हैं। आप उस संस्था का अतिक्रमण नहीं कर सकते जो केवल उन व्यक्तियों के लिए है, जो दोषी या अपराधी नहीं हैं। वे गलत समय पर गलत जगह पर हो सकते हैं, कई परिस्थितियों के कारण हो सकते हैं, लेकिन आप उन्हें सामान्य अपराधियों के साथ नहीं रख सकते।
चीफ जस्टिस ने कहा कि किशोर न्याय गृहों में भी ऐसी ही स्थिति है, जहां 'कानून के साथ संघर्ष में बच्चे' और 'देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों' को एक ही परिसर में यह कहकर रखा जा रहा है कि इसे विभाजित कर दिया गया है।
पीठ ने राज्य को याद दिलाया कि जेल सुधारों को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुपालन में होना चाहिए। सरकार पूरे राज्य में जेलों का "निर्माण" शुरू नहीं कर सकती।
एजी ने कहा कि पहले बंदियों को जेलों में डाला जा रहा था, लेकिन अब "यह उलट रहा है"। उन्होंने याचिकाकर्ताओं की ओर से दाखिल किए गए अतिरिक्त हलफनामे में किए गए प्रकथनों के संबंध में निर्देश लेने के लिए भी समय मांगा। मामले की सुनवाई अब गुरुवार को होगी।
केस टाइटल: अबंती दत्ता बनाम भारत संघ और 4 अन्य। डब्ल्यू.पी. (क्रि.)/6/2020 और अन्य संबंधित मामले
कोरम: चीफ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस सौमित्र सैकिया
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