मजिस्ट्रेट ने डोजियर में की गई टाइपिंग की गलतियों को भी कॉपी कर लिया, बिल्कुल दिमाग नहीं लगाया गया: जेकेएल हाईकोर्ट ने कथित लश्कर सहयोगी की निवारक हिरासत को खारिज किया
Avanish Pathak
31 Jan 2023 7:32 PM IST
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि कानून प्रवर्तनकारी एजेंसियां जिस भी मामले में किसी नागरिक की निवारक हिरासत की मांग करती है, कोर्ट से उम्मीद यह होती है कि वह विवेक का प्रयोग तथ्य-संवेदनशील और कानून-केंद्रित होकर करे।
जिस्टिस राहुल भारती की एक पीठ ने एक बंदी के खिलाफ निवारक निरोध आदेश को रद्द कर दिया, जिसे बंदी प्राधिकरण ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के सहयोगी के रूप में दिखाया था, कोर्ट ने उसके खिलाफ पिछले हिरासत आदेश के एक साल बाद आदेश को रद्द कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि पहले निवारक आदेश को रद्द करने की तारीख और दूसरे निवारक आदेश को जारी करने के तारीख के बीच पुलिस अधीक्षक हंदवाड़ा ने डोजियर में कोई तथ्यात्मक सामग्री पेश नहीं की है, जिसके आधार पर याचिकाकर्ता को आपराधिक कृत्यों में संलिप्त कहा जा सके, जिससे उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को राज्य की तथाकथित सुरक्षा के लिए एक खतरा पैदा करने वाली परिस्थिति के रूप में माना जा सके, जस्टिस भारती ने कहा कि जिला जज के समक्ष संबंधित एसपी की ओर से पेश किया गया डोजियर और कुछ नहीं बल्कि उसी आधार की पुनरावृत्ति थी, जिस पर पहला निरोध आदेश पारित किया गया था।
पीठ ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि पहले निरोध आदेश को रद्द करके उसकी रिहाई के बाद याचिकाकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 107/151 के तहत शांति बनाए रखने के लिए बांड पर रखा गया था; डोजियर में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि याचिकाकर्ता ने कभी भी अपने बांड का उल्लंघन किया है, ताकि सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 के तहत हिरासत के मामले के रूप में माना जा सके।
मौजूदा मामले के संबंध में हिरासत में लेने वाले अधिकारी की ओर से दिमाग लगाने पर सवाल उठाते हुए जस्टिस भारती ने कहा कि ऐसा लगता है कि जिला मजिस्ट्रेट ने एसपी द्वारा पेश किए गए डोजियर मामले में स्वतंत्र रूप से दिमाग लगाने से खुद को मुक्त कर लिया है और
और इसके बजाय मजिस्ट्रेट तथाकथित दिमाग लगाने के नाम पर डोजियर की री-टाइपिंग की। कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, यहां तक कि डोजियर की टाइपोग्राफिकल त्रुटिओं और चूक को भी वैसी ही ले लिया गया है।
इस मामले को जिला मजिस्ट्रेट की ओर से दिमाग के मैकेनेकिल उपयोग का सबसे अच्छा उदाहरण बताते हुए, जस्टिस भारती ने अपने आदेश में कहा कि मौजूदा मामले में ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ निवारक निरोध आदेश जारी करना और उसे उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना, जो भारत के संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है, निवारक निरोध चाहने वाले प्राधिकारी और उक्त निवारक निरोध प्रदान करने वाले प्राधिकारी के लिए प्रसन्नता का विषय है।
तदनुसार पीठ ने निरोध आदेश को कानून की नजर में खराब माना और उसे रद्द कर दिया।
केस टाइटल: जावेद अहमद भट बनाम यूटी ऑफ जेएंडके
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल)
कोरम : जस्टिस राहुल भारती