वैवाहिक जीवन में तीक्ष्‍ण परिवर्तन एक गर्भवती महिला को 24 सप्ताह तक टर्मिनेशन के लिए पात्र बनाते हैं: केरल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

27 Sep 2022 7:36 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सोमवार को कहा कि एक गर्भवती महिला के वैवाहिक जीवन में तीखे बदलाव मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) रूल्‍स के नियम 3बी में 'उसकी वैवाहिक स्थिति में बदलाव' की शर्त को पूरा करता है, जो उसे 24 सप्ताह तक के गर्भ के मेडिकल टर्मिनेशन का पात्र बनाता है।

    सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए, जिसमें यह कहा गया था कि एक महिला की रिप्रोडक्टिव (प्रजनन) च्वाइस भी उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक पहलू है और एमटीपी मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर निर्भर है।

    जस्टिस वीजी अरुण ने कहा,

    "यदि उपरोक्त तरीके से व्याख्या की जाए और समझा जाए तो गर्भवती महिला के वैवाहिक जीवन में तीक्ष्‍ण परिवर्तन 'उसकी वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन' के बराबर है।" 'तलाक' शब्द किसी भी तरह से उस अधिकार को योग्य या प्रतिबंधित नहीं कर सकता है"।

    नवीनतम एमटीपी नियमों के तहत, केवल एक निश्चित श्रेणी की महिलाएं ही 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए पात्र हैं। 'वैवाहिक स्थिति में बदलाव' श्रेणी के तहत नियम केवल विधवापन और तलाक को मान्यता देते हैं।

    अदालत ने 21 वर्षीय महिला की एक याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें उसने मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति मांगी थी। उसके पति और उसकी सास द्वारा उसके खिलाफ की गई कथित ज्यादतियों के कारण उसका वैवाहिक जीवन कठिन दौर से गुजर रहा था।

    अदालत को बताया गया कि उसके पति ने अजन्मे बच्चे के पितृत्व पर भी सवाल उठाया और कोई भी सहायता देने से इनकार कर दिया। परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जब महिला ने गर्भावस्था को समाप्त करने का फैसला किया और डॉक्टरों से संपर्क किया, तो उसे बताया गया कि वह एमटीपी अधिनियम और नियमों के तहत शर्तों को पूरा नहीं करती है।

    जस्टिस अरुण ने 26 सितंबर के अपने आदेश में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत महिला को गर्भपात कराने के लिए अपने पति की अनुमति लेनी पड़े।

    अदालत ने कहा,

    "इसका कारण यह है कि यह महिला ही है जो गर्भावस्था और प्रसव के तनाव को सहन करती है।"

    अदालत के समक्ष महिला के पति ने आरोपों से इनकार किया लेकिन टर्मिनेशन के सवाल पर कुछ नहीं कहा। हालांकि, राज्य ने तर्क दिया कि निर्णय पति-पत्नी द्वारा संयुक्त रूप से लिया जाना है।

    मेडिकल कॉलेज कोट्टायम या किसी अन्य सरकारी अस्पताल में महिला को गर्भपात कराने की अनुमति देते हुए अदालत ने कहा कि वह अपने जोखिम पर सर्जरी करने के लिए मेडिकल टीम को अधिकृत करने के लिए एक उपयुक्त अंडरटेकिंग दायर करेगी।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि यदि बच्चा जन्म के समय जीवित हो तो अस्पताल अपना सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करेगा ताकि वह स्वस्थ शिशु के रूप में विकसित हो सके।

    मुकदमा

    महिला बीए की पढ़ाई कर ही थी। एक पेपर में वह फेल हो गई, पूरक परीक्षा की तैयारी के दरमियान उसने एक कंप्यूटर कोर्स में एडमिशन लिया; वहां उसकी मुलाकात एक बस कंडक्टर से हुई और उसे प्यार हो गया। वह 30 नवंबर, 2021 को उसके साथ भाग गई और 11 मार्च को पारंपरिक रूप से विवाह किया। हालांकि, उसके पति और उसकी मां ने उसके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया और दहेज की मांग की।

    याचिका में कहा गया,

    "जब याचिकाकर्ता अप्रैल, 2022 में गर्भवती हुई तो उसने बच्चे के पितृत्व के बारे में भी संदेह जताया गया। पति के घर पर उसके साथ बढ़ती क्रूरता के कारण, उसने 22 अगस्त 2022 को घर छोड़ दिया, और मां-बाप के पास लौटने का फैसला किया।"

    31 अगस्त को कोट्टायम मेडिकल कॉलेज में फैमिली प्लानिंग क्लिनिक में उसने अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए प्रयास किया। हालांकि, क्लिनिक के डॉक्टरों ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता के पास पति से अलग होने या तलाक को साबित करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज नहीं थे।

    इसके बाद महिला ने 4 सितंबर को अपने पति और उसकी मां के खिलाफ कांजीरापल्ली पुलिस स्टेशन में पुलिस शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद उनके खिलाफ धारा 498ए सहपठित धारा 34 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

    हालांकि, क्लिनिक ने फिर से उसके अनुरोध को इस आधार पर ठुकरा दिया कि गर्भावस्था 21 सप्ताह से अधिक की थी और भ्रूण की विसंगति या मां को बीमारी का कोई संकेत नहीं है। मामला तब हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने 15 सितंबर को कोट्टायम के मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक को याचिकाकर्ता की जांच और अपनी राय प्रस्तुत करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया।

    17 सितंबर को बोर्ड द्वारा दी गई राय में कहा गया है कि, "गर्भावस्था जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है", और इसलिए सिफारिश की गई कि एमटीपी किया जा सकता है।

    याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया था कि गर्भावस्था याचिकाकर्ता को अत्यधिक तनाव दे रही थी, जो अंततः उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती थी, जिसकी पुष्टि मेडिकल बोर्ड की राय में भी की गई ‌थी।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ताओं द्वारा यह तर्क दिया गया कि एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों को उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए, महिला की प्रजनन पसंद को या तो प्रजनन करने या प्रजनन से दूर रहने के लिए मान्यता दी जानी चाहिए।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता के पास केवल सीमित भावनात्मक और वित्तीय सहायता है और इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आदेश में कहा कि एमटीपी अधिनियम को गर्भावस्था की समाप्ति से संबंधित कुछ मौजूदा प्रावधानों को उदार बनाने के इरादे से पेश किया गया था। यह नोट किया गया कि याचिकाकर्ता समाज के कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखती है और उसके पास अपने दम पर बच्चे को पालने की वित्तीय क्षमता नहीं है।

    अदालत ने यह भी दर्ज किया कि उसे अपने पति से किसी भी प्रकार कर भावनात्मक समर्थन मिल नहीं रहा है, जिसका सबूत उन रिकॉर्डों से मिल रहा है, जो संकेत देते हैं कि उसने गर्भावस्था के प्रारंभिक चरणों से उसे अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया था।

    अदालत ने नियम 3बी के तहत 24 सप्ताह तक गर्भावस्था की समाप्ति के लिए पात्र महिलाओं की श्रेणियों पर विचार किया कि क्या याचिकाकर्ता का मामला उस स्थिति में फिट हो सकता है जहां चल रही गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति बदल गई थी।

    "उसके साथ कथित तौर पर बुरा व्यवहार किया गया और उसे अपने पति का साथ छोड़ने और अपने पैतृक घर में रहने के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा, 7 वें प्रतिवादी और उसकी मां पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए, याचिकाकर्ता ने एक आपराधिक शिकायत दर्ज की है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि 7 वें प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता को वापस लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।"

    मामले को 2 सप्ताह बाद सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया है।

    केस टाइटल: एक्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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