अस्थायी कर्मचारी की बर्खास्तगी के लिए भी विभागीय कार्यवाही जरूरी : मद्रास हाईकोर्ट

Avanish Pathak

11 May 2022 6:12 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नियोक्ता को अस्थायी कर्मचारियों की बर्खास्तगी के मामलों में भी विभागीय कार्यवाही की प्रक्रियाओं का पालन करना होगा, जिसमें आरोप तय करना, कर्मचारी को अवसर देना, अनुशासनात्मक जांच करना और उसके बाद मुद्दों को तय करना शामिल होगा।

    जस्टिस डी भरत चक्रवर्ती की पीठ आर कार्तिकेयन नामक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर यह टिप्‍पणी की। याचिकाकर्ता को विशेष अधिकारी, सेनकुरची कृषि सहकारी बैंक ने गंभीर कदाचार में लिप्त होने के आरोप में सेवा से हटा दिया था। बर्खास्तगी के आदेश से व्यथित होकर उसने रजिस्ट्रार, तमिलनाडु सहकारी समित‌ि से संपर्क किया, हालांकि उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।

    इसके बाद उन्होंने एक रिट याचिका दायर की, जहां हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार को याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व पर विचार करने और योग्यता के आधार पर आदेश पारित करने का निर्देश दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता को विधिवत अनुपालन किए गए अभ्यावेदन को फिर से जमा करने का निर्देश दिया। बाद में, रजिस्ट्रार ने अभ्यावेदन पर विचार किया और उसे खारिज कर दिया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि भले ही वह एक अस्थायी कर्मचारी था, लेकिन आक्षेपित आदेश स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि यह केवल टर्मिनेशन नहीं था और कलंक का कारण बना। इसलिए, याचिकाकर्ता को उस पर लगे आरोपों का खंडन करने का अवसर देकर कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना प्रतिवादी का बाध्यकारी कर्तव्य था।

    हालांकि, मौजूदा मामले में ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इस प्रकार याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आक्षेपित आदेश कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है और रद्द किए जाने योग्य है।

    दूसरी ओर, अतिरिक्त सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को निर्धारित समय सीमा के भीतर तमिलनाडु सहकारी समिति अधिनियम की धारा 153 के तहत संशोधन दायर कर उचित उपाय प्राप्त करना चाहिए था, हालांकि उसने केवल एक विलंबित अभ्यावेदन दायर किया था, जिसे रजिस्ट्रार ने खारिज कर दिया था।

    अदालत ने अतिरिक्त सरकारी वकील के तर्क में योग्यता नहीं पाई। अदालत ने माना कि भले ही याचिकाकर्ता ने निर्धारित समय सीमा के भीतर पुनरीक्षण दायर नहीं किया था, लेकिन हाईकोर्ट से प्रतिवादियों को योग्यता के आधार पर विचार करने के लिए विशिष्ट निर्देश थे और अदालत ने स्वयं प्रतिनिधित्व को को दोबारा पेश करने के ‌लिए समय सीमा बढ़ा दी थी। प्रतिवादी अब इस तरह की दलील नहीं दे सकते हैं, जब उन्होंने उपरोक्त आदेश पारित होने पर गैर-फाइलिंग की दलील नहीं दी थी।

    अदालत ने याचिकाकर्ता की दलील कि एक अस्थायी कर्मचारी की बर्खास्तगी भी कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके होनी चाहिए, में भी मेरिट पाई। इसलिए अदालत ने विशेष अधिकारी के आदेश और रजिस्ट्रार के आदेश को खारिज कर दिया।

    अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि विशेष अधिकारी को आरोप जारी करने के चरण से नए सिरे से जांच करने और याचिकाकर्ता को फिर से ड्यूटी पर जाने की अनुमति देकर या उसे निलंबित करके कानून के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि आदेश की प्रति मिलने के तीन महीने के भीतर पूरी जांच की जाए।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, अदालत ने वेतन वापस नहीं देने का फैसला किया और कहा कि विशेष अधिकारी द्वारा की गई जांच के परिणाम के बाद ही इसका फैसला किया जा सकता है।

    केस शीर्षक: के. मुरुगन बनाम रजिस्ट्रार और अन्य

    केस नंबरः WP 25505 ‌of 2009

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 207

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