दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की घर-घर राशन वितरण योजना पर रोक लगाई

Shahadat

19 May 2022 12:42 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की घर-घर राशन वितरण योजना पर रोक लगाई

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को राशन वितरण के लिए दिल्ली सरकार की योजना को रद्द कर दिया।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की खंडपीठ ने योजना का विरोध करने वाले दिल्ली सरकार राशन डीलर्स संघ और दिल्ली राशन डीलर्स यूनियन द्वारा दायर याचिकाओं में फैसला सुनाया।

    खंडपीठ ने हालांकि कहा कि दिल्ली सरकार टीपीडीएस के तहत लाभार्थियों को टीपीडीएस लाभार्थियों के दरवाजे पर खाद्यान्न या राशन की डोरस्टेप डिलीवरी के लिए योजना तैयार करने की हकदार है। हालांकि, मौजूदा कानूनों के अनुपालन में जीएनसीटीडी को अपने संसाधनों से ऐसा करना होगा।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि जीएनसीटीडी द्वारा बनाई गई ऐसी किसी भी योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की सभी आवश्यकताओं और आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी आदेशों का पालन करना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "वर्तमान में 24.03.2021 को कैबिनेट डिसिजन नंबर 2987 द्वारा तैयार की गई योजना एनएफएसए और टीपीडीएस आदेश, 2015 के प्रावधानों का पालन नहीं करती है।"

    पीठ ने यह भी कहा:

    - टीपीडीएस आदेश, 2015 को एनएफएसए के साथ पढ़ा जाना चाहिए और वे दोनों लागू करने योग्य हैं। जीएनसीटीडी का यह प्रस्तुतीकरण कि टीपीडीएस आदेश, 2015 एनएफएसए की धारा 36 द्वारा अधिरोहित है, स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।

    - मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद उपराज्यपाल को ऐसी किसी भी योजना या प्रस्ताव सहित अपने निर्णयों/प्रस्तावों को संप्रेषित करने के लिए बाध्य है, ताकि वह उसकी जांच कर सकें और इस पर निर्णय ले सकें कि क्या ऐसी किसी भी योजना से उनका मतभेद है?

    - जब मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद का कोई निर्णय उपराज्यपाल के समक्ष उनकी स्वीकृति के लिए रखा जाता है तो वह राज्य (एनसीटी दिल्ली) (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रति सचेत होंगे। साथ ही यदि उक्त निर्णय के आलोक में अपने मतभेद है तो उनको भी व्यक्त करेंगे।

    - यदि उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली अपनी मंत्रिपरिषद के साथ अपनी असहमति व्यक्त करता है तो वह या तो मुख्यमंत्री को अपने निर्णय के लिए राष्ट्रपति को मामले को संदर्भित करने के लिए कह सकता है, या वह स्वयं मामले को संदर्भित कर सकता है। यहां तक ​​​​कि जब उपराज्यपाल मुख्यमंत्री से राष्ट्रपति को अपने निर्णय के लिए मामले को संदर्भित करने की आवश्यकता होती है तो यह उपराज्यपाल द्वारा संदर्भित होता है और इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 239AA(4) के प्रावधान की आवश्यकता को पूरा करेगा।

    - अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के पास होगा और उक्त निर्णय प्रबल होगा। उक्त निर्णय मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद को बाध्य करेगा, जो उक्त अंतिम निर्णय के अनुसार कार्य करेंगे।

    - वर्तमान मामले के तथ्यों में कैबिनेट डिसिजन नंबर 2987 द्वारा तैयार की गई टीपीडीएस के तहत लाभार्थियों को राशन वितरण के लिए विवादित योजना को 24.03.2021 को उपराज्यपाल द्वारा अनुमोदित/सहमति नहीं दी गई थी। इसलिए, मामले की किसी भी स्थिति में इसे अपने वर्तमान स्वरूप में लागू नहीं किया जा सकता।

    दिल्ली के उपराज्यपाल (पूर्व) अनिल बैजल ने गरीबों तक राशन पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की 'घर घर राशन योजना' योजना को ठप कर दिया था। केंद्र ने दावा किया कि उचित मूल्य की दुकान के मालिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का एक अभिन्न अंग हैं और दिल्ली सरकार की प्रस्तावित योजना अधिनियम की उपयोगिता को कम करती है।

    इसके बाद दिल्ली सरकार ने स्पष्ट किया कि उसकी प्रस्तावित योजना में उचित मूल्य की दुकानें बनी रहेंगी।

    इसने यह भी कहा कि यह योजना हाशिए के लोगों को खाद्यान्न की लक्षित डिलीवरी के लिए "प्रगतिशील सुधार" है और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएस अधिनियम) की भावना के अनुरूप है।

    सरकार ने कहा,

    "खाद्यान्नों की वास्तविक डिलीवरी या आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए "हर व्यक्ति हकदार है।"

    सुनवाई के दौरान, दिल्ली सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. ए.एम. सिंघवी ने तीन बार निवेदन किया: (i) नागरिकों के भोजन के अधिकार को बनाए रखने के लिए यह योजना जनहित में प्रस्तावित है; (ii) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम राशन की डोर स्टेप डिलीवरी को प्रतिबंधित नहीं करता; और (iii) दिल्ली एलजी ने योजना के कार्यान्वयन को रोकने के लिए एक 'अवरोधक दृष्टिकोण' अपनाया है।

    दिल्ली जीएनसीटी बनाम भारत संघ और अन्य मामले पर भरोसा करते किया गया (आमतौर पर उक्त मामले को दिल्ली बनाम एलजी मामले के रूप में जाना जाता है), जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एलजी दिल्ली सरकार के हर फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं और एलजी भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था के मामलों को छोड़कर दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बांधे है।

    दूसरी ओर एडवोकेट डीपी सिंह ने दावा किया कि दिल्ली एलजी ने राज्य सरकार से योजना पर पुनर्विचार करने और वितरण एजेंसियों द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए इसे 'प्रत्यक्ष लाभार्थी हस्तांतरण' से बदलने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि दिल्ली बनाम एलजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से अलग होने और संविधान के अनुच्छेद 239AA(4) के तहत राष्ट्रपति के संदर्भ में एलजी की शक्ति को मान्यता दी है।

    इसके बाद हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि उचित मूल्य की दुकानों (एफपीएस) से जुड़ी मौजूदा योजना की तुलना में खाद्यान्न वितरण में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रस्तावित योजना बेहतर कैसे है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की थी,

    "आप एक ही ब्रश से एफपीएस के पूरे समुदाय की ब्रांडिंग कर रहे हैं। वे सभी भ्रष्ट हैं? एलजी के अनुसार, आप केवल लोगों के एक समूह को दूसरे के साथ बदल रहे हैं। तो आप कैसे सुनिश्चित करेंगे कि ये नए लोग भ्रष्ट नहीं हैं? क्या ये हैं दूसरे ग्रह के लोग है?"

    कोर्ट ने यह भी पूछा था कि प्रस्तावित सुरक्षा उपायों जैसे कि जियो पोजिशनिंग, बायो-मीट्रिक सत्यापन और आईरिस स्कैनिंग को मौजूदा सिस्टम में क्यों नहीं पेश किया जा सकता।

    केस टाइटल: दिल्ली सरकार राशन डीलर संघ दिल्ली बनाम आयुक्त खाद्य और आपूर्ति राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अन्य।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 472

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