दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत के बावजूद ऑब्जर्वेशन होम में बंद बच्चे को रिहा करने का आदेश दिया

LiveLaw News Network

23 Dec 2021 4:40 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कानून से संघर्षरत (चाइल्ड इन कन्फ्लिक्ट विद लॉ)उस बच्चे को रिहा करने का निर्देश दिया है, जिसे किशोर न्याय बोर्ड द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद एक संप्रेक्षण गृह (ऑब्जर्वेशन होम) में कैद रखा हुआ है। कोर्ट का यह आदेश जमानत बांड भरने के अधीन है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ इस मामले में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका(हैबियस कार्पस) पर विचार कर रही है, जिसमें बताया गया है कि कानून के साथ संघर्षरत 16 साल की उम्र के इस बच्चे को इसी साल अक्टूबर में हिरासत में लिया गया था और वह लगभग सात सप्ताह से हिरासत में है।

    डीसीपीसीआर का मामला यह है कि 29 नवंबर, 2021 को जेजे बोर्ड ने किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015(जेजे एक्ट 2015) की धारा 12 के तहत कानून के साथ संघर्षरत इस बच्चे को जमानत दे दी थी। हालांकि, जमानत की शर्तों को पूरा करने के अभाव में आजतक इस बच्चे को रिहा नहीं किया गया है।

    डीसीपीसीआर की ओर से पेश अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12(4) का हवाला दिया,जिसमें कहा गया है कि जब कानून से संघर्षरत कोई बच्चा सात दिनों के भीतर जमानत आदेश की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ होता है, तो ऐसे बच्चे को जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए बोर्ड के समक्ष पेश किया जाएगा।

    इस पृष्ठभूमि में,यह प्रस्तुत किया गया कि

    '' यह बच्चा अब अक्टूबर माह के मध्य से अवैध हिरासत में है। मेरे पास मेरे पक्ष में एक आदेश है। मुझे जमानत की शर्तों को संशोधित करने के लिए पेश नहीं किया गया है, स्पष्ट रूप से मैं समाज के गरीब वर्ग से हूं। मैं जमानत की शर्तों को पूरा करने के लिए सक्षम नहीं हूं। कानून कहता है कि जमानत की शर्तों को संशोधित किया जाए और आप उसे जमानत पर रिहा कर दें। वह आदेश 29 नवंबर को पारित किया गया था।''

    दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण(डीएसएलएसए) की ओर से पेश वकील ने विधिक सहायता वकील के निर्देश पर बताया कि कानून के साथ संघर्षरत इस बच्चे का जमानती मुचलका आज ही पेश किया जा रहा है।

    उसने बताया कि,''मुद्दा प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट और दो सामाजिक कार्यकर्ता सदस्यों के बीच मतभेद का है। बोर्ड में तीन मेंबर होते हैं। प्रधान मजिस्ट्रेट ने 29 नवंबर को कार्यवाही की और जमानत का मुद्दा लंबित रख लिया था। मामले को दो सामाजिक कार्यकर्ता सदस्यों ने इस मामले पर विचार किया और उसे जमानत दे दी। इस जमानत के आदेश के जवाब में, प्रधान मजिस्ट्रेट ने बोर्ड के सदस्यों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। यही विवाद देरी का कारण बन रहा है।''

    याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने डीएसएलएसए के वकील के बयान को दर्ज किया और आदेश दिया कि अगर कानून के साथ संघर्षरत इस बच्चे का जमानत बांड आज पेश किया जाता है तो उसे आज ही रिहा कर दिया जाए।

    कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि एक स्टे्टस रिपोर्ट दायर की जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।

    याचिका के अनुसार, जमानत आदेश के 7 दिनों के भीतर जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए 5 दिसंबर को इस किशोर को जेजे बोर्ड के समक्ष पेश नहीं किया गया था,क्योंकि वह जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि इस किशोर को 8 दिनों के अंतराल के बाद 13 दिसंबर को बोर्ड के सामने पेश किया गया था।

    13 दिसंबर को जमानत की शर्तों में बदलाव किए बिना बच्चे को एक बार फिर से ऑब्जर्वेशन होम भेज दिया गया।

    याचिका में व्यापक दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है, जिनका पालन किशोर न्याय बोर्ड द्वारा कानून के साथ संघर्षरत बच्चों के जमानत आवेदनों पर निर्णय लेते समय किया जाए। वहीं विधिक सहायता वकील (लीगल ऐड कांउसल)के साथ-साथ ऑब्जर्वेशन होम की जिम्मेदारियों को भी परिभाषित करने की मांग की गई है।

    उन्होंने यह भी मांग की है कि कानून के साथ संघर्षरत बच्चे के हित में बोर्ड द्वारा ऐसी शर्तें लगाई जानी चाहिए, जिनका पालन आसानी से किया जा सके।

    केस का शीर्षक-डीसीपीसीआर बनाम जीएनसीटीडी व अन्य

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