'सीडब्ल्यूसी ने किशोर न्याय अधिनियम के दायरे से परे काम किया': मद्रास हाईकोर्ट ने दत्तक माता को बच्ची की कस्टडी लौटाई

LiveLaw News Network

29 Nov 2021 12:45 PM IST

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में गोद लेने वाली मां और जैविक मां के बीच कस्टडी की लड़ाई में बच्चे को रिसेप्‍शन होम में रखने के चाइल्‍ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि बच्च‌ियों को इस रूप में नहीं दिखाया जा सकता है कि उन्हें 'देखभाल और सुरक्षा की जरूरत' है, खासकर जब 'दो माताएं उसे देखभाल और सुरक्षा देने के लिए एक-दूसरे से लड़ रही हों' ।

    जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आर हेमलता दो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थीं, जिन्हें जैविक मां और दत्तक मां ने दायर किया था।

    अदालत ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 101 का हवाला दिया और कहा कि सीडब्ल्यूसी के आदेश को चुनौती देने के लिए अपील उपचार है। हालांकि, मामले के तथ्यों पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा, "हम पाते हैं कि पुलिस और सीडब्ल्यूसी ने उक्त अधिनियम के दायरे से बाहर जाकर अबी (लड़कियों) को उक्त घर में रखने का फैसला यंत्रवत किया था। अबी अनाथ बच्ची नहीं है, जिसे देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है। इसके विपरीत, उसकी दो माताएं हैं, सरन्या (जैविक मां) और सत्या (दत्तक मां), जो उसे देखभाल और सुरक्षा देने के लिए आपस में लड़ रही हैं।"

    यह देखते हुए कि मध्यस्थता कर शरुआती कार्यवाही में बच्ची ने अपनी दोनों माताओं के प्रति गहरा प्यार और अपने भाई-बहनों के करीब रहने की इच्छा प्रकट की है, अदालत ने आदेश में कहा कि दत्तक मां बच्चे की कस्टडी अपने पास बरकरार रखेगी। हालांकि, यह आदेश जैविक माता-पिता या उसके भाई-बहनों को वीकेंड पर बच्ची से मिलने से नहीं रोकेगा।

    मामले के अनुसार, जब बच्ची साढ़े तीन साल की थी, उसे जैविक मां ने अपनी निःसंतान भाभी को गोद दे दिया था। गोद लेने वाली मां के पति, यानी जैविक मां के भाई की जब बीमारी के कारण मृत्यु हो गई तो दोनों परिवारो में अलगाव हो गया। पिछले महीने, जैविक मां ने पुलिस आयुक्त के समक्ष यह कहते हुए शिकायत दर्ज की थी कि उसे या उसके पति को बच्चे से मिलने नहीं दिया जा रहा है। शिकायत अम्मापेट के महिला पुलिस स्टेशन को भेज दी गई थी।

    पुलिस ने मामले की जांच की और जैविक मां को भी स्थिति की पुष्टि के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया। बाद में सीडब्ल्यूसी, सलेम को मामले में शामिल हो गया। सीडब्ल्यूसी के आदेश के बाद बच्‍ची को एक रिसेप्‍शन होम में भी दिया गया।

    लगभग उसी समय जब हाईकोर्ट रजिस्ट्री बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की जांच की जा रही थी, दत्तक मां ने भी बच्चे की कस्टडी के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने तब उसे हाईकोर्ट के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया ताकि वह माताओं के बीच के संघर्ष को सुलझा सके और सीडब्ल्यूसी द्वारा उठाए गए कदमों की वैधता पर विचार कर सके।

    मामले के तथ्यों की जांच करते हुए खंडपीठ ने आदेश में यह भी जोड़ा कि पुलिस ने इस तरह की एक शिकायत पर विचार करने में गलती की और इसे और भी जटिल बना दिया,

    "पुलिस को पक्षों को मामले को दीवानी न्यायालय के समक्ष निपटाने का निर्देश देना चाहिए था और यदि सरन्या (जैविक मां) गोद लेने पर विवाद कर रही थी तो उसे गॉर्डियनशिप एंड वार्ड एक्ट, 1890 के तहत निवारण की मांग करना चाहिए था या एक घोषणा की मांग करना चा‌‌हिए था कि गोद लेना शून्य है। पुलिस को इस प्रकृति के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था.."'

    अदालत ने सीडब्ल्यूसी के आदेश को रद्द कर दिया और बच्चे की कस्टडी को दत्तक मां को सौंप दिया।

    केस नंबर: HCPNos.1868 and 1892 of 2021

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