'आवेदक का आपराधिक इतिहास 2019 से शुरू होता है, सरकार बदलने के बाद उसके खिलाफ 54 मामले दर्ज किए गए': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आजम खान के सहयोगी को जमानत दी
LiveLaw News Network
21 Nov 2020 10:16 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को आले हसन खान, जिन्हें समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक, आजम खान का करीबी सहयोगी माना जा रहा है, की जमानत याचिका मंजूरी कर ली। कोर्ट ने कहा कि आले हसन खान का आपराधिक इतिहास 2019 में राज्य सरकार में बदलाव के बाद ही शुरू हुआ है।
जस्टिस सिद्धार्थ की खंडपीठ ने कहा, "आवेदक का आपराधिक इतिहास वर्ष 2019 से शुरू होता है। आवेदक के खिलाफ दर्ज किए गए 54 मामले राज्य सरकार में बदलाव के बाद हैं। इससे पहले, उसके खिलाफ 3 मामले थे, जिसमें अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी है। वे मामले मामूली अपराधों से संबंधित थे।"
कोर्ट ने आले हसन खान को व्यक्तिगत बांड पर रिहाई का निर्देश दिया।
आवेदक उत्तर प्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक। उस पर आरोप था कि उसने कुछ न्यायिक आदेश के अस्तित्व के बारे में झूठ बोला था और उसके पास एक जाली आधार कार्ड और पहचान पत्र था।
यह आरोप लगाया गया था कि पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर, आवेदक-अभियुक्त ने हाईकोर्ट द्वारा चार अगस्त, 2020 को पारित एक स्टे ऑर्डर की प्रति पेश की था, जिसे Cr Misc WP No. 1751/2019 में पारित किया गया था। हालांकि, हाईकोर्ट के आदेश पर कोई मुहर या हस्ताक्षर नहीं था। हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट से सत्यापन करने पर, यह पता चला कि ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था और उक्त रिट याचिका लंबित थी।
राज्य ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि आवेदक का 57 मामलों का आपराधिक इतिहास है।
जांच के नतीजे
कोर्ट ने दो बिंदुओ पर जमानत की अर्जी को अनुमति देना स्वीकार किया:
(i) एफआईआर में आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह सही नहीं थे, क्योंकि यह आरोप कि 10 अगस्त, 2020 को जांच अधिकारी ने Criminal Misc. Writ Petition No. 1751 of 2019 को लंबित पाया गया था, 22 जनवरी, 2019 को परित किए गए इस न्यायालय के आदेश से झूठा साबित होता है, जिसमें पूर्वोक्त रिट याचिका को निस्तारित किया गया था।
(ii) जाली आधार कार्ड और पहचान पत्र बरामद करने का आरोप इस स्तर पर केवल आरोप है, और आवेदक ने स्वीकार नहीं किया है कि उसके पास इस तरह के कोई दस्तावेज हैं।
तदनुसार, कोर्ट ने कहा, "अपराध की प्रकृति और पक्षों की ओर से पेश तर्कों, जेलों में फैले कोरोना वायरस, रिकॉर्ड पर मौजूद अभियुक्त की संलिप्तता संबंधित साक्ष्य, संविधान के अनुच्छेद 21 के व्यापक जनादेश को ध्यान में रखते हुए और मामले की योग्यता पर टिप्पणी किए बिना, उपरोक्त अपराध में शामिल आवेदक को निजी बांड और कोर्ट की संतुष्टि के अनुसार उतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने के बाद रिहा किया जाना चाहिए।"
राज्य की इस दलील पर कि आवेदक एक हिस्ट्रीशीटर है, कोर्ट ने कहा कि उसके खिलाफ मुकदमे 2019 में राज्य में नई सरकार आने के बाद दर्ज किए गए हैं। आवेदक ने दावा किया था कि उसे उत्कृष्ट पुलिस सेवा के लिए राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार मिल चुका है। उसने कहा था कि उसके खिलाफ राज्य की मशीनरी के इशारे पर कई मामले दर्ज किए गए।
आवेदक के वकील ने कहा, "आवेदक 11 अगस्त, 2020 से जेल में है और उसके खिलाफ 57 मामलों का आपराधिक इतिहास है। सभी मामले सरकार बदलने के बाद दर्ज किए गए हैं और वर्ष 2019 से पहले उसके खिलाफ केवल 3 मामले दर्ज थे, जिनमें अंतिम रिपोर्ट पहले ही प्रस्तुत की जा चुकी है। अधिकांश मामलों में, अग्रिम जमानत दी जा चुकी है और अन्य मामलों में, वह जमानत पर है।"
केस टाइटिल: आले हसन खान बनाम यूपी राज्य
प्रतिनिधित्व: सीनियर एडवोकेट सैयद फरमान अहमद नकवी, एडवोकेट जहीर असगर और सैयद अहमद फैजान (आवेदक के लिए), अतिरिक्त महाधिवक्ता विनोद दिवाकर, सरकारी अधिवक्ता एसके पाल, एजीए जय नारायण और एडवोकेट अभिजीत मुखर्जी (राज्य के लिए)
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