"अभियुक्त को अभियोक्‍ता की ओर से वकील को शामिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती": मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया, जिसके वकील के पास पीड़िता का वकालतनामा था

LiveLaw News Network

31 Aug 2021 8:20 AM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह यह रेखांकित करते हुए कि अभियुक्त को अभियोक्ता (पीड़ित पक्षकार) की ओर से वकील को शामिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, एक बलात्कार आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। अभियुक्त के वकील के पास पीड़िता का वकालतनामा था।

    जस्टिस जीएस अहलूवालिया की खंडपीठ ने IPC की धारा 376-डी, 366 और 506 के तहत दर्ज मामले में रामहेत की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसके पास अभियोक्ता का वकालतनामा है।

    संक्षेप में तथ्य

    आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया था कि अभियोक्ता और सह-अभियुक्त दीपक की सगाई हो गई थी और उस सगाई के कारण, सह-अभियुक्त दीपक और अभियोक्ता के बीच सहमति से यौन संबंध बने थे।

    यह प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक के खिलाफ बलात्कार का कोई आरोप नहीं है और सिर्फ आरोप लगाया गया था कि वह सह-अभियुक्त के साथ एक झोपड़ी तक गया था और जब सह-अभियुक्त अभियोक्ता के साथ बलात्कार कर रहा था, आवेदक झोपड़ी के बाहर खड़ा था।

    हालांकि, जब वकील यह दिखानेके लिए सबूत पेश किए कि सह-आरोपी के साथ अभियोक्ता की सगाई हुई थी तब रुख बदलते हुए यह प्रस्तुत किया गया कि सह-अभियुक्त दीपक के साथ अभियोक्ता की शादी की बातचीत चल रही थी।

    इसके अलावा, जब अदालत ने वकील पर जोर दिया कि क्या यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेज है कि सह-आरोपी दीपक के साथ अभियोक्ता की शादी की बातचीत चल रही थी तो यह प्रस्तुत किया गया कि उसे पहले ही अभियोक्ता का वकालतनामा मिल चुका है और हलफनामा दायर किया जाएगा कि पीड़िता और आरोपी एक दूसरे से शादी करने वाले थे।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    यह देखते हुए कि यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि आवेदक के वकील के पास अभियोक्ता का वकालतनामा है, अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हालिया आदेश का हवाला दिया जिसमें आरोपी और शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील मिलीभगत से काम कर रहे थे, और शिकायतकर्ता के वकील ने आरोपी के वकील के निर्देश पर जाली वकालतनामा दायर किया था।

    उसी मामले में जस्टिस संजय कुमार सिंह ने उल्लेख किया था कि लंबे समय से काम कर रहे वकीलों की उक्त कार्रवाई पेशे और संस्थान की पवित्रता पर हमला करती है और बेहद निंदनीय है।

    कोर्ट ने आगे यह देखते हुए कि इस कृत्य की सराहना नहीं की जा सकती, कहा-

    " इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि आवेदक शुरू से ही गवाहों को जीतने में सक्रिय रूप से शामिल है और इस प्रक्रिया में अभियोक्ता का वकालतनामा प्राप्त करने में भी सफल रहा है जो उसने अपने वकील को दिया था। दुर्भाग्य से, आवेदक के वकील ने वकालतनामा भी जुटाया ताकि अभियोक्ता की ओर से एक वकील को लगाया जा सके।"

    अंत में, जब आवेदक के वकील ने कहा कि उसे जमानत आवेदन वापस लेने की अनुमति दी जा सकती है तो अदालत ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और जमानत याचिका को खारिज कर दिया। जमानत याचिका खार‌िज करते हुए कोर्ट ने कहा, " मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता को ध्यान में रखते हुए इस तथ्य के साथ कि आवेदक के वकील के पास अभियोक्ता का वकालतनामा है और अभियोजन पक्ष ने अनापत्ति हलफनामा दाखिल करके किसी अन्य वकील को शामिल करने का प्रयास किया गया होगा, यह यह स्पष्ट है कि आवेदक अभियोजन पक्ष के गवाहों को जीतने में शामिल है, और उसका वकील भी उसके जाल में फंस गया है।"

    केस का शीर्षक - रामहेत बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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