'कोई अवैधता नहीं': कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की डोर स्टेप राशन वितरण योजना को बरकरार रखा
Shahadat
20 Jun 2022 4:18 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि पश्चिम बंगाल दुआरे राशन योजना में कोई अवैधता नहीं है। इस योजना के तहत राज्य सरकार लाभार्थियों के दरवाजे पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न वितरित करती है।
जस्टिस कृष्ण राव याचिका पर फैसला सुना रहे थे, जिसमें प्रार्थना की गई कि राज्य सरकार द्वारा 13 सितंबर, 2021 को अधिसूचना जारी की गई। अधिसूचना में पश्चिम बंगाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (रखरखाव और नियंत्रण) आदेश, 2013 के खंड 18 में संशोधन करके उसे आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए, 2013) के लिए असंवैधानिक और अल्ट्रा वायर्स के रूप में घोषित किया जाए।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि केवल केंद्र सरकार के पास आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को विनियमित करने और प्रतिबंधित करने का अधिकार है। आगे तर्क दिया गया कि केंद्र सरकार अधिसूचना के माध्यम से राज्य को शक्ति प्रदान करती है लेकिन इस मामले में उसने पश्चिम बंगाल राज्य को कोई शक्ति नहीं दी है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता एसएन मुखर्जी ने तर्क दिया कि 'दुआरे राशन योजना' एनएफएसए की धारा 12 (1) और भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत प्रशासनिक आदेश है। आगे तर्क दिया गया कि एनएफएसए, 2013 यह निर्धारित करता है कि भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं और उनकी अपनी योजनाओं के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार होगी। इस प्रकार, यह माना गया कि एनएफएसए, 2013 आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 को अधिलेखित कर देगा, क्योंकि यह बाद का अधिनियम है।
प्रतिद्वंद्वी प्रस्तुतियों के अवलोकन के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि एनएफएसए, 2013 और उसके तहत बनाए गए नियमों के साथ-साथ आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 3 के तहत जारी किए गए वैधानिक आदेशों को पढ़ने पर यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि राज्य सरकारें एनएफएसए, 2013 के तहत लाभार्थियों को लाभ देने की हकदार नहीं हैं।
अदालत ने आगे कहा,
"एनएफएसए की धारा 24 (2) (बी) राज्य सरकारों को अनुसूची- I में निर्दिष्ट कीमतों पर हकदार व्यक्तियों को खाद्यान्न की वास्तविक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करती है। इसलिए, राज्य सरकार अतिरिक्त मील लाभार्थियों के दरवाजे पर खाद्यान्न वितरित करना चाहती हैं। इस तरह के प्रयास को एनएफएसए के किसी भी प्रावधान, उसके तहत बनाए गए नियमों या ईसीए, 1955 के तहत जारी किए गए आदेशों के उल्लंघन के लिए नहीं कहा जा सकता।"
कोर्ट ने आगे कहा कि लाभार्थियों के दरवाजे तक राशन की वास्तविक डिलीवरी को कवर किया गया है और एनएफएसए, 2013 की धारा 24 (2) (बी) और धारा 32 के तहत राज्य सरकार में निहित अधिकार और जिम्मेदारी के दायरे में है।
आक्षेपित अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने फैसला सुनाया,
"एनएफएसए 2013 की धारा 24 (2) (बी) और धारा 32 और पश्चिम बंगाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (रखरखाव और नियंत्रण) आदेश, 2013 के खंड 35 के संयुक्त पठन पर यह न्यायालय मानता है कि पश्चिम बंगाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (रखरखाव और नियंत्रण) आदेश, 2013 अधिसूचना दिनांक 13 सितंबर, 2021 द्वारा खंड 18 में संशोधन करने में कोई अवैधता नहीं है।"
जस्टिस राव ने आगे रेखांकित किया कि प्रतिवाद की याचिका तभी आकर्षित होगी जब दोनों कानून संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, यह माना गया कि वर्तमान मामले में एनएफएसए, 2013 की धारा 24 (2) (बी) राज्य सरकार को अनुसूची में निर्दिष्ट कीमतों पर हकदार व्यक्तियों को खाद्यान्न की वास्तविक डिलीवरी या आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करती है और राज्य सरकार लाभार्थियों के दरवाजे तक खाद्यान्न पहुंचाने का निर्णय, जिसे एनएफएसए, 2013 के किसी प्रावधान, उसमें बनाए गए नियमों या आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत जारी आदेश का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि इससे पहले भी उचित मूल्य की दुकान के डीलरों ने इसी तरह के मुद्दे पर याचिका दायर की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने तब भी दुआरे राशन योजना में हस्तक्षेप नहीं किया था।
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य ने 23 दिसंबर, 2021 के आदेश के माध्यम से पश्चिम बंगाल सरकार की महत्वाकांक्षी भोजन योजना के अधिकार को यह कहते हुए बरकरार रखा था कि लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार और भोजन तक पहुंचने के लिए बनाई गई कल्याणकारी योजना है।
केस टाइटल: एसके. मनोवर अली और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य
केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 250
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