माता या पिता, दोनों में से किसी एक का जानबूझ कर किया ऐसा कृत्य, जिससे दूसरे के प्रति बच्चे के मन में अलगाव पैदा हो "मानसिक क्रूरता" के बराबर: केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 May 2021 5:13 AM GMT

  • माता या पिता, दोनों में से किसी एक का जानबूझ कर किया ऐसा कृत्य, जिससे दूसरे के प्रति बच्चे के मन में अलगाव पैदा हो मानसिक क्रूरता के बराबर: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि माता या पिता का कोई भी कृत्य, जो बच्चे को अलग-थलग करके दूसरे माता या पिता के प्रति उसके प्यार और स्नेह पर रोक लगाता है, वह मानसिक क्रूरता है।

    एक पति द्वारा दायर वैवाहिक अपील पर, जिसमें पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया गया था, जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस डॉ कौसर एडप्पागथ ने कहा,"इससे ज्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं हो सकता है कि आपकी ही संतान, आपका ही खून - आपको अस्वीकार करे। प्रतिवादी के उपरोक्त कृत्यों ने बच्चे को अपीलकर्ता से जानबूझकर अलग कर दिया है, इसमें कोई संदेह नहीं है, यह मानसिक क्रूरता का गठन करता है ..."

    मामला

    पति द्वारा पत्नी के खिलाफ दायर अपील को अनुमति देते हुए दिया कोर्ट ने यह फैसला दिया। अपीलकर्ता ने क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की थी। त्रिशूर की फैमिली कोर्ट ने मांग को खारिज कर दिया था।

    दोनों की शादी, हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार 2009 में हुई थी। अपीलकर्ता ने दलील दी कि रोजमर्रा के झगड़े के कारण उसे मानसिक पीड़ा और तनाव से गुजरना पड़ा। शादी के दो साल बाद उन्हें एक बेटी हुई।

    अपीलकर्ता-पति ने अदालत में दलील दी कि उसे पारिवारिक मित्रों के माध्यम से अपनी बेटी के जन्म के बारे में पता चला। वह जब अस्पताल पहुंचा तो उसे बेटी को देखने की अनुमति नहीं दी गई और पत्नी के रिश्तेदारों ने उसे अस्पताल में प्रवेश करने से रोक दिया।

    उसने दलील दी कि उसे और उसके माता-पिता को बच्चे से पूरी तरह अलग रखा गया और पत्नी ने उसे बच्चे की तस्वीर भेजने से भी इनकार कर दिया। अपीलकर्ता ने दावा किया कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के हस्तक्षेप के बाद ही वह बच्चे से मिल सका, यह दावा किया गया।

    अपीलकर्ता के वकील ने दोहराया, "प्रतिवादी ने जानबूझकर बेटी को पिता के अधिकार से वंचित किया। यह मानसिक क्रूरता के अलावा और कुछ नहीं है।"

    अपीलकर्ता की दलीलों में बल पाते हुए, अदालत ने जोर देकर कहा कि क्रूरता का गठन करने के लिए शारीरिक हिंसा बिल्कुल जरूरी नहीं है। बेंच ने कहा कि माता-पिता को बच्चे का प्यार और स्नेह पाने का अधिकार है।

    कोर्ट ने समझाया, "एक बच्चे को माता-पिता दोनों के प्यार और स्नेह का अधिकार है। इसी प्रकार, माता-पिता को बच्चे का प्यार और स्नेह पाने का अधिकार है। एक माता या पिता का कोई भी कृत्य, जिससे माता या पिता बच्चे के प्यार और स्नेह से वंचित होते हों, मानसिक क्रूरता के बराबर है।"

    अदालत कहा कि अपीलकर्ता ने पत्नी के हाथों शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की क्रूरता का सामना किया था और अपीलकर्ता की गवाही कि पत्नी ने लगातार गाली-गलौज और गंदी भाषा का इस्तेमाल किया और उसके मां-बाप को मारा-पीठा भी, को विश्वसनीय पाया।

    कोर्ट ने कहा, माता या पिता से अलगाव एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मनोवैज्ञानिक हेरफेर कारण दूसरे माता या पिता से अलग हो जाता है। यह तब होता है जब एक माता-पिता बच्चे और दूसरे माता-पिता के बीच संपर्क और संबंध को कमजोर या पूर्वाग्रहित करते हैं..यह एक ऐसी रणनीति है जिसके द्वारा एक माता-पिता जानबूझकर दूसरे माता-पिता के संबंध में बच्चे में बन अनुचित नकारात्मकता पैदा करते हैं। इस रणनीति का उद्देश्य दूसरे माता-पिता के साथ बच्चे के संबंधों को खत्म करना और बच्चे की भावनाओं को दूसरे माता पिता के खिलाफ बदलना है।"

    प्रायिकता सिद्धांत को लागू करते हुए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता को पत्नी के कहने पर मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा था।

    इसलिए, क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद के उनके आवेदन को न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।

    'मानसिक क्रूरता'

    मानसिक क्रूरता को समझाने के लिए कोर्ट ने निम्नलिखित सिद्धांतों का निर्धारण किया-

    -शिकायत किया गया आचरण आवश्यक रूप से इतना गंभीर और कठोर ना हो कि सहवास लगभग असहनीय हो जाए या ऐसा चरित्र हो जिससे जीवन, अंग या स्वास्थ्य को खतरा हो।

    -"वैवाहिक जीवन के सामान्य टूट-फूट" से अधिक गंभीर हो।

    -पति या पत्नी का आचरण और व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि बाद के मन में उचित आशंका का आधार बने के उसके लिए वैवाहिक संबंध जारी रखना सुरक्षित नहीं है।

    -पति या पत्नी के निरंतर गाली-गलौज और अपमानजनक व्यवहार के कारण अन्य पति या पत्नी में गहरी वेदना, निराशा, अवसाद और शर्मिंदगी की भावना कभी-कभी मानसिक क्रूरता का कारण बन सकती है।

    -मानसिक क्रूरता में गंदी और अपमानजनक भाषा का उपयोग, मौखिक गालियां और अपमान भी शामिल हो सकते हैं, जिससे दूसरे पक्ष को लगातार मानसिक पीड़ी होती है। क्रूरता के लिए द्वेषपूर्ण इरादा आवश्यक नहीं है, यदि मानवीय व्यवहार के सामान्य अर्थों से, शिकायत की गई कार्रवाई को अन्यथा क्रूरता के रूप में माना जा सकता है।

    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 23 के तहत क्रूरता को किसी भी प्रकार माफ किया गया था या नहीं?

    कोर्ट ने बताया कि फैमिली कोर्ट ने धारा 23(1)(बी) का हवाला देते हुए हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अपीलकर्ता की तलाक की याचिका खारिज कर दी थी। यदि याचिकाकर्ता ने क्रूरता को किसी भी प्रकार से माफ कर दिया तो उक्त धारा तलाक को डिक्री प्रदान करने की अनुमति नहीं देती है।

    यह देखते हुए कि 'क्षमादान' शब्द का विस्तार नहीं किया गया है, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका अर्थ होगा "शारीरिक कार्यवाही करने के लिए घायल पति या पत्नी के सभी अधिकारों को समाप्त करना।"

    कोर्ट ने फैसले में कहा, "एक अर्थ में, क्षमादान समझौता है, अर्थात्, गलती को ठीक करने और अपमा‌नित पति या पत्नी के सम्मान को बहाल करने का इरादा है...",

    कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे लगे कि दोनों पक्षों के बीच क्षमा और बहाली थी या अपीलकर्ता ने प्रतिवादी की क्रूरता को माफ कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत की धारा 23 का हवाला देते हुए याचिका की अपील की अस्वीकृति कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। इन्हीं शर्तों के साथ, अपील की अनुमति दी गई थी।

    मामला: (बदला हुआ नाम)

    वकील: अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट अश्विन गोपाकुमार, अनविन गोपाकुमार, कला जी. नांबियार, रेनॉय विंसेंट, निरंजन सुधीर।

    प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट केआर अरुण कृष्णन, दीपा के. राधाकृष्णन।

    फैसला डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


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