केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन के डेयरी फार्मों को बंद करने और स्कूली बच्चों के आहार से मांस हटाने के आदेश पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

22 Jun 2021 2:00 PM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन के डेयरी फार्मों को बंद करने और स्कूली बच्चों के आहार से मांस हटाने के आदेश पर रोक लगाई

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपने नए प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल के निर्देशन में लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा पारित दो विवादास्पद आदेशों के संचालन पर रोक लगा दी है।

    पहला, द्वीप में प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे डेयरी फार्मों को बंद करने का आदेश है। दूसरा, मध्याह्न भोजन से चिकन और अन्य मांस हटाकर स्कूली बच्चों के लिए आहार में बदलाव का निर्णय था।

    मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाल्यो की खंडपीठ ने लक्षद्वीप स्थित कवरत्ती के मूल निवासी वकील अजमेल अहमद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इन आदेशों पर रोक लगा दी है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता पीयूस कोट्टम ने लाइव लॉ को इस बात की पुष्टि की है कि इन दोनों आदेशों पर रोक लगा दी गई है। आदेश की प्रति का इंतजार है।

    पीठ ने द्वीप प्रशासन से दो सप्ताह के भीतर जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए भी कहा है।

    पशुपालन विभाग के निदेशक द्वारा 21 मई को डेयरी फार्मों को बंद करने का विवादित आदेश पारित किया गया था। पशुपालन विभाग द्वारा चलाये जा रहे सभी डेयरी फार्मों को तत्काल बंद करने के आदेश के साथ ही पशु चिकित्सा इकाइयों को निर्देश दिया गया था कि व्यापक पब्लिकेशन व अन्य औपचारिकाएं पूरी करने के बाद उनके पास उपलब्ध बैल और बछड़े आदि का निस्तारण नीलामी द्वारा कर दिया जाए।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह आदेश द्वीप के निवासियों की खाने की आदतों को बदलने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से पारित किया गया था। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह प्रस्तावित पशु संरक्षण (विनियमन), 2021 के कार्यान्वयन की एक प्रस्तावना थी, जो मवेशियों के वध और गोमांस और गोमांस उत्पादों की खपत पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित है। याचिकाकर्ता ने आगे आरोप लगाया है कि स्थानीय डेयरी फार्मों को बंद करना भी गुजरात के एक निर्माता के डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देने के गुप्त उद्देश्य से किया गया है।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि हालांकि मवेशियों की नीलामी के लिए सार्वजनिक नोटिस दिया गया था, लेकिन नीलामी नहीं हुई क्योंकि कोई बोली लगाने वाला नहीं आया था।

    साथ ही, द्वीप में बच्चों के खाने की आदतों में बदलाव के इरादे से मध्याह्न भोजन से चिकन और अन्य मांस को हटा दिया गया है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यह हितधारकों के साथ बिना किसी विचार-विमर्श या परामर्श के किया गया था। यह भी आरोप लगाया गया है कि यह मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को ''अक्षय पात्र'' नामक बैंगलोर स्थित एक गैर सरकारी संगठन को सौंपने के निर्णय के एक भाग के रूप में किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने इन फैसलों को संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करने वाले ''मनमाने और भेदभावपूर्ण'' बताते हुए चुनौती दी है। यह भी तर्क दिया गया कि इन फैसलों ने लोगों की पारंपरिक संस्कृति और भोजन की आदतों में हस्तक्षेप किया है और संस्कृति को पसंद करने और संरक्षित करने के उनके अधिकार का उल्लंघन किया है। इस प्रकार यह आदेश संविधान के आर्टिकल 21 के तहत निजता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन हैं।

    याचिका में कहा गया है, ''द्वीप के प्रशासक के रूप में अपने आधिकारिक पद पर तीसरा प्रतिवादी एक युद्धरत तरीके से काम कर रहा है और दशकों से द्वीपवासियों द्वारा अपनाई जा रही संस्कृति और विरासत पर हमला करने का प्रयास कर रहा है।''

    यह भी कहा गया है, ''प्रशासक भारत के संविधान के आर्टिकल 15,16,19,21 और 300ए का घोर उल्लंघन करते हुए अपने छिपे और हानिप्रद व्यक्तिगत एजेंडे को द्वीपवासियों पर थोपने का प्रयास कर रहा है और उनका पालन किया जा रहा है।''

    रिट याचिका में लक्षद्वीप के प्रशासक को ''प्रजातीय संस्कृति, विरासत, भोजन की आदत और लक्षद्वीप द्वीप समूह में निर्मल और शांत वातावरण को प्रभावित करने वाले किसी भी सुधार को लागू न करने और भारत के संविधान के आर्टिकल 19 और 300 ए के तहत गारंटीकृत संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने से रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।''

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