पति को 'शराबी', 'चरित्रहीन' के रूप में लेबल करना क्रूरता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

26 Oct 2022 12:38 PM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि पत्नी अपने पति के खिलाफ अदालत में बेबुनियाद आरोप लगा रही है और उसे 'शराबी' और 'चरित्रहीन' करार दे रही है।

    जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस शर्मिला यू देशमुख की खंडपीठ ने अपीलकर्ता/पत्नी द्वारा दायर अपील खारिज कर दी, जिसमें उसके पति को तलाक की डिक्री देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई।

    खंडपीठ ने कहा,

    "हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता ने मुकदमेबाजी के दोनों दौरों में बार-बार प्रतिवादी के चरित्र की हत्या के आरोप लगाए। याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी के चरित्र से संबंधित अनुचित, झूठे और आधारहीन आरोप लगाने के लिए उसे शराबी के रूप में लेबल करना जारी रखा है, जिसने समाज में उसकी प्रतिष्ठा कम कर दी। ऐसी परिस्थितियों में और समाज में प्रतिवादी की स्थिति को देखते हुए प्रतिवादी का स्टैंड कि वह याचिकाकर्ता के ऐसे आचरण के साथ समाज में उसे बदनाम नहीं कर सकता, जहां वह सामाजिक कार्य कर रहा है। इस तरह के आरोपों के बावजूद वह वैवाहिक संबंध जारी नहीं रख सकता है, इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता।"

    2005 में अपीलकर्ता ने फैमिली कोर्ट के समक्ष दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की। प्रतिवादी/पति ने तलाक की मांग करते हुए अपना जवाब और जवाबी दावा दायर किया। प्रतिवादी दावे के जवाब में पत्नी ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी शराबी और लुगाईबाज है। वह याचिकाकर्ता को शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करती है। फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी और तलाक की डिक्री मंजूर कर ली। अपीलार्थी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपील के लंबित रहने के दौरान प्रतिवादी की मृत्यु हो गई और उसके कानूनी उत्तराधिकारी ने मामला जारी रखा।

    अपीलकर्ता के एडवोकेट विकास शिवरकर ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने इस आधार पर तलाक देने में गलती की कि अपीलकर्ता के आरोप क्रूरता का गठन करते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि 2002 में पक्षकारों के बीच मुकदमेबाजी के पिछले दौर में अपीलकर्ता द्वारा समान आरोप लगाए गए और इसे क्रूरता के रूप में नहीं माना गया।

    प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट ओंकार कुलकर्णी ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया और प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप क्रूरता की श्रेणी में आते हैं।

    अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की बहन ने अपने मामले की पुष्टि नहीं की और केवल इस बात की गवाही दी कि पति शराब का सेवन करता था। अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। "याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि प्रतिवादी किसी न किसी बहाने अपनी बहन से मिलने जाता था, फिर भी याचिकाकर्ता की बहन के साक्ष्य कोई विवरण नहीं देते हैं। याचिकाकर्ता द्वारा पेश किए गए साक्ष्य उसके द्वारा अभिवचनों में लगाए गए आरोपों को साबित करने में विफल रहते हैं। ", अदालत ने अपने आदेश में कहा।

    प्रतिवादियों का यह मामला है कि याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ झूठे और मानहानिकारक आरोप लगाकर उसे मानसिक पीड़ा दी। प्रतिवादी ने बयान दिया कि पत्नी ने संस्था के सदस्यों से संपर्क किया, जहां वह सामाजिक कार्य कर रहा था और उसके खिलाफ वही आरोप लगाए। उसने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने उस उसके बच्चों और पोते-पोतियों से अलग कर दिया।

    अदालत ने कहा कि इस मामले में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी का मामला झूठा है। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता प्रतिदावे के जवाब में अपने द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित करने में विफल रही है।

    अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच मुकदमेबाजी के पहले दौर में समान आरोपों को क्रूरता नहीं माना गया। हालांकि, इस मामले में प्रतिवादी विशिष्ट मामला लेकर आया है कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उसे समाज में बदनाम किया और उसे मानसिक पीड़ा दी।

    कोर्ट ने कहा कि क्रूरता के संदर्भ में किसी पक्ष के आचरण पर विचार करते हुए उस पक्ष की समाज की स्थिति भी प्रासंगिक है। अदालत ने कहा कि प्रतिवादी मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुआ और समाज के ऊपरी तबके से ताल्लुक रखता है जिसकी समाज में प्रतिष्ठा है।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के चरित्र की हत्या की, जिसके परिणामस्वरूप समाज में उसकी प्रतिष्ठा कम हुई। अदालत ने कहा कि प्रतिवादी का यह कहना कि वह याचिकाकर्ता के आचरण को बर्दाश्त नहीं कर सकता, उसको अनुचित नहीं ठहराया जा सकता।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत क्रूरता है।

    केस नंबर- फैमिली कोर्ट अपील संख्या 45/2006

    केस टाइटल- नलिनी नागनाथ उपलकर बनाम नागनाथ महादेव उपलकर,

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