"अप्रूवर को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता": झारखंड हाईकोर्ट ने तीन साल से जेल में बंद व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करके जमानत दी

LiveLaw News Network

23 April 2022 6:44 AM GMT

  • अप्रूवर को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट ने तीन साल से जेल में बंद व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करके जमानत दी

    झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में इस बात पर जोर दिया कि एक वादा माफ गवाह (अप्रूवर) को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रहने दिया जा सकता है। कोर्ट ने साथ ही सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके तीन साल से जेल में बंद एक अप्रूवर-याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया।

    न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने कहा कि असाधारण और उचित मामलों में, हाईकोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अप्रूवर को जमानत पर छोड़ने की शक्ति है या ऐसी परिस्थितियों में भी, जहां ऐसा प्रतीत होता है कि हिरासत अवधि लंबी हो गई है।

    संक्षेप में मामला

    अनिवार्य रूप से, कोर्ट 2018 के एक विशेष (एनआईए) मामले के संबंध में सीआरपीसी की धारा 306 के तहत वादा माफ गवाह (अप्रूवर) द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जमानत की मांग करने वाली याचिका पर विचार कर रहा था।

    यह मामला आईपीसी की धारा 414/384/386/387/120बी, आर्म्स एक्ट की धारा 25(1-बी)ए/26/35, सीएलए अधिनियम की धारा 17(1)(2) और यूएपीए की धाराओं 16/17/20/23 के तहत दर्ज किया गया था और मामला वर्तमान में रांची स्थित विशेष न्यायाधीश, एनआईए-सह-अतिरिक्त न्यायिक आयुक्त-XVI की अदालत में लंबित है।

    याचिकाकर्ता के वकील की दलील थी कि चूंकि एक अप्रूवर किसी अपराध का आरोपी व्यक्ति नहीं होता है, इसलिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 437 और 439 को अप्रूवर को जमानत पर छोड़ने के मामले में लागू नहीं किया जा सकता है।

    वकील ने आगे दलील दी कि इसलिए अप्रूवर होने के कारण याचिकाकर्ता ने जमानत के लिए कोर्ट से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया था।

    अंत में, यह दलील देते हुए कि याचिकाकर्ता तीन साल से अधिक समय से जेल में बंद है, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसके मुवक्किल को अप्रूवर बनने की अनुमति दिये जाने के बाद, अनिश्चितकाल के लिए जेल में बंद नहीं किया जा सकता है और वह भी इस प्रत्याशा में कि कुछ लोग फरार हैं।

    दूसरी ओर, एनआईए की ओर से पेश हुए ए.एस.जी.आई ने दलील दी कि इस स्तर पर, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका सुनवाई के लिए स्वीकारने योग्य नहीं है क्योंकि अन्य आरोपित व्यक्तियों की अभी भी जांच की जानी अपेक्षित है।

    उन्होंने आगे कहा कि अप्रूवर की हिरासत सीआरपीसी की धारा 306 (4) (बी) के तहत परिकल्पित मुकदमे के साथ समाप्त होनी चाहिए। अंत में, उन्होंने प्रस्तुत किया कि यह उस व्यक्ति को दंडित करने के लिए नहीं है जिसके पक्ष में क्षमा प्रदान की गई है, बल्कि उसे एक अपराध के अपने सहयोगियों के संभावित आक्रोश, क्रोध और आक्रोश से बचाने के लिए है।

    कोर्ट की टिप्पणियां और आदेश

    शुरुआत में, कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि याचिकाकर्ता/अप्रूवर का बयान दर्ज किया गया था और मामले में 8 आरोपियों से पहले ही जिरह की जा चुकी है और याचिकाकर्ता को आरोप मुक्त कर दिया गया है,

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि अन्य आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है और कुछ आरोपी अदालत में पेश भी नहीं हुए हैं, इसलिए मामले में सुनवाई लंबी हो जाएगी।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने यह भी नोट किया कि जब सरकारी गवाह की पहले ही पड़ताल हो चुकी है और उसने अभियोजन के मामले का समर्थन किया है, तो याचिकाकर्ता को जेल में बंद करने का कोई मतलब नहीं होगा, खासकर, इस तथ्य के बावजूद कि कुछ अभियुक्तों को भी जमानत दे दी गई है।

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, इस बात पर जोर देते हुए कि एक व्यक्ति जिसे सरकारी गवाह बनाया गया है, उसे अनिश्चित काल तक जेल की हिरासत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और सीआरपीसी की धारा 306(4)(बी) [जो कहती है कि वादा माफ गवाह बनने का अनुरोध स्वीकार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मुकदमे की समाप्ति तक हिरासत में लिया जाना चाहिए], प्रकृति में निर्देशिका है और अनिवार्य नहीं है।

    कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की:

    "असाधारण मामलों में जमानत पर अप्रूवर को छोड़ने के लिए और सीआरपीसी की धारा 306(4)(बी) के अनुसार, यदि वह पहले से ही जमानत पर नहीं है, तो मुकदमे की समाप्ति तक अप्रूवर को हिरासत में रखा जाना चाहिए, लेकिन असाधारण और उचित मामलों में हाईकोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जमानत पर रिहा करने का अधिकार है या वैसे मामले में जहां यदि ऐसी परिस्थितियां कहती है कि याचिकाकर्ता की नजरबंदी इतनी लंबी हो गई है, जो दोषसिद्धि के बाद मिलने वाली सजा की अवधि से अधिक होगी, तो उसकी हिरासत को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के रूप में अवैध घोषित किया जा सकता है।"

    इसे देखते हुए, याचिका को स्वीकार किया गया और याचिकाकर्ता को रांची स्थित विशेष न्यायाधीश, एनआईए-सह-अतिरिक्त न्यायिक आयुक्त-XVI की संतुष्टि के लिए 50,000/- रुपये के जमानत बांड और समान राशि के दो जमानतदारों को प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।

    केस का शीर्षक - सुधांशु रंजन @ छोटू सिंह बनाम भारत सरकार, राष्ट्रीय जांच एजेंसी, नई दिल्ली के जरिये, [Cr.M.P. 1300/2021]

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