कर्नाटक के जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण अधिनियम के तहत अपराधों के लिए धारा 438 और 439 सीआरपीसी के तहत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

Avanish Pathak

27 Nov 2022 3:30 AM GMT

  • कर्नाटक के जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण अधिनियम के तहत अपराधों के लिए धारा 438 और 439 सीआरपीसी के तहत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जब कर्नाटक वित्तीय प्रतिष्ठानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम, 2004 (केपीआईडीएफई) के तहत किए गए अपराध एफआईआर में शामिल किए गए हों, तब सीआरपीसी की धारा 438 (अग्रिम जमानत) या 439 (जमानत) के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    जस्टिस राजेंद्र बादामीकर की पीठ ने कहा कि जमानत याचिका खारिज होने से व्यथित आरोपी अधिनियम की धारा 16 के तहत अपील दायर कर सकता है।

    मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता कंपनी का निदेशक है, उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 419, 406, 403, 120-बी और 506, और 2004 अधिनियम की धारा 4 और 9 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।

    मामले में शिकायतकर्ता, जिसने कंपनी में निवेश किया था, को न तो कोई हिस्सा मिला और न ही रिफंड मिला, जिसके बाद एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर आईपीसी की धारा 420 के तहत दर्ज की गई थी। सत्र न्यायालय ने हालांकि नियमित जमानत के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया। इसके बाद, 2004 अधिनियम के तहत आरोप जोड़े गए।

    इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत याचिका पर रोक नहीं लगाई गई थी, जबकि शुरू में केवल आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था। हालांकि, वर्तमान मुद्दा तब सामने आया जब KPIDFE एक्ट के प्रावधानों को शामिल किया गया।

    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास 2004 के अधिनियम के तहत अपील का उपाय है। याचिकाकर्ता ने हालांकि कहा कि वह विशेष अदालत के आदेश को चुनौती नहीं दे रहा है। इस विवाद को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

    "दलील से यह स्पष्ट है कि वह विद्वान विशेष न्यायालय के आदेश से व्यथित है...। इसलिए, अब मांगी गई राहत केवल जमानत के संबंध में है। लेकिन, वास्तव में, याचिकाकर्ता /आरोपी नंबर 1 विद्वान सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश से व्यथित है।"

    कोर्ट ने कहा कि चूंकि अब आईपीसी और KPIDFE एक्ट, 2004 के तहत अपराध के लिए जमानत की मांग की जा रही है, KPIDFE एक्ट के संबंध में कोई भी आदेश, वह सीआरपीसी की धारा 439 के तहत हो और अन्यथा अपील योग्य हो, विशेष अदालत ही पारित कर सकती है।

    याचिकाकर्ता के तर्क कि KPIDFE एक्ट के तहत वैधानिक प्रतिबंध सीआरपीसी की धारा 439 के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को समाप्त नहीं करता है, को खारिज करते हुए पीठ ने कहा,

    "स्पेशल जज का आदेश KPIDFE एक्ट की धारा 9 के तहत अपराध के लिए जमानत याचिका को खारिज करने से संबंधित है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता KPIDFE एक्ट की धारा 9 के तहत अपराध के लिए जमानत को खारिज करने संबंधी विशेष अदालत के आदेश से व्यथित है। इसलिए, KPIDFE एक्ट की धारा 16 के तहत, अपील के अलावा किसी भी याचिका को चुनौती देने या उस पर विचार करने के लिए एक विशिष्ट रोक है।"

    अधिनियम की धारा 19 के तहत प्रावधान है कि जब किसी अन्य अधिनियम के कोई भी प्रावधान इस अधिनियम के प्रावधानों के साथ असंगत हों तो इस अधिनियम के प्रावधान प्रबल होंगे, क्योंकि इस धारा का व्यापक प्रभाव है।

    इसके अलावा कोर्ट ने एक्ट की धारा 18 (2) का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया है कि सीआरपीसी के 438 के प्रावधान इस एक्ट के प्रावधानों पर लागू नहीं होते हैं, जो अग्रिम जमानत की राहत पर रोक लगाते हैं। इसमें कहा गया, "लेकिन, धाराओं का लहजा स्पष्ट करता है कि, KIPDFE एक्ट का कानून के अन्य सभी प्रावधानों से अधिक प्रभावी है।"

    जिसके बाद कोर्ट कहा,

    "जब KPIDFE एक्ट के तहत अपराध शामिल किए जाते हैं तो सीआरपीसी की धारा 438 या 439 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं होती और KPIDFE एक्ट की धारा 16 के तहत अपील दायर करना ही एकमात्र उपाय है। इसलिए, याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है और तदनुसार, याचिका याचिकाकर्ताओं को KPIDFE एक्ट की धारा 16 के तहत अपील दायर करने की स्वतंत्रता के साथ खारिज की जाती है।"

    केस टाइटल: श्रीशा ससिथोता प्रभाकरन बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर : क्रिमिनल पेटिशन नंबर 9971/2022

    साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (कर) 481

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