ई-फाइलिंग के माध्यम से डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए दायर आवेदन वैध, फिजिकल कॉपी के अभाव में इसे अनदेखा नहीं कर सकतेः केरल हाईकोर्ट

Manisha Khatri

19 Nov 2022 4:45 AM GMT

  • ई-फाइलिंग के माध्यम से डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए दायर आवेदन वैध, फिजिकल कॉपी के अभाव में इसे अनदेखा नहीं कर सकतेः केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि ई-फाइलिंग मोड के माध्यम से समय पर डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए दायर एक आवेदन को उसकी फिजिकल कॉपी पेश न करने के अभाव में निचली अदालतों द्वारा अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस ए बधारुद्दीन ने कहाः

    ''अब हम ई-वर्ल्ड में रह रहे हैं। कई न्यायालयों में ई-फाइलिंग को अनिवार्य कर दिया गया है और भारत में सभी न्यायालयों में अनिवार्य ई-फाइलिंग को पूरा करने के लिए उठाए जा रहे कदम अंतिम चरण में हैं। इस तरह के परिदृश्य में, एक अदालत ई-फाइलिंग मोड के माध्यम से दायर किसी आवेदन को यह मानने के लिए कैसे अनदेखा कर सकती है कि समय के भीतर कोई याचिका दायर नहीं की गई थी क्योंकि समय के भीतर उसकी फिजिकल कॉपी प्रस्तुत नहीं हो पाई थी।''

    अदालत ने कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत पर कानूनी स्थिति इतनी लचीली है कि एक मौखिक आवेदन भी पर्याप्त होगा।

    पीठ ने कहा,''इसके अलावा अदालत का कर्तव्य है कि वह सीआरपीसी की धारा 167 (2) (ए) के तहत आरोपी को उसके कानूनी अधिकार के बारे में बताए, क्योंकि यह भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अनिवार्य अधिकार है।''

    अदालत दोहरे हत्याकांड के मामले में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किए गए अपराधों के लिए एक विशेष अदालत,मन्नाकर्कड़ द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ आरोपी व्यक्तियों द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी। पीड़ितों में से एक एससी/एसटी समुदाय का था।

    विशेष अदालत ने आरोपी व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत डिफ़ॉल्ट जमानत आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि अभियोजन द्वारा अंतिम रिपोर्ट दायर करने से पहले जमानत आवेदनों की फिजिकल कॉपी दायर नहीं की गई थी।

    ट्रायल कोर्ट ने केरल राज्य बनाम मुनीर (2021) के मामले में केरल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले पर ध्यान दिया था और माना कि, ''भले ही जांच एजेंसी ने धारा 167 (60 दिन या 90 दिन, जैसा भी मामला हो, रिमांड के दिन से) के तहत निर्धारित अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट / आरोप पत्र दायर न किया हो, परंतु जब तक जांच एजेंसी, उसके बाद अंतिम रिपोर्ट दाखिल करती है, लेकिन आरोपी के रिमांड से पहले और आरोपी ने वैधानिक डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने की अपनी याचिका दी थी, तब आरोपी का वैधानिक जमानत पर रिहा करने का अधिकार समाप्त हो जाएगा।''

    वकील टी.के. संदीप, वीना हरिकुमार, और स्वेता आर ने दो अभियुक्त व्यक्तियों (जिन्हें वैधानिक जमानत/डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया गया था) की ओर से दलील दी कि उन्होंने ई-फाइलिंग मोड के माध्यम से डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए एक आवेदन दायर किया था और इसलिए, भले ही आवेदन की एक भौतिक प्रति/फिजिकल कॉपी दायर न की गई हो,आरोपी तब भी डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने के लिए उत्तरदायी होगा।

    दूसरी ओर लोक अभियोजक जी. सुधीर ने तर्क दिया कि चूंकि अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने से पहले भौतिक रूप में कोई आवेदन दायर नहीं किया गया था, इसलिए आरोपी डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए दबाव नहीं बना सकता था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह दोहरे हत्याकांड का मामला है और आरोपियों के खिलाफ आरोप बेहद गंभीर हैं।

    अदालत ने कहा कि दो आरोपियों के अलावा, अन्य सभी आरोपियों को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत विचार के अनुसार 90 दिनों के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने में अभियोजन की विफलता के कारण डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा कर दिया गया है। विशेष न्यायाधीश के आदेश पर विचार करते हुए, पीठ ने कहा कि यह रिकॉर्ड करता है कि दोनों आरोपियों ने 10 अक्टूबर को ई-फाइलिंग मोड के जरिए जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन वे इसे विशेष अदालत के संज्ञान में लाने में विफल रहे।

    धारा 167(2) पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि सवाल यह है कि क्या दोनों आरोपी 90 दिन की अवधि समाप्त होने पर अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने से पहले जमानत देने को तैयार थे?

    राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए, अदालत ने कहा कि यह माना गया था कि ''व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में, हम बहुत तकनीकी नहीं हो सकते हैं और न ही होना चाहिए और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष में झुकना चाहिए''।

    ''नतीजतन, चाहे अभियुक्त 'डिफ़ॉल्ट जमानत' के लिए एक लिखित आवेदन करता है या 'डिफ़ॉल्ट जमानत' के लिए एक मौखिक आवेदन करता है, कोई फर्क नहीं होता है। संबंधित न्यायालय को वैधानिक आवश्यकताओं पर विचार करके इस तरह के एक आवेदन से निपटना चाहिए कि क्या आरोप पत्र या चालान दाखिल करने की वैधानिक अवधि समाप्त हो गई है?, क्या आरोप पत्र या चालान दायर किया गया है? और क्या आरोपी जमानत देने के लिए तैयार है और प्रस्तुत करता है। इस न्यायालय और अन्य संवैधानिक न्यायालयों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता न्यायशास्त्र के इतिहास में मुख्य न्यायाधीश या न्यायालय को संबोधित एक पत्र के आधार पर भी बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट और अन्य रिटों पर विचार करना शामिल है।''

    यह देखते हुए कि दोनों आरोपियों ने आरोपपत्र दाखिल करने से पहले 10 अक्टूबर को ई-फाइलिंग मोड के माध्यम से अपना आवेदन दायर किया था, अदालत ने आगे कहा कि वैधानिक जमानत के लिए आवेदन 11 अक्टूबर को सुबह 11 बजे अदालत के समक्ष फिजिकल तौर पर प्रस्तुत किया गया था, जबकि उस दिन सुबह 10 बजे आरोप पत्र दायर किया गया था।

    अदालत ने कहा,

    ''इसमें कोई संदेह नहीं है, इस तरह के मामले में यह सवाल शामिल है कि ई-फाइलिंग मोड के जरिए आवेदन दाखिल करके क्या आरोपी ने समय के भीतर डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन दायर किया है?, इस तरह के मामले में यह माना जाना चाहिए कि आरोपी ने ई-फाइलिंग मोड के माध्यम से जमानत के लिए आवेदन दाखिल करके समय के भीतर वैधानिक जमानत पर रिहा होने और जमानत देने की अपनी तैयारी व्यक्त की है।''

    विशेष न्यायाधीश के आदेश को खारिज करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ताओं को अदालत द्वारा शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा किया जाए।

    एडवोकेट पी.वी. जीवेश सीआरएल.ए नंबर 1121/2022 में याचिकाकर्ता/11वें आरोपी व्यक्ति की ओर से पेश हुए।

    केस टाइटल- अक्षय उर्फ अजीश उर्फ अनन्थु बनाम केरल राज्य व अन्य और अखिला ए.पी. उर्फ लालू व अन्य बनाम केरल राज्य व अन्य

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केईआर) 597

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