आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए कई सालों बाद आवेदन दाखिल किया, झारखंड हाईकोर्ट ने अर्जी खारिज की
Avanish Pathak
28 Jun 2022 4:24 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने एक फैसला में कहा है कि यदि ऑर्बिट्रेशन एंड कन्सिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 11 (6) (सी) के तहत ऑर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए आवेदन दाखिल करने में अत्यधिक विलंब के आधार पर आवेदन खुद सुनवाई योग्य नहीं है तो परिसीमन के मुद्दे को न्यायनिर्णयन के लिए मध्यस्थ के पास नहीं भेजा जा सकता।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की सिंगल बेंच ने माना कि, भारत संचार निगम लिमिटेड और अन्य बनाम नॉर्टेल नेटवर्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (2021) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मद्देनजर सीमा के मुद्दे का उत्तर दहलीज पर ही दिया जाना आवश्यक है, यानी, उस स्तर पर जहां ए एंड सी एक्ट की धारा 11 (6) (सी) के तहत दायर आवेदन पर न्यायालय विचार करता है।
याचिकाकर्ता/आवेदक झरिया पेट्रोल सप्लाई ने पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री के लिए प्रतिवादी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ एक डीलरशिप समझौता किया।
प्रतिवादी की ओर से उक्त समझौते समाप्त कर दिया गया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने समझौते की समाप्ति के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की। रिट याचिका को हाईकोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि उक्त समझौते में मध्यस्थता खंड का वैकल्पिक उपाय याचिकाकर्ता के लिए उपलब्ध था।
इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने झारखंड हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष इंट्रा कोर्ट अपील दायर की, उसे भी मध्यस्थता के वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता के आधार पर खारिज कर दिया गया।
डिवीजन बेंच ने अपील को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए प्रतिवादी से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी। प्रतिवादी द्वारा मध्यस्थ की नियुक्ति के अनुरोध का जवाब देने में विफल रहने के बाद, याचिकाकर्ता ने झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए ए एंड सी एक्ट की धारा 11(6)(c) के तहत आवेदन दायर किया।
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा आदेश पारित करने के तुरंत बाद कार्रवाई नहीं की थी, और याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी से मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए फैसले के 16 साल बाद अनुरोध किया था।
कोर्ट ने नोट किया कि भारत संचार निगम लिमिटेड और अन्य बनाम नॉर्टेल नेटवर्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (2021) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सीमा अधिनियम, 1963 की पहली अनुसूची के अनुच्छेद 137 के प्रावधान कार्यवाही पर लागू होते हैं, जहां एं एंड सी एक्ट की धारा 11(6)(c) के तहत दायर एक आवेदन न्यायालय के विचाराधीन है।
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश को याचिकाकर्ता द्वारा चुनौती नहीं दी गई थी, इसलिए, यह निर्णायक रहा। इसलिए, कोर्ट ने माना कि तीन साल की सीमा अवधि को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश की तारीख से गिना जाना आवश्यक था।
कोर्ट ने कहा कि अगर पार्टी माफी के लिए पर्याप्त कारण दिखाती है तो सीमा को माफ किया जा सकता है, हालांकि, याचिकाकर्ता ऐसा कोई कारण बताने में विफल रहा है।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड बनाम नॉर्दर्न कोल फील्ड लिमिटेड (2019) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इस तर्क के समर्थन में भरोसा किया था कि एक मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए एक आवेदन पर निर्णय लेने के चरण में न्यायालय द्वारा सीमा के मुद्दे पर विचार नहीं किया जाना चाहिए और यह कि सीमा के मुद्दे पर मध्यस्थ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने नोट किया कि उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम (2019) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सीमा का मुद्दा तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न है, और यह कि सीमा के मुद्दे पर एक निष्कर्ष क्षेत्राधिकार का मुद्दा होगा। इसलिए, कोर्ट ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सीमा का मुद्दा एक अधिकार क्षेत्र का मुद्दा होने के कारण आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा तय किया जाएगा।
कोर्ट ने देखा कि उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (2019) में निर्णय के बाद भारत संचार निगम लिमिटेड और अन्य (2021) में निर्णय दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि यह एक स्थापित कानून है कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को वैसे मुद्दे पर दिए पूर्व निर्णयों पर बाध्यकारी प्राथमिकता होगी।
कोर्ट ने कहा कि भारत संचार निगम लिमिटेड और अन्य (2021) में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला पारित करने से पहले उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (2019) में निर्धारित अनुपात को ध्यान में रखा था।
इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि भारत संचार निगम लिमिटेड और अन्य (2021) में निर्धारित कानून के मद्देनजर, यदि ए एंड सी एक्ट की धारा 11 (6) (सी) के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए आवेदन खुद सुनवाई योग्य नहीं है ऐसा इसे दाखिल करने में अत्यधिक देरी के आधार पर है, इसलिए परिसीमा के मुद्दे को न्यायनिर्णयन के लिए मध्यस्थ के पास नहीं भेजा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सीमा के मुद्दे का जवाब शुरुआत में ही दिया जाना आवश्यक होगा, यानी उस स्तर पर जहां कोर्ट द्वारा ए एंड सी एक्ट की धारा 11 (6) (सी) के तहत दायर आवेदन पर विचार किया जाता है।
इसलिए, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता द्वारा ए एंड सी एक्ट की धारा 11 (6) (सी) के तहत डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश की तारीख से 16 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद दायर किया गया आवेदन, सीमा के कारण रोक दिया गया था क्योंकि यह तीन साल से अधिक की देरी के बाद दायर किया गया था, जैसा कि सीमा अधिनियम, 1963 की पहली अनुसूची के अनुच्छेद 137 के तहत प्रदान किया गया था।
इस तरह कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी।
केस टाइटल: झरिया पेट्रोल आपूर्ति बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड