धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर नफरत और तनाव पैदा करने के किसी भी कृत्य से चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकताः उत्तराखंड हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

27 Sep 2020 4:43 PM GMT

  • धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर नफरत और तनाव पैदा करने के किसी भी कृत्य से चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकताः उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार (21 सितंबर) को कहा कि "निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव के लिए, चुनाव अभियान के दरमियान, पार्टी या उम्मीदवार को किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए, जिससे नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर नफरत पैदा हो सके या तनाव पैदा हो।"

    ज‌स्ट‌िस आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा, "धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या संभागीय विविधताओं के इतर सभी के बीच सामंजस्य और सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।"

    पृष्ठभूमि

    आपराध‌िक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत, पुलिस स्टेशन गोपेश्वर, जिला चमोली में 2012 के केस नंबर 12 में 05.03.2012 को दायर चार्जशीट और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, चमोली द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत 2012 के क्रिमिनल केस नंबर 699, "राज्य बनाम राजेंद्र सिंह भंडारी" में पारित संज्ञानात्मक आदेश को पूरी कार्यवाही के साथ रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया गया था, यह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, चमोली की अदालत में लंबित है।

    उल्‍लेखनीय है कि उत्तराखंड की विधान सभा का चुनाव 2012 में हुआ था। आवेदक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था।

    चुनाव प्रचार के लिए आवेदक ने भगवान बद्रीनाथ की तस्वीर (फोटो) अपने हैंडबिल और पर्चे पर छपवाई थी।

    मतदाताओं को प्रभावित करने और स्थानीय लोगों की धार्मिक भावनाओं का उपयोग करने के लिए आवेदक की इस अवैध गतिविधि के कारण, अधिनियम, 1951 की धारा 125 और भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत 25.01.2012 को आवेदक के खिलाफ रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा प्राथमिकी दर्ज करवाई गई थी।

    प्राथमिकी में, यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि आवेदक के कृत्य के कारण लोगों की धार्मिक भावनाओं को धक्का लगा ।

    जांच अधिकारी ने सबूतों के आधार पर आवेदक के खिलाफ अधिनियम, 1951 की धारा 123 की उप-धारा (3) के तहत आरोप पत्र दायर किया था।

    आरोप पत्र दायर होने के बाद, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आईपीसी की धारा 171-एफ, अधिनियम, 1951 की धारा 123 (3) के साथ पढ़ें, के तहत संज्ञान लिया और वर्तमान आवेदक के खिलाफ और 27.09.2012 को समन आदेश पारित किया।

    27.09.2012 के उक्त आदेश से दुखी होकर, आवेदक ने सत्र न्यायालय के समक्ष संशोधन दायर किया।

    संशोधन को सत्र न्यायाधीश, चमोली ने अनुमति प्रदान कर दी। 26.06.2014 को दिए आदेश में विद्वान जज ने मामले को वापस ले लिया और केस को नए सिरे से तय करने के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, चमोली को निर्देश दिया।

    26.06.2014 के संशोधित आदेश के अनुपालन में, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, दिनांक 18.09.2014 को आदेश पारित किया, जिसके तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, चमोली ने अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत इस अपराध का संज्ञान लिया और वर्तमान आवेदक को समन जारी किया।

    कोर्ट का फैसला

    वर्तमान मामले में, न्यायालय ने देखा, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूतों पर विचार करने के बाद संज्ञान लिया था।

    न्यायालय ने कहा कि यह अच्छी तरह से तय है कि मामले को संज्ञान में लेने और समन करने के समय मामले की योग्यता का परीक्षण नहीं किया जा सकता है और आरोपों की शुद्धता को आंकने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा तथ्यात्मक क्षेत्र में प्रवेश करना पूर्णतया अनु‌चित है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यह कोर्ट आरोपों की सत्यता की भी जांच नहीं करेगा क्योंकि यह कोर्ट संहिता की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, अपील या संशोधन न्यायालय के रूप में कार्य नहीं करता है।

    कोर्ट ने कहा, यह नहीं कहा जा सकता है कि आवेदक के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं।

    मौजूदा मामले में, अधिनियम 1951 की धारा 125 के तहत दंडनीय अपराध पर संज्ञान लिया गया है। अधिनियम, 1951 की धारा 125 के अनुसार: -

    "धारा 125, चुनाव के संबंध में वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना- इस अधिनियम के तहत चुनाव के संबंध में कोई भी व्यक्ति भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर, शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देता है या बढ़ावा देने का प्रयास करता है, तो उसे सजा दी जाएगी, यह तीन साल तक कारावास हो सकता है या जुर्माना या दोनों हो सकती है।"

    कोर्ट ने चार्जशीट को रद्द करने और संपूर्ण कार्यवाही के साथ संज्ञान आदेश को रद्द करने की प्रार्थना को स्वीकार करने इनकार कर दिया।

    मामले का विवरण

    केस टाइटल: राजेंद्र सिंह भंडारी बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य

    केस नं: 2014 की आपराधिक विविध आवेदन संख्या 180

    कोरम: जस्टिस आलोक कुमार वर्मा

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