इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवा वकील के यौन उत्पीड़न के आरोपी सरकारी वकील को अंतरिम जमानत दी

SPARSH UPADHYAY

4 Sep 2020 8:31 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवा वकील के यौन उत्पीड़न के आरोपी सरकारी वकील को अंतरिम जमानत दी

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (03 सितंबर) को एक युवा वकील द्वारा दर्ज बलात्कार के मामले में एक सरकारी वकील को अंतरिम जमानत दे दी।

    उक्त मामले के संबंध में अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए सरकारी वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए लखनऊ में जस्टिस चंद्र धारी सिंह की एकल पीठ ने कहा,

    "आवेदक एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता है और इस न्यायालय में पिछले 29 वर्षों से बिना किसी आपराधिक मामले के अभ्यास/वकालत कर रहा है। आवेदक, राज्य सरकार और विभागों और निगमों के लिए अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील था। आवेदक के खिलाफ पूरे सबूत दस्तावेजों पर आधारित हैं। आवेदक की जो स्थिति है, उसके संबंध में, न्याय से उसके दूर भागने की कोई संभावना नहीं है।"

    वकील पर दिल्ली की एक युवा प्रैक्टिसिंग वकील ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है और मामले में गोमती नगर क्षेत्र के विभूति खंड पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 328, धारा 354A (यौन उत्पीड़न) और धारा 376 (बलात्कार) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी थी गिरफ्तारी से अंतरिम राहत

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार (31 जुलाई) को पुलिस को चौहान को गिरफ़्तार करने से रोक दिया था।

    एफआईआर ख़ारिज किए जाने की सरकारी वक़ील की दलील सुनने के बाद न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति राजीव सिंह की लखनऊ खंडपीठ ने कहा था,

    "एफआईआर पर ग़ौर करने के बाद प्रथम दृष्टया हम इस बात से संतुष्ट हैं कि इस मामले में याचिकाकर्ता (आरोपी) को गिरफ़्तार नहीं किया जाए।"

    गिरफ़्तारी से मिली अंतरिम राहत पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

    इसके पश्च्यात, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (05 अगस्त) को इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उसने दिल्ली की एक युवा वकील द्वारा सरकारी वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले में उस सरकारी वकील को गिरफ्तार करने से उत्तर प्रदेश पुलिस को रोक दिया था।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक एसएलपी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था।

    एससी चौहान के खिलाफ मामले में जांच और मुकदमे की सुनवाई की मांग वाली याचिका (21 अगस्त)आपराधिक मामले में जांच और मुकदमा स्थानांतरित करने की मांग

    इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार (21 अगस्त) को एक रिट याचिका में नोटिस जारी किया जिसमें चौहान के खिलाफ दायर आपराधिक मामले में जांच और मुकदमा स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

    पीड़िता के एक दोस्त द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि बलात्कार के मामले में अन्वेषण, राज्य में अभियुक्त की स्थिति के कारण बाधित हो सकता है।

    जस्टिस आरएफ नरीमन, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने यूपी सरकार और एसपी, लखनऊ को नोटिस जारी किए थे।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि विभूति खंड पुलिस स्टेशन में पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी ने मीडिया में सभी पीड़ितों की पहचान और व्यक्तिगत विवरणों को सार्वजनिक करने का खुलासा किया था। इससे उसके या उसके परिवार के लिए "अपने घर से बाहर कदम रखना" असंभव हो गया था।

    इलाहाबाद HC ने चौहान को अंतरिम जमानत दी (03 सितंबर)

    याचिकाकर्ता के तर्क - यह याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील द्वारा प्रस्तुत किया गया था कि कथित घटना के स्थान पर किसी भी प्रकार की कोई भी सामग्री, नशे का जूस देने के आरोप को प्रमाणित करने के लिए नहीं मिली थी।

    वरिष्ठ वकील ने यह भी कहा कि आवेदक को ब्लैकमेल करने और पैसा निकालने और विभूति खंड, गोमती नगर, लखनऊ में स्थित आवेदक के चैंबर को हथियाने के लिए तत्काल मामला दायर किया गया है। तात्कालिक मामला कानून की प्रक्रिया के सकल दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है।

    आवेदक ने धारा 438 Cr.P.C के तहत अपर सत्र न्यायाधीश / एफ.टी.सी.-02 सत्र न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की थी। लखनऊ की अदालत ने जमानत अर्जी की विवेचना को खारिज कर दिया।

    वकील ने आगे कहा कि पुलिस द्वारा आवेदक को गिरफ्तार करने की कोशिश की जा रही है और इसलिए आवेदक को आशंका है कि उसे 2020 की प्राथमिकी संख्या 03326 के संबंध में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है।

    AGA का तर्क - AGA ने प्रयोगशाला रिपोर्ट के साथ पूरक हलफनामा दायर करने के लिए कुछ समय के लिए प्रार्थना की।

    शिकायतकर्ता के तर्क

    शिकायतकर्ता के लिए उपस्थित वकील ने आवेदक के लिए पेश वकील द्वारा प्रस्तुत दलीलों का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि आवेदक एक प्रभावशाली व्यक्ति है और वह अन्वेषण को प्रभावित कर सकता है।

    उन्होंने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रार्थना पत्र के साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की थी कि जांच को स्थानीय पुलिस से CBI को हस्तांतरित किया जा सकता है।

    अंत में, शिकायतकर्ता के लिए पेश वकील ने सभी दस्तावेजों के साथ अग्रिम जमानत आवेदन पर आपत्ति / काउंटर हलफनामा दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा, जिस पर वह बहस के दौरान भरोसा कर रहा है।

    न्यायालय का अवलोकन

    न्यायालय का विचार था कि अग्रिम जमानत का प्रावधान एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लागू किया जा सकता है जिसे "उचित आशंका" है कि उसे गैर-जमानती अपराध करने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है।

    इस संदर्भ में, न्यायालय ने कहा,

    "सीआरपीसी में धारा 438 को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य यह था कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को अनावश्यक रूप से खतरे में नहीं डाला जाना चाहिए। जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है और इसलिए, किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह से सीमित या हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए जब तक कि उसे दोषी नहीं ठहराया गया हो।"

    नागेंद्र बनाम राजा सम्राट - AIR 1924 Cal 476 के मामले में निर्णय का हवाला देते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि जमानत का उद्देश्य मुकदमे में अभियुक्तों की उपस्थिति को सुरक्षित करना है।

    नागेंद्र (सुप्रा) के मामले में, यह माना गया था कि जमानत का उद्देश्य मुकदमे के समय अभियुक्तों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना है और इस प्रश्न के समाधान के लिए कि क्या जमानत प्रदान की जानी चाहिए या नहीं, उचित परीक्षण यह होगा कि क्या यह संभावित है कि पार्टी अपना परीक्षण/TRIAL के लिए उपस्थित होगा।

    मौजूदा मामले में, अदालत ने यह माना कि आवेदक ने गैर-जमानती अपराध का आरोप लगाते हुए अभियुक्त के रूप में तर्क दिया है।

    इसके अलावा, अदालत ने देखा,

    "यह स्पष्ट रूप से अच्छी तरह से तय किया गया है कि, किसी अभियुक्त को हिरासत में रखने या किसी मामले की जाँच लंबित रहने पर सजा का माप नहीं है, बल्कि यह देखना है कि मुकदमे के दौरान उसकी उपस्थिति आसानी से सुरक्षित की जा सकती हो और सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना न हो, किसी भी तरीके से गवाहों को धमकाने या धमकी देने की सम्भावना न हो तो ऐसे आरोपी व्यक्ति को हिरासत में लेने की कोई वजह नहीं है।"

    उपर्युक्त चर्चा के प्रकाश में, न्यायालय का विचार था कि आवेदक को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

    तदनुसार, यह निर्देशित किया गया था कि उसकी गिरफ्तारी की स्थिति में, आवेदक अर्थात् शैलेन्द्र सिंह चौहान को धारा 328, 354 ए, 376 आईपीसी, पी.एस. के तहत 2020 के एफआईआर नंबर 0326 के तहत अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए (गिरफ्तारी अधिकारी की संतुष्टि के लिए समान राशि में दो जमानत के साथ रु. 50,000 / - (रूपये पचास हजार) के निजी मुचलके को निष्पादित करने पर)।

    उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, दो सप्ताह के समय को एजीए को अनुपूरक हलफनामा दाखिल करने में सक्षम बनाने के लिए अनुमति दी गई और शिकायतकर्ता के लिए आपत्ति / काउंटर हलफनामा दायर करने के लिए भी उतना ही समय दिया गया।

    मामले को आगे की सुनवाई के लिए 05.10.2020 को सूचीबद्ध किया गया है।

    मामले का विवरण:

    केस टाइटल: शैलेन्द्र सिंह चौहान बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एवं अन्य

    केस नं .: BAIL No. – 5862/2020

    कोरम: जस्टिस चंद्र धारी सिंह

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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