युवा वकील के यौन उत्पीड़न के आरोपी सरकारी वक़ील को इलाहाबाद हाईकोर्ट से गिरफ़्तारी से मिली अंतरिम राहत पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

LiveLaw News Network

6 Aug 2020 6:43 AM GMT

  • युवा वकील के यौन उत्पीड़न के आरोपी सरकारी वक़ील को इलाहाबाद हाईकोर्ट से गिरफ़्तारी से मिली अंतरिम राहत पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उसने दिल्ली की एक युवा वकील द्वारा सरकारी वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले में उस सरकारी वकील को गिरफ्तार करने से उत्तर प्रदेश पुलिस को रोक दिया था।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक एसएलपी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।

    पिछले हफ्ते, उच्च न्यायालय ने लखनऊ पीठ में अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील शैलेन्द्र सिंह चौहान को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी।

    वकील पर दिल्ली की एक युवा प्रैक्टिसिंग वकील ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है और मामले में गोमती नगर क्षेत्र के विभूति खंड पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 328, धारा 354A (यौन उत्पीड़न) और धारा 376 (बलात्कार) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।

    चौहान ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि उसके ऊपर लगाए गए आरोप झूठे हैं और इसलिए, उसके खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी को खारिज कर दिया जाना चाहिए।

    यद्यपि हाईकोर्ट ने कार्रवाई को तुरंत रद्द करने से इनकार कर दिया था, लेकिन बेंच ने आरोपी वकील को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी और इस बीच शिकायतकर्ता के वकील को मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया था।

    एफआईआर ख़ारिज किए जाने की सरकारी वक़ील की दलील सुनने के बाद न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति राजीव सिंह की लखनऊ खंडपीठ ने कहा था,

    "एफआईआर पर ग़ौर करने के बाद प्रथम दृष्टया हम इस बात से संतुष्ट हैं कि इस मामले में याचिकाकर्ता (आरोपी) को गिरफ़्तार नहीं किया जाए।…"

    इस आदेश को शीर्ष अदालत के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसमें निर्देश दिया गया है कि आदेश के संचालन पर रोक रहेगी।

    शीर्ष अदालत ने आदेश दिया,

    "एक अंतरिम उपाय के रूप में, सक्षम न्यायालय को लंबित आवेदन पर आवश्यक आदेश पारित करने के लिए निर्देशित किया जाता है ताकि जांच एजेंसी संबंधित सामग्री को अपने कब्जे में ले सके जो कि मामले पर असर डाल सकती है। प्रचुर सावधानी के रूप में हम प्रदान करते हैं कि इस आशय का उचित आदेश पारित किया जा सकता है ताकि मामले के साक्ष्य के साथ कोई छेड़छाड़ न हो।"

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