जिस समझौते के तहत पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण अधिकार छोड़ती है, वह लागू नहीं हो सकता; केरल हाईकोर्ट ने दोहराया

Avanish Pathak

3 Feb 2023 3:53 PM GMT

  • जिस समझौते के तहत पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण अधिकार छोड़ती है, वह लागू नहीं हो सकता; केरल हाईकोर्ट ने दोहराया

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यह कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि एक समझौता जिसके जरिए पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के अपने अधिकार को छोड़ देती है, वह सार्वजनिक नीति के खिलाफ है और ऐसा समझौता आरंभ से ही अमान्य (ab intio void) है और लागू करने योग्य नहीं है।

    जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा,

    "इसलिए, पत्नी की ओर से भरण-पोषण के लिए किए गए दावे को ‌अमान्य समझौते के आधार पर विवादित या अस्वीकार नहीं किया जा सकता है और पत्नी ऐसे अमान्य समझौते की अनदेखी करते हुए भरण-पोषण पाने की हकदार है।"

    मौजूदा मामले में अदालत फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि चूंकि उसने पत्नी को तलाक दिया। दोनों के बीच एक समझौता हुआ था कि वह पत्नी को सोने के गहने और 25,000 रुपये देगा, जिसके बाद वह भविष्य में भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है।

    कोर्ट ने कहा कि दोनों के बीच कोई तलाक नहीं हुआ है, जैसा कि पति ने दलील दी है और वह उसके भरण-पोषण से इनकार नहीं कर सकता।

    "अन्यथा भी, तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है, जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती, जब तक कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 की धारा 3 के तहत 'उचित प्रावधान और भरण-पोषण' के लिए दावे का भुगतान किया जाएगा।"

    मामला

    पत्नी ने पहले सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए तिरूर ‌स्थित फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उसके पास निर्वाह का कोई साधन नहीं है।

    फैमिली कोर्ट के समक्ष उसने पति से 7,500/- रुपये मासिक भरण-पोषण के लिए दबाव डाला। पत्नी ने दलील दी कि पति खाड़ी में एक सुपरमार्केट चला रहा है और कई दूसरे बिजनेस भी उसके पास हैं। अदालत को बताया गया कि वह प्रति माह 90,000 रुपये कमा रहा था।

    जवाब में पति ने कहा कि उसने पत्नी को तलाक दे दिया था। उसके और पत्नी के बीच हुए समझौते के अनुसार, पत्नी को पांच तोला सोने के गहने और 25,000 रुपये दिए गए थे। यह तर्क दिया गया कि वह आगे भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।

    फैमिली कोर्ट ने पत्नी को मेंटेनेंस के रूप में 4500 रुपये दिए। कोर्ट ने कहा कि वह यह साबित करने में विफल रहा कि दोनों के बीच तलाक हुआ था, हालांकि उसने इसके समर्थन में 13 दस्तावेज पेश किए थे। वह यह भी साबित नहीं कर सका कि उसने 25,000/- रुपये और 5 तोला सोने के आभूषण लौटाए थे।

    चुनौती

    फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए, पति ने तर्क दिया कि उसने यह मानने में गलती की है कि उसने पत्नी को भरण-पोषण नहीं दिया है। फैमिली कोर्ट यह ध्यान देने में विफल रहा कि उसने अपनी मर्जी से वैवाहिक घर छोड़ा, और "विवाहेतर संबंध" बना रही थी।

    यह भी बताया कि गया कि पत्नी के "बेईमान व्यवहार" के कारण पति को किसी अन्य महिला से शादी करने के लिए विवश होना पड़ा था। उसने यह भी कहा कि उसके पास विदेश में केवल एक छोटी सी नौकरी है और भरण-पोषण के रूप में 4,500 रुपये का भुगतान नहीं कर सकता।

    निष्कर्ष

    जस्टिस बदरुद्दीन ने कहा कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष ठोस प्रतीत होते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह बिना किसी औचित्य के अलग रह रही थी, और इसके विपरीत, सबूत बताते हैं कि वह "अपने भाइयों के साथ रह रही थी, क्योंकि वह पति के साथ नहीं रह सकती थी, वह उसके साथ क्रूर व्यवहार कर रहा था।"

    राजेश आर नायर बनाम मीरा बाबू (2013) और विक्रमन नायर और अन्य बनाम ऐश्वर्या और अन्य (2018) में फैसलों पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि भरण-पोषण के दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि जिस समझौते से पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के अपने अधिकार को छोड़ देती है, वह समझौता सार्वजनिक नीति के खिलाफ है और आरंभ से ही अमान्‍य है।

    अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा कोई समझौता पेश नहीं किया गया। कोर्ट ने ध्यान दिया कि पति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष कोई ऐसी कोई दलील नहीं पेश की थी कि पत्नी खुद के भरण-पोषण में सक्षम है।

    कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए कहा,

    "वास्तव में, फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी को भरण-पोषण के रूप में केवल 150/- रुपये प्रति दिन दिया है और इस प्रकार मात्र 4,500/- रुपये का भरण-पोषण दिया गया था। इस मामले के तथ्यों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि 4,500 रुपये की राशि अधिक है। इस मामले को देखते हुए दिए गए आदेश में किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और इसकी पुष्टि की जाती है।"

    केस टाइटल: xxx v. yyy

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केरल) 60

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