इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरडीएक्स, डेटोनेटर रखने के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी, 16 साल से जेल में था बंद
Avanish Pathak
31 March 2023 7:26 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह मोहम्मद तारिक काशमी नामक एक व्यक्ति को जमानत दी, जिसे दिसंबर 2007 में 1.25 किलोग्राम आरडीएक्स और तीन डेटोनेटर रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
काशमी 2007 के सीरियल ब्लास्ट मामले में भी आरोपी है, जिसमें लखनऊ, बनारस और फैजाबाद जिलों की अदालतों को निशाना बनाया गया था।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने जमानत पर उसकी रिहाई का आदेश दिया। कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि विस्फोटक पदार्थ की बरामदगी के पहलू पर विचार करने की आवश्यकता है और वह पहले ही लगभग 16 साल की सजा काट चुका है।
काशमी को निचली अदालत ने 2008 में विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 5, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 18, 20 और 23, और आईपीसी की धारा 121-ए, 353 के तहत दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
सजा खिलाफ काशमी ने हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें उसने जमानत के लिए भी आवेदन किया था।
उनकी ओर से पेश वकील ने मुख्य रूप से यह तर्क दिया कि आरडीएक्स और डेटोनेटर की बरामदगी प्लांट की गई थी और इसे कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन करके नहीं बनाया गया था और स्वतंत्र रूप से देखा भी नहीं गया था, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकार का उल्लंघन है।
यह भी तर्क दिया गया कि यदि उसके पास से किसी विस्फोटक पदार्थ की बरामदगी की गई थी तो उसे समय से पहले नष्ट नहीं किया जाना चाहिए था। क्षेत्र के सक्षम मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बरामद विस्फोटक को पेश भी नहीं किया गया था और वैध बरामदगी को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक एक पूर्ण कार्यकारी प्रक्रिया के तहत ना होने के कारण विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 की धारा 7 के तहत ट्रायल की अनुमति स्पष्ट रूप से गलत और कानून के अनुरूप नहीं थी।
दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता से अत्यधिक खतरनाक पदार्थ की बरामदगी की गई थी, जिसमें कोई आम आदमी गवाह बनने के लिए सहमत नहीं था, इसलिए पुलिस कर्मियों की मौखिक गवाही के स्वीकार्य होने पर सही भरोसा किया गया था।
बरामद पदार्थ को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने के पहलू पर, प्रस्तुत किया गया कि यह अनिवार्य नहीं है। महत्वपूर्ण रूप से एक संप्रभु अधिनियम संदेह के लिए खुला नहीं है, जब इसमें मानव जीवन या राज्य की संपत्ति को खतरे में डालने का संवेदनशील मुद्दा शामिल हो।
अदालत ने कहा कि मामले में सुनवाई केवल बरामदगी के आधार पर आगे बढ़ी और उक्त बरामदगी अभियोजन पक्ष द्वारा किसी अपराध से जुड़ी नहीं थी।
न्यायालय ने आगे कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि संप्रभु अधिनियम संदेह से मुक्त है, प्रक्रिया का जनादेश, जहां इसमें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार शामिल हैं, प्रक्रिया का निष्पक्ष रूप से पालन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने जमानत याचिका को अनुमति देते हुए कहा,
"चूंकि विस्फोटक पदार्थ की बरामदगी के पहलू पर आवेदक/अपीलकर्ता की ओर से उठाए गए आधार पर विचार करने की आवश्यकता है और अपीलकर्ता पहले ही लगभग 16 साल की सजा काट चुका है, प्रथम दृष्टया, जमानत देने का मामला बनता है।"
नतीजतन, काशमी को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
केस टाइटलः मोहम्मद तारिक काशमी बनाम यूपी राज्य [आपराधिक अपील संख्या -605/2015]
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 113