किशोर न्याय अधिनियम के तहत जन्म तिथि के प्रमाण के लिए आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं : केरल हाईकोर्ट

Manisha Khatri

20 Nov 2022 1:01 PM GMT

  • किशोर न्याय अधिनियम के तहत जन्म तिथि के प्रमाण के लिए आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि आधार कार्ड को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा एक्ट के तहत आरोपी की जन्म तिथि के प्रमाण के दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने कहा कि जब किसी आरोपी की उम्र के संबंध में कोई विवाद होता है और यदि स्कूल से मिला प्रमाण पत्र उपलब्ध है, जो जन्म तिथि निर्दिष्ट करता है, तो केवल उसी पर जेजे अधिनियम, 2015 की धारा 94(2)(i) के तहत कथित बच्चे के जन्म की तारीख की पहचान करने के उद्देश्य से गौर किया जा सकता है।

    ... मेरा विचार है कि यदि स्कूल से प्रमाण पत्र या संबंधित परीक्षा बोर्ड से मैट्रिक या समकक्ष प्रमाण पत्र है जो जन्म तिथि निर्दिष्ट करता है, तो उक्त दस्तावेज अकेले जेजे एक्ट, 2015 की धारा 94(2)(i) के तहत उस आरोपी की आयु के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य है, जो कानून से संघर्षरत (चाइल्ड इन कन्फ्लिक्ट विद लॉ) बच्चा होने का दावा करता है।

    हालांकि, जब ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता है, तो अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी परिस्थितियों में, धारा 94(2)(ii) में निर्दिष्ट दस्तावेज, यानी नगरपालिका प्राधिकरण या पंचायत द्वारा दिए गए जन्म प्रमाण पत्र को उम्र के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि उपरोक्त दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं हैं, तो जेजे अधिनियम 2015 की धारा 94(2)(iii) के तहत विचारित ऑसिफिकेशन टेस्ट का सहारा लिया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि आधार कार्ड को जेजे एक्ट 2015 द्वारा उक्त एक्ट के तहत किसी आरोपी की जन्मतिथि के प्रमाण के दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।

    अभियोजन का मामला यह है कि याचिकाकर्ता, जो असम का रहने वाला एक विवाहित व्यक्ति है, ने एक नाबालिग पीड़िता का अपहरण किया और उसे गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले का शिकार बनाया।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012(पॉक्सो) धारा 3 (ए) और 4 के अलावा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 366 ए, 376 और 376 (1) के तहत अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया है। हालांकि, उसने दावा किया कि उसकी उम्र केवल 16 वर्ष है, और इसलिए उसे कानून से संघर्षरत एक बच्चे के रूप में माना जाना चाहिए, और उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था। उसने जमानत दिए जाने की मांग की।

    दलीलें

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के आधार कार्ड के अनुसार, उसकी जन्मतिथि 02-01-2006 है और इसलिए, उसे केवल कानून से संघर्षरत बच्चे के रूप में माना जाना चाहिए। वकील ने आगे कहा कि स्वास्थ्य सेवा विभाग, असम राज्य द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र पर भी वही जन्म तारीख है,जो आधार कार्ड पर उसकी जन्म तिथि बताई गई है।

    लोक अभियोजक ने हालांकि बताया कि जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता के स्कूल द्वारा जारी स्थानांतरण प्रमाण पत्र प्राप्त किया था जिसमें उसकी जन्म तिथि 13.02.2003 थी, और यह इंगित करता है कि याचिकाकर्ता वर्तमान में 19 वर्ष का है और इसलिए, उसे कानून से संघर्षरत एक बच्चे के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    लोक अभियोजक ने आगे तर्क दिया कि आधार कार्ड पर दी गई जन्म तिथि पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के तहत जन्म तिथि को निर्णायक नहीं बनाया गया है जबकि जेजे एक्ट के तहत उम्र साबित करने के लिए मुख्य दस्तावेज जन्म तिथि निर्दिष्ट करने वाला स्कूल से मिला प्रमाण पत्र है।

    जेजे अधिनियम का धारा 94ः अनुमान और आयु का निर्धारण

    अदालत ने कहा कि जब एक व्यक्ति की उम्र, कथित तौर पर कानून से संघर्षरत बच्चा, विवाद के अधीन है, तो जेजे अधिनियम की धारा 94 पालन की जाने वाली प्रक्रिया को अनिवार्य करती है। धारा में कहा गया है कि बच्चे को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, और अगर उसको देखकर बोर्ड को उसकी उम्र पर संदेह है, तो प्रावधान इसे निर्धारित करने के लिए तीन तरीके निर्धारित करता है।

    पहला तरीका बच्चे के जन्म की तारीख को निर्दिष्ट करने स्कूल द्वारा जारी प्रमाण पत्र या मैट्रिक या समकक्ष प्रमाण पत्र के संदर्भ में है।

    यदि ऐसा प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है, तो जन्म तिथि का निर्धारण पंचायत, नगर पालिका या निगम जैसे स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र के संदर्भ में किया जा सकता है।

    यदि उपरोक्त दोनों दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, तो बच्चे की आयु का निर्धारण ऑसिफिकेशन टेस्ट या अन्य नवीनतम चिकित्सा आयु निर्धारण परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि प्रावधान के शब्दों से, यह स्पष्ट है कि यदि स्कूल द्वारा जारी किया गया एक प्रमाण पत्र उपलब्ध है, जो जन्म तिथि निर्दिष्ट करता है, तो कथित बच्चे के जन्म की तारीख की पहचान करने के उद्देश्य से अकेले उसी पर गौर किया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि असम के सरकारी स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र को जेजे अधिनियम 2015 की धारा 94 के वैधानिक आदेश के मद्देनजर बच्चे की उम्र के निर्धारण के उद्देश्य के लिए गणना में नहीं लिया जा सकता है क्योंकि याचिकाकर्ता की जन्म तिथि निर्दिष्ट करने वाला स्कूल स्थानांतरण प्रमाण पत्र उपलब्ध है।

    न्यायालय ने पाया कि प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता की आयु 18 से ऊपर पाई गई है, और इसलिए याचिकाकर्ता के साथ एक वयस्क के रूप में व्यवहार करने के लिए जांच अधिकारी सही था।

    अदालत ने कहा कि आरोपी एक विवाहित व्यक्ति है, जिस पर नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है और एक तथ्य यह है कि जांच अधिकारी आरोपी के फरार होने की आशंका रखता है, इसलिए याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है और इस तरह याचिका को खारिज कर दिया गया।

    भले ही याचिकाकर्ता को 03.06.2022 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है, मेरा मानना है कि अपराध की गंभीरता, परिस्थितियों और आरोपी द्वारा पीड़ित सहित गवाहों को डराने-धमकाने की संभावना को देखते हुए यह मामला ऐसा नहीं है,जहां याचिकाकर्ता को इस समय जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

    याचिकाकर्ता की ओर से वकील विष्णु बाबू, अश्विनी शंकर, पी. यधु कुमार और श्वेता के एस पेश हुए।

    लोक अभियोजक वकील एम.के. पुष्पलता राज्य की ओर से पेश हुईं।

    केस टाइटल- सोफिकुल इस्लाम बनाम केरल राज्य

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केईआर) 596

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