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"90% तक जली महिला को इस तरह नहीं रखा जा सकता": झारखंड हाईकोर्ट ने मेल से भेजी गई शिकायत के आधार पर मामले का स्वतः संज्ञान लिया

LiveLaw News Network
24 Feb 2021 2:13 PM GMT
90% तक जली महिला को इस तरह नहीं रखा जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट ने मेल से भेजी गई शिकायत के आधार पर मामले का स्वतः संज्ञान लिया
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झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एमजीएम अस्पताल, जमशेदपुर के लापरवाही भरे रवैये के खिलाफ ई-मेल से आई एक शिकायत का संज्ञान लिया। शिकायत में आरोप लगाया था कि 90% जल चुकी एक महिला को अर्धनग्न अवस्‍था में और बिना उचित चिकित्सीय सुविधाओं के छोड़ दिया गया था।

चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ के समक्ष पेश होकर मेल भेजने वाले एडवोकेट अनूप अग्रवाल ने अदालत को बताया कि महिला की जलने से मृत्यु हो गई। शुरु में उसे बर्न वार्ड में नहीं रखा गया। वह एक बिस्तर पर पड़ी रही।

न्यायालय के समक्ष प्रस्तुतियां

एडवोकेट अग्रवाल ने महिला की कुछ तस्वीरें भेजी थीं, जिसमें एक तस्वीर में वह बिस्तर के पास फर्श पर बैठी थी। एडवोकेट अग्रवाल ने यह भी कहा कि चूंकि उन्हें बर्न वार्ड में भर्ती कर तत्काल इलाज नहीं दिया गया था, जिससे उनकी जान चली गई।

मामले में अदालत के समक्ष पेश हुए एएजी-II ने बताया कि बर्न वार्ड में 20 बेड थे, जबकि 24 मरीज थे। कोई भी बेट खाली नहीं था, इसलिए, उसे आपातकालीन वार्ड में रखा गया।

कोर्ट का अवलोकन

यह देखते हुए कि एमजीएम प्राधिकरण में बिल्कुल भी दया नहीं है, अदालत ने कहा, "वे कुछ परिस्‍थ‌ितियों में यह निर्णय लेने में सक्षम नहीं है कि पहले किसका इलाज किया जाना चाहिए और वे उपचार में टाल-मटोल की रणनीति का उपयोग कर रहे हैं। हालांकि, यह हमारा प्रथम दृष्टया अवलोकन है क्योंकि हम एमजीएम अस्पताल द्वारा दी गई एएजी को दी गई जानकारी से बिल्कुल भी संतुष्‍ट नहीं हैं।"

कोर्ट ने आगे कहा, "इस अप्रिय और दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने अस्पताल के प्रबंधन के रवैये, सुविधाएं, जिन्हें राज्य द्वारा या किसी भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा ऐसे अस्पतालों को प्रदान की जानी हैं, के बारे में कई सवालों को जन्म दिया है और शायद यह संबंधित डॉक्टरों और कर्मचारियों की स्थिति निस्तारण के मामले में प्रशिक्षण की कमी को भी दर्शाता है, क्योंकि किसी भी मामले में 90% जली हुई महिला को उस तरह से नहीं रखा जा सकता है, जैसा कि श्री अग्रवाल द्वारा भेजी गई तस्वीरों से पता चलता है।"

न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश

कोर्ट ने सदस्य सचिव, JHALSA को मामले में जांच करने और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, राज्य को मुद्दों का जवाब देने के लिए एक जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए भी कहा गया है।

कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि क्या जब महिला 90% से अधिक जली होने पर अस्पताल में आई थी, तो तुरंत पुलिस को तुरंत कोई सूचना दी गई थी और क्या पुलिस ने तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की है?

न्यायालय ने अस्पताल प्रबंधन और राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे जांच के दरमियान, सदस्य सचिव, JHALSA के साथ पूरा सहयोग करें और पूरा खर्च राज्य प्राधिकरण को करना होगा।

मामले को गुरुवार (25 फरवरी) को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया।

केस टाइटल - कोर्ट ऑन ओन मोशन बनाम झारखंड राज्य

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