'गवाह संरक्षण योजना ज़मानत रद्द करने का विकल्प नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'साइक्लोस्टाइल्ड' आदेशों की निंदा की
Shahadat
5 Sept 2025 10:33 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत रद्द करने के मामलों में साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट आदेश जारी करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़ी आलोचना की, जहां अभियुक्तों द्वारा गवाहों को धमकाने के आरोपों की जांच करने के बजाय, हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ताओं को गवाह संरक्षण योजना के तहत मदद लेने का निर्देश दिया।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि पिछले वर्ष ही उसे हाईकोर्ट के चालीस ऐसे आदेश मिले हैं, जहां अभियुक्तों द्वारा धमकाने के आधार पर ज़मानत रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर निर्णय लेने के बजाय न्यायालय ने गवाह संरक्षण योजना को वैकल्पिक उपाय माना और शिकायतकर्ताओं को इसके तहत आवेदन करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा,
"हमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई आदेश मिले हैं, जो कानून की गलत धारणा पर आधारित हैं, खासकर यह कि गवाह संरक्षण योजना ज़मानत रद्द करने का विकल्प है। हाईकोर्ट के अनुसार, यह एक वैकल्पिक उपाय है। हमें यह जानकर बेहद दुख हो रहा है कि हमें कम से कम चालीस ऐसे हालिया आदेश मिले हैं, जो पिछले एक साल में ही पारित किए गए... उपरोक्त सभी आदेश एक-दूसरे की हूबहू नकल हैं। हमें यह जानकर निराशा हुई कि साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट आदेश पारित करने की उपरोक्त प्रथा पिछले दो वर्षों से भी अधिक समय से प्रचलन में है।"
इसके अलावा, अदालत ने सरकारी अभियोजकों पर भी अदालत को सही दिशा में सहायता न करने के लिए खेद व्यक्त किया। इसके बजाय अदालतों से आग्रह किया कि वे शिकायतकर्ताओं को गवाह संरक्षण योजना के तहत उपाय का लाभ उठाने के लिए कहें।
अदालत ने आगे कहा,
"इन सभी पारित आदेशों की सबसे विचलित करने वाली बात यह है कि सरकारी वकील ने जज को कानून की सही स्थिति बताकर सही दिशा में सहायता करने के बजाय स्वयं ही यह आग्रह किया कि गवाह या शिकायतकर्ता को गवाह संरक्षण योजना के तहत राहत प्रदान की जाए, बजाय इसके कि वह उस अभियुक्त की ज़मानत रद्द करने की मांग करे, जिसने अपने ज़मानत आदेश की शर्तों का उल्लंघन करते हुए गवाह को धमकाया और भयभीत किया। हम इस प्रथा की निंदा करते हैं।"
पिछले महीने, जस्टिस पारदीवाला की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने निर्देश दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के किसी जज को आपराधिक क्षेत्राधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। इस आदेश से विवाद उत्पन्न होने के बाद चीफ जस्टिस के अनुरोध पर जस्टिस पारदीवाला की पीठ ने इस निर्देश को वापस ले लिया।
Cause Title: PHIRERAM VERSUS STATE OF UTTAR PRADESH & ANR.

