क्या पूर्वगामी अपराध में बरी होने से PMLA की कार्यवाही स्वतः अमान्य हो जाती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

Shahadat

15 July 2025 4:58 AM

  • क्या पूर्वगामी अपराध में बरी होने से PMLA की कार्यवाही स्वतः अमान्य हो जाती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

    सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करने वाला है कि क्या पूर्वगामी/अनुसूचित अपराध में बरी होने से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत शुरू की गई कार्यवाही स्वतः अमान्य हो जाएगी।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही है, जिसमें कहा गया था कि पूर्वगामी अपराध में बरी होने से PMLA की कार्यवाही स्वतः अमान्य नहीं हो जाती।

    जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने अंतिम कार्यदिवसों में याचिका पर नोटिस जारी किया।

    सीनियर एडवोकेट नरेंद्र हुड्डा याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए और उन्होंने दलील दी कि पूर्वगामी अपराध में बरी होने के बाद उन्हें PMLA की धारा 50 के तहत तलब किया गया था। सीनियर एडवोकेट ने अंतरिम राहत के लिए भी दबाव डाला।

    उनकी बात सुनते हुए खंडपीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, बशर्ते वह अधिकारियों के साथ सहयोग करे।

    दिल्ली निवासी और मेसर्स एनके फार्मास्युटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के परिचालन प्रमुख, 27 वर्षीय निकेत कंसल, कोडीन-आधारित कफ सिरप (CBCS) "कोक्रेक्स" के अवैध रूप से इस्तेमाल में शामिल थे। इस संबंध में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा FIR दर्ज की गईं और जम्मू की स्पेशल एनडीपीएस कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई गई, जिसमें कंसल और अन्य पर CBCS के अवैध निर्माण और विपणन का आरोप लगाया गया।

    हालांकि, निचली अदालत ने आरोप तय करने के लिए ठोस सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए कंसल और दो अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। यह ध्यान दिया गया कि कंसल के खिलाफ एकमात्र सबूत NDPS Act की धारा 67 के तहत दर्ज किया गया इकबालिया बयान था, जिसकी पुष्टि नहीं हुई। अदालत ने पाया कि कंसल को कथित अपराधों की किसी भी साजिश या कृत्य से जोड़ने वाला कोई ठोस या ठोस सबूत मौजूद नहीं था।

    बरी होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने PMLA के तहत ECIR (NCB की FIR के आधार पर) शुरू की और अधिनियम की धारा 50 के तहत समन जारी किया। याचिकाकर्ता ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में ECIR, समन और संबंधित तलाशी/जब्ती कार्यवाही को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि अनुसूचित अपराध के बिना ED के पास कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है।

    मई में हाईकोर्ट ने PMLA कार्यवाही और समन रद्द करने की मांग वाली कंसल की याचिका खारिज की। इसने रेखांकित किया कि PMLA की धारा 3 के तहत धन शोधन "स्वतंत्र अपराध" है, जो अपराध की आय उत्पन्न करने वाले विधेय अपराध से अलग है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "अपराध की आय उत्पन्न करने के लिए अनुसूचित अपराध का होना आवश्यक है, लेकिन उस आय को छुपाकर, कब्ज़ा करके, अधिग्रहण करके, उपयोग करके या बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करके धन शोधन करना PMLA के तहत एक अलग अपराध है।"

    इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    Case Title: NIKET KANSAL Versus UNION OF INDIA, SLP(Crl) No. 8814/2025

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