संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत और मुस्लिम भारत की धारणा को खारिज कर दिया थाः जस्टिस चंद्रचूड़

LiveLaw News Network

17 Feb 2020 11:41 AM IST

  • संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत और मुस्लिम भारत की धारणा को खारिज कर दिया थाः जस्टिस चंद्रचूड़

    इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया ऑफ्टर गांधी' में कहा है कि भारतीय गणराज्य की नींव की दो आधारश‌िलाएं धर्म‌िक और भाषाई बहुलवाद हैं।

    (15 फरवरी 2020 को गुजरात हाईकोर्ट में आयोजित जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने THE HUES THAT ARE INDIA: FROM PLURALITY TO PLURALISM विषय पर व्याख्यान दिया। ‌पढ़िए, उस व्याख्यान के प्रमुख अंश)

    ऐसे अवसरों पर, जब एक व्याख्यान शृंखला के जर‌िए एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व की स्मृतियों का स्मरण किया जा रहा हो, यह परंपरागत है कि व्याख्यान की शुरुआत श्रद्धांजलि के शब्दों के सा‌थ ‌की जाए। हालांकि, मेरे लिए इस कार्यक्रम में बोलने का यह मौका एक गहरा व्यक्तिगत जुड़ाव रखता है। मेरे लिए, यह गुरु के प्रति एक श्रद्धांजलि है।

    जस्टिस प्रबोध दिनकरराव देसाई को गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने का अनूठा गौरव तब प्राप्त हुआ, जब वह मुश्किल से उन्ता‍लीस वर्ष के थे। अपने सम्‍मानजनक करियर में, उन्होंने तीन उच्च न्यायालयों, हिमाचल प्रदेश, कलकत्ता और बॉम्बे में दिसंबर 1983 और दिसंबर 1992 के बीच में मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम किया।

    वह व्यक्ति, जो बहुत ही कम उम्र में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हो गया, फिर भी नियति या सत्ता (आप उसे जिस भी तरीके से देखें) की ओर से की गई उसकी अनदेखी, समकालीन दौर में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में एक और भटकाव के रूप में गिना जाना चाहिए। बाद में, उन्हें जब उच्च न्यायिक कार्यालय से कॉल आया, तब उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त होने को प्राथमिकता दी: वह अपनी आज़ादी और ईमानदारी के लिए बहुत ही सजग थे।

    बार के युवा सदस्य के रूप में मेरी जीवन की सुस्पष्ट स्मृतियां है, कि जस्टिस देसाई के न्याय-‌शिल्प और न्याय क्षुधा के गहरे प्रशंशक के रूप में मैं, कम ही समय के लिए, मगर नियमित रूप से उनकी कोर्ट में आता-जाता था। प्रशासनिक कानून उनकी बारीक समझ के तहत ही फला-फूला, जैसे लेबर लॉ नागरिकों के लिए न्याय का स्रोत बन गया। यह एक अनूठा सम्‍म‌िलन था, प्रशासनिक कानून के रूप में चीफ जस्टिस पीडी देसाई ने अपने बौद्धिक अनुशासन की दृढ़ता के लिए एक सहयोगी पाया, जबकि श्रम कानून में, उन्होंने अपनी करुणा के लिए एक बंधन पाया।

    चीफ जस्टिस पीडी देसाई बिना तैयारी के आए वकील का कोई बहाना बर्दाश्त नहीं करते थे। उनकी अदालत में अयोग्य वकीलों के लिए कोई जगह नहीं थी और वह कभी किसी मूर्ख को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। हालांकि विडंबना यह थी कि उनका कठोर अनुशासन, युवा और कनिष्ठ वकीलों के लिए उदार हो जाता था। उनकी अपरिपक्वता उनके लिए एक चुनौती थी, कि वे सच्चा न्याय पाने में सफल हों। उन्हें संवारना उनका जुनून था।

    मैंने उनसे बातचीत करने का एक अनूठा अवसर तब पाया, जब वह सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की महाभियोग प्रक्रिया के लिए गठित जांच समिति के सदस्य थे। मैं सुप्रीम कोर्ट मे एक सुनवाई के बाद शाम की फ्लाइट से नई दिल्ली से घर लौटा था। मुझे मुख्य न्यायाधीश के निवास पर एक सीलबंद कवर में रिपोर्ट पहुंचाने का काम सौंपा गया था। जब मैं रात को 09:30 बजे उनके आवास पर पहुंचा, वह अपने ड्राइंग-रूम में इंतजार कर रहे थे। वह घर के अंदर गए और एक गिलास मीठा नारियल पानी लेकर लौटे। वह एक अलग ही व्यक्ति थे। चीफ जस्टिस पीडी देसाई बॉम्बे हाई कोर्ट की परंपरा के एक योग्य उत्तराधिकारी थे, एक ऐसी अदालत, जिसने स्वाधीनता के बाद के इतिहास में अन्याय और कष्टों को दूर किया।

    आप इस बात से सहमत होंगे कि मुख्य न्यायाधीश पीडी देसाई की हाईकोर्ट की संस्थागत स्थिति और देश में न्यायपालिका की भूमिका को स्वीकार कराने में रही भूमिका के कारण मेरे पास उन्‍हें श्रंद्घांजलि देने के विशेष कारण हैं। यह उन्हें एक निजी श्रद्धांजलि है, जिन्होंने मेरे करियर को आकार दिया।

    मुझे याद है, बचपन में मेरे पास एक खिलौना था, जिसे रूसी गुड़िया कहते थे। उन्हें 1890 तक मात्र्योस्का डॉल भी कहा जाता था। लकड़ी की उस गुड़िया के भीतर एक और छोटी गुड़िया होती। और एक के भीतर एक ऐसी दस गुड़िया होती थीं। उन्हें जब एक के भीतर एक रखा जाता, तब वे पूरी होकर एक गुड़‌िया बन जाती थीं। हालांक‌ि एक भी गुड़िया गायब होती तो गुड़िया की अंतिम आकृति नहीं बन पाती थी।

    उस खिलौने में एक गहरा सबक है- अंतिम अंकृति सभी गुड़ियों पर निर्भर है और बिना एक दूसरे के साथ आए वह बन नहीं सकती। वह गुड़िया तभी पूरी हो पाती है, जब हर हिस्से की कीमत को पहचना जाता है।

    कई मायनों में, मात्र्योस्का डॉल हमारे देश की ही एक रूपक है। भारत अपनी संपूर्णता में महत्वपूर्ण विविधताओं का दावा करता है- यह जाति, वर्ग, धर्म और संस्कृति सहित कई परस्पर विरोधी आयामों के सा‌थ बहुजातीय है। इस विविधता को कई अक्षों पर परिभाषित किया गया है, जैसे सांस्कृतिक, सामाजिक, विविध मूल्य, विचार और दृष्टिकोण। भारत की बहुलता में 1.3 बिलियन से अधिक आबादी शामिल है, जिनका हिस्सा हजारों समुदाय हैं।

    संविधान के निर्माण के समय, सवाल उठे था कि स्वतंत्र भारत अपनी बहुतजातीय राजनीति के प्रति कैसे जवाबदेह होगा।

    भारत के संस्थापकों के लिए संविधान, अपने नागरिकों की सहिष्णु प्रकृति में गहरे विश्वास और एक अटल विश्वास कि हमारी विविधता ही हमारी ताकत है, पर आधिर‌ित था। जैसा कि उदय मेहता ने माना है, जहां जनसंख्या काफी हद तक निरक्षर थी, फिर भी संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान किया। जहां जनसंख्या विविध और मिश्रित थी, संविधान ने जाति, जाति, धर्म या पंथ की परवाह किए बिना सभी को नागरिकता प्रदान की। जहां लोग बहुत ही धार्मिक थे, संविधान ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया। जहां भारतीय राज्य एकजुट हुआ, संविधान ने स्थानीय स्व-शासन के लिए आवश्यक सभी राजनीतिक साधनों के साथ एक संघीय लोकतंत्र बनाया। संविधान की धाराओं के भीतर विविधता उसके लोगों की विविधता का प्रतिबिंब है, एक के बिना दूसरे का अस्‍तित्व नहीं रह सकता है।

    इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया ऑफ्टर गांधी' के उपसंहार 'व्हाई इंडिया सर्वाइव्स' में कहा है कि भारतीय गणराज्य की नींव की दो आधारश‌िलाएं धर्म‌िक और भाषाई बहुलवाद हैं।

    संविधान के निर्माताओं ने हिंदू भारत और एक मुस्लिम भारत की धारणा को खारिज कर दिया था। उन्होंने केवल भारतीय गणराज्य को मान्यता दी थी। संविधान सभा के एक सदस्य ने कहा था- हमें एक राष्ट्र की ओर बढ़ना चाहिए, न कि अलग-अलग खानों में बंटे राष्ट्र की ओर।

    'भारत' उल्लेख का मात्र प्रत्येक व्यक्ति में एक अलग विचार पैदा करता है, जिसे वे राष्ट्र के साथ जोड़ते हैं। भारतीय इतिहास से से वाक‌िफ़ कोई भी व्य‌क्ति आपको बताएगा कि 'प्राचीन भारत' की एकमात्र कसौटी इसकी विस्‍तृत, बिखरी हुई और खंडित प्रकृति थी। यह सदियों से धर्म, भाषा और संस्कृति की जीवंत विविधता का देश रहा है। भारत के अस्तित्व के रूप में बहुलतावाद अपनी सबसे बड़ी जीत हासिल कर चुका है।

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