BREAKING| नई OBC सूची मामले में बंगाल सरकार को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक
Shahadat
28 July 2025 12:33 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पश्चिम बंगाल राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की नई सूची से संबंधित अधिसूचनाओं पर रोक लगा दी गई थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया।
बेंच ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए इस तर्क पर आश्चर्य व्यक्त किया कि केवल विधायिका के पास ही ओबीसी सूची को मंजूरी देने का अधिकार है।
चीफ जस्टिस गवई ने मामले की सुनवाई शुरू होते ही कहा,
"हम इस पर नोटिस जारी करेंगे। यह आश्चर्यजनक है! हाईकोर्ट इस तरह कैसे रोक लगा सकता है? आरक्षण कार्यपालिका के कार्यों का हिस्सा है। इंदिरा साहनी के समय से ही यह स्थापित कानून है, स्थिति यह है कि कार्यपालिका इसे कर सकती है। आरक्षण प्रदान करने के लिए कार्यकारी निर्देश पर्याप्त हैं और कानून बनाना आवश्यक नहीं है। हम हैरान हैं... हाईकोर्ट का तर्क क्या है!"
चीफ जस्टिस गवई ने हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से असहमति जताई कि "राज्य को 2012 के अधिनियम की अनुसूची में संशोधन और वर्ग जोड़ने के लिए रिपोर्ट और विधेयक विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करने चाहिए थे।"
राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने बेंच से हाईकोर्ट के आदेश पर भी रोक लगाने का आग्रह किया और कहा कि इस वजह से कई नियुक्तियां और पदोन्नतियाँ रुकी हुई हैं। उन्होंने आगे कहा कि अब हाईकोर्ट में अवमानना याचिकाएं भी दायर की गईं, जिनमें रोक लगाने की मांग की गई।
बेंच ने अंतरिम आदेश देने की इच्छा व्यक्त की तो प्रतिवादियों की ओर से सीनियर एडवोकेट रंजीत कुमार ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि राज्य द्वारा स्वयं बनाए गए कानून के अनुसार, सूची को विधानमंडल द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। अन्य प्रतिवादियों की ओर से सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्णकुमार ने भी अंतरिम आदेश का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह सूची बिना किसी आंकड़े के तैयार की गई।
सिब्बल ने दलील दी कि नई सूची राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा एक नए सर्वेक्षण और रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई। सिब्बल ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के पास भी यह तर्क नहीं है कि आयोग ने यह प्रक्रिया नहीं की है।
चीफ जस्टिस गवई ने प्रतिवादियों को सुझाव दिया कि न्यायालय हाईकोर्ट से इन मामलों पर जल्द ही निर्णय लेने का अनुरोध कर सकता है, लेकिन एक अलग बेंच द्वारा।
चीफ जस्टिस ने सुझाव दिया,
"यदि आप इच्छुक हैं तो हम हाईकोर्ट को निर्धारित समय-सीमा में मामले की सुनवाई करने का निर्देश देंगे, तब तक यथास्थिति बनी रहेगी। हम चीफ जस्टिस से सुनवाई के लिए एक और पीठ गठित करने का अनुरोध करेंगे।" हालांकि, प्रतिवादियों ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क प्रस्तुत करेंगे।
अंततः, बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, यह मौखिक रूप से कहा कि यह "प्रथम दृष्टया त्रुटिपूर्ण" है।
चीफ जस्टिस ने कहा,
"आयोग ने कुछ कार्यप्रणाली अपनाई है। यह सही हो सकती है या गलत, इसका अंतिम निर्णय हाईकोर्ट द्वारा किया जाएगा।"
बेंच ने अपने आदेश में कहा,
"नोटिस जारी करें। इस बीच, विवादित आदेश पर रोक रहेगी।"
यह चुनौती हाईकोर्ट द्वारा 17 जून को नई OBC सूची पर रोक लगाने के आदेश को लेकर है। मई 2024 में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा OBC सूची में 77 समुदायों को शामिल करने के फैसले को रद्द करने के बाद राज्य ने नई सूची तैयार की। हालांकि राज्य ने उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन बाद में राज्य ने न्यायालय को बताया कि राज्य आयोग OBC की पहचान के लिए नए सिरे से काम करेगा।
नई सूची पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया यह पाया था कि राज्य उन्हीं OBC वर्गों को फिर से शामिल करने का प्रयास कर रहा है, जिन्हें पहले रद्द कर दिया गया था।
Case : THE STATE OF WEST BENGAL Vs PURABI DAS | SLP(C) No. 17422/2025 and connected cases

