सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान समर्थक और अश्लील सोशल मीडिया पोस्ट के लिए असम के प्रोफ़ेसर पर मामला दर्ज होने पर कड़ी फटकार लगाई

Shahadat

13 Nov 2025 11:30 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान समर्थक और अश्लील सोशल मीडिया पोस्ट के लिए असम के प्रोफ़ेसर पर मामला दर्ज होने पर कड़ी फटकार लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने असम के एक प्रोफ़ेसर मोहम्मद जॉयनल आब्दीन की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उन पर पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट और महिलाओं के ख़िलाफ़ अश्लील पोस्ट करने के आरोप में मामला दर्ज होने पर नाराज़गी जताई और कहा कि उनका "विकृत मानसिकता" है और वह इंटरनेट का दुरुपयोग कर रहे हैं।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। यह पीठ गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जुलाई में राष्ट्र-विरोधी आरोप (BNS की धारा 152) से जुड़े मामले में उन्हें ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया था।

    कथित तौर पर, उस व्यक्ति (याचिकाकर्ता) ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट अपलोड की थी, जिसमें लिखा था, "हम पाकिस्तानी नागरिकों के भाई के साथ हैं"। पोस्ट में आगे लिखा था, "हम भविष्य में भी उनके साथ रहेंगे"। इसने तुर्की के राष्ट्रपति का भी समर्थन किया, जिन्होंने कथित तौर पर कहा था कि वह पाकिस्तानी नागरिकों के साथ रहेंगे।

    पोस्ट के सिलसिले में गिरफ्तार होने के बाद याचिकाकर्ता ने ज़मानत के लिए ट्रायल कोर्ट का रुख किया। हालाँकि, उसे इस आधार पर राहत नहीं मिली कि मामला आरोप तय होने के चरण में था। व्यथित होकर, उसने हाईकोर्ट का रुख किया।

    उसे ज़मानत देने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह पोस्ट ऐसे समय में अपलोड की गई, जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण थे। पोस्ट को पढ़ने पर यह भी पाया गया कि याचिकाकर्ता अपने देश का नहीं बल्कि पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था। इस प्रकार, उसने अनुच्छेद 51ए में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का पालन नहीं किया।

    याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करने की अनुमति दी। यदि आरोप तय हो जाते हैं तो उसने कहा कि अभियोजन पक्ष के कम से कम दो गवाहों से पूछताछ के बाद याचिकाकर्ता की ज़मानत याचिका पर विचार किया जाएगा। इस आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

    बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता एक सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर हैं। उन्हें पहले ही निलंबित किया जा चुका है और वे 179 दिन हिरासत में बिता चुके हैं।

    दूसरी ओर, राज्य के वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दो FIR दर्ज हैं, जिनमें से एक POCSO Act के तहत मामला है। यह तर्क दिया गया कि उन्होंने पहले भी महिलाओं/लड़कियों के खिलाफ अश्लील पोस्ट की थीं, जिन्हें ओपन कोर्ट में पढ़ना भी मुश्किल हो सकता है।

    राज्य के वकील की बात सुनते हुए जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा,

    "आप (याचिकाकर्ता) वही हैं, जिन्होंने बच्चों और यहाँ तक कि परिपक्व महिलाओं को भी नहीं बख्शा। आप हर तरह की घिनौनी हरकतें करते हैं। फिर इस तरह का बयान देते हैं। क्या आपको लगता है कि आप देश के कानून से ऊपर हैं?"

    याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि जैसे ही याचिकाकर्ता को एहसास हुआ कि यह भारत के हित के खिलाफ है, उन्होंने पोस्ट हटा दी।

    उन्होंने कहा,

    "यह एकमात्र ऐसी घटना है जिसमें मुझ पर राष्ट्र-विरोधी गतिविधि का आरोप लगाया गया।"

    उन्होंने यह भी बताया कि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और आरोप अभी तय नहीं हुए। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता को उपरोक्त दो मामलों में से एक में बरी कर दिया गया।

    जस्टिस बागची ने याचिकाकर्ता पर अपनी पोस्ट के ज़रिए यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली FIR का अवलोकन करते हुए कहा,

    "आपको विभिन्न गतिविधियों के लिए इंटरनेट का दुरुपयोग करने की आदत है।"

    आरोपों के आधार पर जस्टिस कांत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की मानसिकता विकृत है।

    याचिकाकर्ता को निलंबित किए जाने की दलील के जवाब में जज ने आगे टिप्पणी की कि उन्हें उस कॉलेज में प्रवेश करने की भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां वह पढ़ाते थे, पढ़ाना तो दूर की बात है।

    जस्टिस कांत ने कहा,

    "आप युवा लड़कियों के लिए कितना बड़ा ख़तरा हैं! आप किस तरह के शिक्षक-प्रोफ़ेसर होने का दावा करते हैं? [आपने] प्रोफ़ेसर शब्द को शर्मसार कर दिया है।"

    इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह याचिकाकर्ता की "अपरिपक्वता" का मामला है। उन्होंने आगे ज़ोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता की दो नाबालिग बेटियां हैं और ट्रायल कोर्ट में मामला आगे नहीं बढ़ रहा है, क्योंकि मई से कोई पीठासीन अधिकारी नहीं है।

    इस पृष्ठभूमि में खंडपीठ ने राज्य के वकील को एक सप्ताह के भीतर निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया। साथ ही हाईकोर्ट से संबंधित कोर्ट में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति की वांछनीयता का पता लगाने को भी कहा।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "राज्य के वकील ने इस संबंध में निर्देश प्राप्त करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा है और उन्हें यह समय प्रदान किया जाता है। यदि कोई पीठासीन अधिकारी उपलब्ध नहीं है तो हम गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वह इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर लें और बिना किसी देरी के उपर्युक्त न्यायालय में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति की वांछनीयता का पता लगाएं। वैकल्पिक रूप से, मामले को [...] स्थानांतरित किया जा सकता है।"

    Case Title: MD JOYNAL ABEDIN Versus THE STATE OF ASSAM, SLP(Crl) No. 12160/2025

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